गोरखपुर। अगर आप कोई दवा खरीद रहे हैं तो एक्सपायरी डेट जरूर चेक कर लें। ऐसा इसलिए कि धंधेबाज एक्सपायरी डेट की दवाएं गांव-कस्बों में खपा दे रहे हैं। गांव-कस्बों के फुटकर विक्रेता धंधेबाजों से कम मूल्य पर इसे खरीद लेते हैं और पांच से लेकर 30 प्रतिशत तक की छूट देकर ग्रामीण इलाकों में लोगों को बेच देते हैं। लोग ये दवाएं खाते हैं और असर न होने से उनका मर्ज बढ़ता चला जाता है। डॉक्टरों का कहना है कि एक्सपायरी डेट वाली दवाएं खाने से शरीर में संक्रमण बढ़ने लगता है। इन दवाओं को इस्तेमाल जानलेवा भी हो सकता है।
पूर्वांचल में गोरखपुर दवाओं की सबसे बड़ी मंडी के तौर पर विकसित हो चुका है। यहां बड़े पैमाने पर थोक व फुटकर कारोबारी काम कर रहे हैं। इन दुकानों पर बिक्री के लिए रखी दवाएं एक्सपायर होने के तीन महीने के भीतर एजेंसी वापस लेती है। लेकिन ऐसा कम ही हो पाता है। फुटकर विक्रेता अपने थोक विक्रेता को दवा वापस करेगा और थोक विक्रेता इसे एजेंसी को वापस करेगा। प्रक्रिया पूरी होने में वक्त लग जाता है। इससे दुकानदारों को नुकसान का डर सताता है। इसी डर का फायदा धंधेबाज उठाते हैं।
दवाओं की एक्सपायरी डेट जब नजदीक आ जाती है तो धंधेबाज, इसे गांव- कस्बों के फुटकर दुकानदारों को कम रेट में बेच देते हैं। अधिक मुनाफा मिलने के चलते ये फुटकर दुकानदार अपनी दुकान पर एमआरपी पर छूट देकर इसे ग्राहकों को बेच देते हैं। महंगी दवाएं कम रेट में मिलने के लालच में लोग ऐसी दवाएं आसानी से खरीद लेते हैं। गोरखपुर से बड़हलगंज, देवरिया जिले के रुद्रपुर, कुशीनगर जिले के हाटा के अलावा पड़ोसी प्रांत बिहार के गोपालगंज के कुछ दुकानदार ले जाते हैं, जिसे वे अपने यहां से अन्य दुकानों पर सप्लाई कर देते हैं।
दवाओं के धंधेबाजों पर कार्रवाई नहीं होने की असल वजह सरकारी तंत्र की सुस्ती है। अगर आंकड़ों की बात करें तो जिले में इस साल जनवरी से अब तक 136 दवाओं के सैंपल लिए गए, लेकिन रिपोर्ट सिर्फ 75 की आई। जिला अस्पताल गेट के सामने की चार दुकानों से जो सैंपल लिए गए, उनकी भी रिपोर्ट अब तक नहीं मिली। जिन 75 दुकानों की रिपोर्ट आई, उनमें से केवल दो सैंपल ही मानक से कम पाए गए।
अब इसकी रिपोर्ट शासन को गई है, जिसके बाद संबंधित दवाओं के निर्माताओं को पत्र भेजा जाएगा। पिछले साल भी दो दुकानों की दवा का सैंपल मानक के अनुरूप नहीं मिला था। लेकिन रिपोर्ट को ही कंपनियों ने चैलेंज कर दिया, जिसके बाद दोनों सैंपल अब जांच के लिए कोलकाता भेजे गए हैं। इस तरह देखें तो दो साल में एक भी धंधेबाज पर कार्रवाई नहीं हो पाई।
एमडी मेडिसिन डॉ. राजेश कुमार ने कहा कि एक्सपायरी डेट का मतलब है कि दवा में मौजूद साल्ट की क्षमता उस तिथि तक समाप्त हो जाएगी। इसलिए ऐसी दवाएं एक्सपायरी डेट के बाद बेअसर हो जाती हैं। कुछ दवाएं ऐसी होती हैं, जिनके एक्सपायर होने के बाद उपयोग पर शरीर में प्रतिरोध होने के चलते एलर्जी के लक्षण दिखते हैं। मरीजों को सीधा नुकसान यह होता है कि अगर वे एक्सपायर हो चुकी दवा का उपयोग कर रहे हैं, तो उनका रोग ठीक नहीं होगा।
ड्रग इंस्पेक्टर जय कुमार सिंह ने कहा कि जो भी सैंपल भेजे जाते हैं, उनकी जांच में ढाई से तीन महीने का वक्त लगता है। जिला अस्पताल के सामने की दुकानों से जो सैंपल लिए गए थे, उनकी रिपोर्ट अभी नहीं आई है। एक नर्सिंग होम व एक अन्य दुकान के सैंपल की रिपोर्ट आई है, जिसमें दवा की गुणवत्ता का स्तर मानक से कम पाया गया है। इसकी जांच कर दवा निर्माता कंपनी को नोटिस भेजा जाएगा। पिछले साल के दो सैंपल की रिपोर्ट पर संबंधित कंपनियों की तरफ से आपत्ति जताई गई है, जिसके बाद सैंपल को दोबारा जांच के लिए कोलकाता भेजा गया है।
एक्सपायरी दवाओं के निस्तारण का यह है नियम
- हर दवा की दुकान पर एक कोना एक्सपायरी दवाओं के लिए रखना होता है। वहां मोटे अक्षरों में एक्सपायरी दवाएं लिखना होता है।
- इन एक्सपायर हो चुकी दवाओं को अगर निर्माता कंपनी वापस नहीं लेती है तो गड्ढा खोदकर इसका निस्तारण करना होता है।
- जांच के दौरान दुकानदार को एक्सपायरी दवाओं के बारे में भी जानकारी देनी होती है।