
कानपुर | कानपुर में कफ सिरप और टैबलेट बनाने वाली तीन स्थानीय दवा कंपनियों — सिनिकेम, टेक्नोफार्मा और एक अन्य फर्म — ने अपना उत्पादन लाइसेंस सरेंडर करने का निर्णय लिया है।
कंपनियों का कहना है कि बाहरी राज्यों की सस्ती दवाओं और ड्रग एंड कॉस्मेटिक्स अधिनियम के कठोर प्रावधानों के कारण छोटे उद्यमों के लिए कारोबार जारी रखना मुश्किल हो गया है।
थोक दवा व्यापारियों के अनुसार, जन औषधि केंद्रों में सस्ती दवाओं की उपलब्धता ने स्थानीय निर्माण इकाइयों पर और दबाव बढ़ा दिया है। ऐसी स्थिति में स्थानीय फर्मों के लिए कम लागत पर दवाएं तैयार करना आर्थिक रूप से संभव नहीं रह गया।
कड़ी जांच के बाद बढ़ा दबाव
हाल ही में राजस्थान और मध्य प्रदेश में कफ सिरप पीने से बच्चों की मौत की घटनाओं के बाद कानपुर में ड्रग विभाग ने कई मेडिकल स्टोरों और दवा निर्माण इकाइयों पर छापेमारी की थी। जांच में कई खामियां सामने आने पर कुछ फर्मों की खरीद-बिक्री पर रोक लगा दी गई। आठ अक्तूबर को दादानगर स्थित सिनिकेम लैबोरेट्रीज पर छापा पड़ा था, जहां जहरीले कफ सिरप की आशंका पर जांच की गई, लेकिन उत्पादन बंद मिला।
फर्म संचालक नरेंद्र कुमार गुप्ता और यश गुप्ता ने बताया कि उन्होंने एलोपैथिक दवाओं का उत्पादन बंद कर अब आयुर्वेदिक सिरप बनाना शुरू कर दिया है। उनका कहना है कि एलोपैथ में निवेश और नियम दोनों इतने कठिन हैं कि छोटी इकाइयों के लिए इसे जारी रखना व्यवहारिक नहीं रह गया है।
उद्योग जगत की राय
दवा व्यापार मंडल के अध्यक्ष राजेंद्र सैनी के अनुसार, हरिद्वार, हिमाचल प्रदेश और हरियाणा जैसे राज्यों में दवा उद्योगों को सरकारी सब्सिडी मिलती है, जिससे वहां की कंपनियां उत्पादन लागत घटाकर दवाएं सस्ते दामों में बेच पाती हैं। उत्तर प्रदेश में ऐसी कोई राहत न मिलने के कारण स्थानीय उत्पाद महंगे पड़ते हैं। उन्होंने कहा कि,
“लागत बढ़ने, प्रतिस्पर्धा तीव्र होने और सब्सिडी न मिलने से उद्यमियों का मनोबल टूट रहा है। यही वजह है कि फर्में अब उत्पादन बंद कर रही हैं।”
फर्मों के समर्पण के मुख्य कारण
- बाहरी राज्यों की बड़ी कंपनियों से कड़ी प्रतिस्पर्धा।
- कम लागत और बड़े उपकरणों वाली इकाइयों का दबदबा।
- कच्चे माल की महंगी दर और सीमित पहुंच।
- ड्रग एंड कॉस्मेटिक्स अधिनियम के शेड्यूल ‘एम’ के तहत भारी निवेश की जरूरत।
- सरकारी सब्सिडी या राहत का अभाव।
ड्रग विभाग के अधिकारियों ने पुष्टि की है कि आवेदन की प्रक्रिया चल रही है और जो भी फर्में मानकों का पालन नहीं कर पा रहीं, वे लाइसेंस समर्पण का रास्ता चुन रही हैं।







