
कर्णप्रयाग/नई दिल्ली | उत्तराखंड के चमोली जिले और देश की राजधानी दिल्ली से गुरुवार को दो दिल दहला देने वाली घटनाएं सामने आईं। पहली घटना में कर्णप्रयाग के पास बमोथ पुल से एक बुजुर्ग महिला ने अलकनंदा नदी में छलांग लगा दी, वहीं दूसरी ओर दिल्ली की रोहिणी अदालत ने एक पिता को अपनी नाबालिग बेटी के साथ बलात्कार करने के आरोप में 20 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई।
पहला मामला: बमोथ पुल से नदी में कूदी बुजुर्ग महिला, तलाश जारी
गुरुवार दोपहर चमोली जिले के गौचर क्षेत्र में स्थित बमोथ पुल से एक बुजुर्ग महिला ने अलकनंदा नदी में छलांग लगा दी। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, महिला पुल पर अकेली खड़ी थी और स्थानीय लोग जब तक उसे रोक पाते, वह नीचे छलांग लगा चुकी थी।
एसडीआरएफ और पुलिस की टीमें मौके पर पहुंच गई हैं और तलाशी अभियान जारी है, लेकिन समाचार लिखे जाने तक महिला का कोई सुराग नहीं मिला था।
स्थानीय सूत्रों का कहना है कि महिला मानसिक रूप से अस्वस्थ थी और कई बार बिना किसी को बताए घर से निकल जाती थी। घटना के बाद पूरे क्षेत्र में शोक और बेचैनी का माहौल है।
दूसरा मामला: दिल्ली में बेटी संग बलात्कार करने वाले पिता को 20 साल की सजा
दिल्ली की रोहिणी कोर्ट ने एक दिल दहला देने वाले मामले में गुरुवार को फैसला सुनाया। एक पिता को अपनी नाबालिग बेटी के साथ बलात्कार के मामले में दोषी करार देते हुए अदालत ने 20 साल के कठोर कारावास और ₹10,000 के जुर्माने की सजा सुनाई।
घटना 30 दिसंबर 2021 की है, जब पीड़िता अपनी मां की मृत्यु के बाद अपने नाना-नानी के पास से पिता के घर आई थी। पीड़िता ने बताया कि पिता ने उससे दुष्कर्म किया। जब उसने भागने की कोशिश की, तो आरोपी ने उसके चेहरे को अपने नाखूनों से खरोंच दिया।
अदालत ने यह भी आदेश दिया कि दिल्ली विधिक सेवा प्राधिकरण पीड़िता को ₹10.5 लाख का मुआवजा देगा। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अजय नागर ने कहा, “यह अपराध सिर्फ एक व्यक्ति का नहीं बल्कि समाज के विश्वास का हनन है। बच्चों के खिलाफ ऐसे अपराधों को किसी भी हाल में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।”
न्याय का संदेश और समाज की चिंता
जहां एक ओर चमोली की महिला के मामले ने मानसिक स्वास्थ्य और बुजुर्गों की देखभाल पर सवाल खड़े कर दिए हैं, वहीं दूसरी ओर दिल्ली की घटना ने उस विश्वास को झकझोर दिया है, जो एक बेटी अपने पिता पर करती है।
दोनों घटनाएं अलग-अलग हैं, परंतु समाज की दो बड़ी विफलताओं की ओर इशारा करती हैं — एक, बुजुर्गों की उपेक्षा और मानसिक स्वास्थ्य की अनदेखी; दूसरी, अपने ही घर में बेटियों की सुरक्षा पर बढ़ता खतरा।