
अल्मोड़ा | दक्षिण भारतीय फिल्मों के महानायक और लाखों प्रशंसकों के “थलाइवा” रजनीकांत इन दिनों फिर उत्तराखंड के आध्यात्मिक परिवेश में डूबे नजर आए। वे बुधवार को अल्मोड़ा जिले के द्वाराहाट स्थित पांडवखोली पर्वत की ऊँचाई पर मौजूद महावतार बाबा की दिव्य गुफा पहुँचे, जहाँ उन्होंने गहन ध्यान साधना की। शांत वातावरण और प्रकृति की गोद में थलाइवा का यह ध्यान दृश्य वहां मौजूद श्रद्धालुओं के लिए भी एक अलौकिक अनुभव बन गया।
🔹 उत्तराखंड से गहरा जुड़ाव: दो दशक पुरानी आध्यात्मिक परंपरा
रजनीकांत का यह उत्तराखंड आगमन कोई नया नहीं है। वे साल 2002 से ही पांडवखोली की इस गुफा से जुड़े हुए हैं। कहा जाता है कि उनकी पहली साधना यात्रा के बाद उनकी फिल्म ‘काला’ को अप्रत्याशित सफलता मिली थी। तब से उनकी इस स्थान के प्रति श्रद्धा और भी प्रगाढ़ होती चली गई।
इसके बाद वर्ष 2019 में फिल्म ‘दरबार’ की सफलता के लिए भी उन्होंने इसी स्थान पर ध्यान साधना की थी। अब 2025 में, वे एक बार फिर उसी गुफा में पहुँचे — वही जगह, वही सन्नाटा और वही ध्यान की गहराई।
🔹 पांडवखोली — जहां अध्यात्म और इतिहास का संगम
पांडवखोली की यह गुफा उत्तराखंड के कुमाऊँ क्षेत्र में समुद्र तल से करीब 8,000 फीट की ऊँचाई पर स्थित है। लोककथाओं के अनुसार, महाभारत काल में पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान यहीं निवास किया था, इसलिए इस स्थान का नाम पड़ा पांडवखोली।
बाद में, यह स्थान महावतार बाबा की साधना भूमि के रूप में प्रसिद्ध हुआ। कहा जाता है कि परमहंस योगानंद ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक “Autobiography of a Yogi” में इस गुफा का उल्लेख किया है, जहाँ उनके गुरु महावतार बाबा ने दीर्घकाल तक तपस्या की थी।
यह गुफा आज भी योग, ध्यान और आत्मिक शांति की खोज में आने वालों के लिए एक आध्यात्मिक धाम मानी जाती है।
🔹 रजनीकांत की साधना यात्रा: आस्था, एकाग्रता और आत्मानुभूति
स्थानीय सूत्रों के अनुसार, रजनीकांत बुधवार की सुबह कुछ सहयोगियों के साथ द्वाराहाट पहुँचे। उन्होंने वहाँ के योगदा सत्संग आश्रम में संक्षिप्त विश्राम के बाद पैदल यात्रा कर पांडवखोली की पहाड़ी चोटी तक पहुँचे।
लगभग 3 किलोमीटर के इस दुर्गम मार्ग पर चलते हुए वे शांत और एकाग्र दिखे। गुफा में पहुँचकर उन्होंने कुछ घंटे तक मौन ध्यान किया। आश्रम प्रबंधन के अनुसार, वे हमेशा की तरह सादगी और विनम्रता से उपस्थित हुए और किसी प्रकार का सार्वजनिक आयोजन नहीं कराया।
उनकी यह साधना पूरी तरह निजी और ध्यान केंद्रित यात्रा थी।
🔹 आध्यात्मिकता के प्रति रजनीकांत का रुझान
रजनीकांत अपने जीवन में अध्यात्म और दर्शन के गहरे अनुयायी माने जाते हैं। वे कई बार सार्वजनिक रूप से कह चुके हैं कि उनकी सफलता का रहस्य केवल अभिनय या भाग्य नहीं, बल्कि “आध्यात्मिक अनुशासन और आत्म-विश्वास” है।
उन्होंने अपने साक्षात्कारों में कई बार उत्तराखंड के हिमालयी वातावरण, संतों और ऋषियों की परंपरा का उल्लेख करते हुए कहा है —
“यहां की हवा में भी ध्यान है। जब भी मैं यहाँ आता हूँ, खुद को नया महसूस करता हूँ।”
उनकी यह साधना यात्राएँ केवल व्यक्तिगत आध्यात्मिक अनुभव नहीं, बल्कि उनके प्रशंसकों के लिए भी प्रेरणा बन चुकी हैं।
🔹 स्थानीय लोगों की श्रद्धा और उत्साह
रजनीकांत के आगमन की खबर से द्वाराहाट और आस-पास के गांवों में उत्साह का माहौल रहा। कई स्थानीय लोग और पर्यटक पांडवखोली के दर्शन के लिए पहुंचे। हालांकि, सुरक्षा और गोपनीयता को ध्यान में रखते हुए उनका पूरा कार्यक्रम बेहद शांतिपूर्ण तरीके से सम्पन्न हुआ।
स्थानीय लोगों का कहना है कि थलाइवा जब भी यहाँ आते हैं, क्षेत्र की आध्यात्मिक पर्यटन गतिविधियाँ भी बढ़ जाती हैं।