
नई दिल्ली। भारत-चीन संबंधों में लगभग पाँच वर्षों की दूरी के बाद एक नई बयार चलने लगी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की संभावित चीन यात्रा से ठीक पहले भारत सरकार ने एक बड़ा और प्रतीकात्मक कदम उठाते हुए चीनी नागरिकों के लिए पर्यटक वीज़ा सुविधा को बहाल करने की घोषणा की है। यह महज एक पर्यटन संबंधी निर्णय नहीं, बल्कि भारत की बहुस्तरीय कूटनीति का हिस्सा है, जिसके माध्यम से वह सीमित सहयोग, रणनीतिक सख्ती और संतुलित संवाद के सूत्रों को साधना चाहता है।
गलवान के बाद अब ‘ग्लोबल मैसेजिंग’ का दौर
2020 की गलवान घाटी की हिंसक झड़प भारत-चीन संबंधों में एक निर्णायक मोड़ साबित हुई थी। उसके बाद दोनों देशों के बीच न केवल सैन्य, बल्कि राजनयिक, सांस्कृतिक और आर्थिक स्तर पर भी संवाद लगभग ठप हो गया था। भारत ने सुरक्षा चिंताओं को ध्यान में रखते हुए चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध लगाए, निवेश परियोजनाओं को पुनः समीक्षा के दायरे में लिया और चीनी पर्यटकों के लिए वीज़ा निलंबित कर दिया।
अब, जब प्रधानमंत्री मोदी अगस्त में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए चीन जाने की संभावना है, तो इससे पहले भारत का यह कदम इस दिशा में एक “टोन सेटिंग” की तरह देखा जा रहा है। यह भारत का स्पष्ट संदेश है कि वह सीमा विवादों पर सख्त रुख अपनाए रखते हुए अन्य क्षेत्रों में संवाद के दरवाजे खुले रखना चाहता है।
भारत के फैसले के तीन मुख्य संकेत
- राजनयिक संकेत:
यह कदम दर्शाता है कि भारत चीन के साथ सम्पर्क बनाए रखने में रुचि रखता है। पीएम मोदी की यात्रा से पहले यह संकेत देना कि भारत शांति और संवाद के पक्ष में है, अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की परिपक्वता और रणनीतिक संतुलन को दर्शाता है। - सांस्कृतिक और आर्थिक संकेत:
भारत के पर्यटन उद्योग को कोविड और फिर चीन के साथ गतिरोध के चलते भारी नुकसान हुआ। चीनी पर्यटक बड़ी संख्या में भारत के बौद्ध स्थलों, आयुर्वेदिक केंद्रों और ऐतिहासिक धरोहरों में रुचि रखते हैं। साथ ही, वे खर्च करने वाले पर्यटकों की श्रेणी में आते हैं। वीज़ा बहाली से पर्यटन, विमानन और होटल इंडस्ट्री को नई ऊर्जा मिलेगी। साथ ही यह सांस्कृतिक संवाद को भी प्रोत्साहित करेगा। - रणनीतिक आर्थिक संकेत:
चीन भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। भारत जानता है कि पूर्ण बहिष्कार संभव नहीं है, लेकिन रणनीतिक क्षेत्रों में सतर्कता जरूरी है। भारत की यह नीति अब “व्यापक आर्थिक सहयोग, सीमित रणनीतिक साझेदारी” की ओर झुकती दिख रही है।
चुनौतियाँ और जोखिम बरकरार
हालांकि यह पहल सकारात्मक है, लेकिन इससे जुड़ी कई जमीनी चुनौतियाँ भी हैं।
- सीमा विवाद अब भी अनसुलझा है, और सैन्य स्तर की बातचीत पूरी नहीं हुई है।
- जनता में चीन के प्रति अविश्वास अब भी गहरा है। ऐसे में यह फैसला राजनीतिक आलोचना का कारण बन सकता है।
- चीन का दोहरा रवैया, विशेषकर ऑपरेशन ‘सिंदूर’ के दौरान पाकिस्तान को सैन्य समर्थन देना, भारत की रणनीतिक चेतना के लिए चेतावनी है।
भारत को अपनी सीमाओं पर चौकसी, साइबर सुरक्षा, और डेटा प्रोटेक्शन के मोर्चे पर बेहद सतर्क रहना होगा—विशेष रूप से प्रधानमंत्री की चीन यात्रा के दौरान।
चीन का रुख और संकेत
बीजिंग ने भारत के वीज़ा बहाली के फैसले का स्वागत किया है, जो यह दर्शाता है कि वह भी फिलहाल रिश्तों को अत्यधिक तनावपूर्ण बनाए रखने के पक्ष में नहीं है। यह “माहौल निर्माण” की प्रक्रिया की शुरुआत हो सकती है, लेकिन इसे भारत-चीन संबंधों के मूलभूत सुधार के रूप में देखना जल्दबाजी होगी।
प्रधानमंत्री की यात्रा से संभावित दिशा
यदि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीन की यात्रा पर जाते हैं, तो यह न केवल SCO की बैठक में भागीदारी होगी, बल्कि संबंधों को संभालने की एक नई कूटनीतिक कवायद भी होगी। भारत के सामने यह चुनौती होगी कि वह वहां पर किसी भी आर्थिक साझेदारी की बातचीत के दौरान अपने रणनीतिक क्षेत्रों जैसे 5G, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, डेटा इंफ्रास्ट्रक्चर आदि को चीनी निवेश से दूर रखे।
चीनी पर्यटकों के लिए वीज़ा बहाल करना एक कूटनीतिक ‘गुडविल जेस्चर’ है, लेकिन यह भारत की ‘कड़ी-सॉफ्ट’ नीति को भी दर्शाता है—जहां भारत अपनी सुरक्षा और रणनीतिक हितों से समझौता किए बिना, संबंधों में संवाद और संतुलन के लिए तैयार है। भारत जानता है कि आज की वैश्विक राजनीति में “संपूर्ण टकराव” की नीति आत्मघाती है। इसीलिए वह चीन के साथ एक “वॉचफुल एंगेजमेंट” की रणनीति पर चल रहा है—जहां बातचीत के दरवाजे खुले हैं, लेकिन निगरानी की आंखें हर वक्त सतर्क हैं।