
नई दिल्ली। मणिपुर में जारी राजनीतिक अस्थिरता और जातीय हिंसा की पृष्ठभूमि में केंद्र सरकार ने राष्ट्रपति शासन की अवधि को छह महीने के लिए और बढ़ा दिया है। यह विस्तार 31 अगस्त 2025 से प्रभावी होगा। गृह मंत्री अमित शाह द्वारा संसद में प्रस्तुत वैधानिक संकल्प को दोनों सदनों ने पारित कर दिया, जिससे संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत राज्य में केंद्रीय शासन की अवधि को अधिकृत स्वीकृति मिल गई।
क्या कहा गया संसद में?
गृह मंत्री ने संसद में कहा:
“राज्य में अभी भी कानून-व्यवस्था पूरी तरह बहाल नहीं हुई है। जातीय हिंसा के घाव गहरे हैं और प्रशासनिक ढांचा सामान्य रूप से कार्य नहीं कर पा रहा। इस स्थिति में विधानसभा का गठन करना जल्दबाजी होगी। शांति बहाली के प्रयास अभी जारी हैं और उन्हें सफल होने के लिए समय चाहिए।”
प्रस्ताव में कहा गया:
“यह सदन राष्ट्रपति द्वारा 13 फरवरी 2025 को जारी उद्घोषणा को 13 अगस्त 2025 से आगामी छह महीने के लिए लागू रखने का अनुमोदन करता है।”
पृष्ठभूमि: कब और क्यों लगा राष्ट्रपति शासन?
फरवरी 2025 में मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने हिंसा और अराजकता के चलते पद से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद मणिपुर विधानसभा को भंग कर दिया गया और राष्ट्रपति शासन लागू किया गया। मणिपुर में मई 2023 से कुकी और मैतेई समुदायों के बीच फैली जातीय हिंसा अब तक 260 से अधिक जानें ले चुकी है। हजारों लोग बेघर हो चुके हैं और आज भी शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं।
विपक्ष का रुख और सवाल
हालांकि केंद्र सरकार ने निर्णय को “प्रशासनिक आवश्यकता” बताया है, लेकिन विपक्ष ने इस कदम को राजनीतिक विफलता करार दिया।
कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई ने कहा:
“एक साल से अधिक समय से मणिपुर जल रहा है और सरकार अब भी स्थायी समाधान नहीं खोज पाई। राष्ट्रपति शासन का विस्तार एक अस्थायी मरहम है, स्थायी इलाज नहीं।”
टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने आरोप लगाया कि सरकार ने “मणिपुर की आवाज़ को दबा दिया है” और संवैधानिक प्रक्रिया का विकल्प बना दिया है।
स्थिति की जमीनी हकीकत
वर्तमान में मणिपुर के कई हिस्सों में सैन्य तैनाती के बावजूद साम्प्रदायिक तनाव बना हुआ है। शैक्षणिक संस्थानों, परिवहन और सामान्य जीवन पर गहरा असर पड़ा है। कई नागरिक संगठनों का कहना है कि भरोसे की बहाली और सांप्रदायिक वार्तालाप के बिना राजनीतिक पुनर्स्थापना संभव नहीं।
संविधान के अनुच्छेद 356 का उपयोग
अनुच्छेद 356 के तहत, जब किसी राज्य की शासन व्यवस्था संविधान के अनुसार नहीं चल पाती, तो राष्ट्रपति केंद्र की सिफारिश पर राज्य में सीधे शासन लागू कर सकते हैं। हालांकि यह प्रावधान अस्थायी माना जाता है और सामान्यतः छह माह के लिए लागू होता है। विशेष परिस्थितियों में संसद की अनुमति से इसे तीन वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है।
अगला कदम क्या होगा?
केंद्र सरकार ने संकेत दिया है कि अगले छह महीनों में शांति स्थापना, राहत कार्यों की समीक्षा और विस्थापितों के पुनर्वास को प्राथमिकता दी जाएगी। साथ ही राजनीतिक दलों के साथ वार्ता शुरू कर चुनाव की संभावनाएं तलाशने की भी बात कही गई है।
निष्कर्ष: मणिपुर की आग बुझी नहीं
मणिपुर में राष्ट्रपति शासन का विस्तार केवल एक संवैधानिक औपचारिकता नहीं है, बल्कि इस बात का सूचक है कि राज्य आज भी गहरे संकट से गुजर रहा है। सवाल यही है — क्या अगले छह महीने मणिपुर में सियासी स्थिरता और सामाजिक एकता बहाल कर पाएंगे, या फिर यह केवल एक और टालमटोल भरा निर्णय साबित होगा?