
पाटन (गुजरात)। भारत की धरोहरों में से एक अनमोल रत्न ‘रानी की वाव’ अपनी स्थापत्य भव्यता और अद्भुत कलात्मकता के लिए न केवल गुजरात, बल्कि पूरी दुनिया में विख्यात है। 11वीं शताब्दी में निर्मित यह सीढ़ीदार बावड़ी सिर्फ़ जल-संग्रहण की संरचना नहीं, बल्कि प्रेम, श्रद्धा और भारतीय कला के उत्कर्ष का जीता-जागता प्रतीक है। आज यह स्मारक यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल (UNESCO World Heritage Site) के रूप में मान्यता प्राप्त कर विश्व पर्यटन मानचित्र पर गर्व से चमक रहा है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: प्रेम और स्मृति का स्मारक
रानी की वाव का निर्माण सोलंकी वंश की रानी उदयमती ने अपने पति राजा भीमदेव प्रथम (1022-1064 ई.) की स्मृति में करवाया था। पति की याद में बनवाई गई इस बावड़ी का नाम पड़ा ‘रानी की वाव’।
इतिहासकार मानते हैं कि यह केवल शोक-स्मृति का प्रतीक नहीं, बल्कि उस दौर की स्थापत्य दक्षता, सामाजिक सोच और जल प्रबंधन की गहरी समझ का अनोखा उदाहरण है।
स्थापत्य की भव्यता
- रानी की वाव लगभग 64 मीटर लंबी, 20 मीटर चौड़ी और 27 मीटर गहरी है।
- इसमें कुल सात मंज़िलें बनी हैं और हर मंज़िल पर खूबसूरत चौक तथा सीढ़ियाँ हैं, जो नीचे उतरते हुए मानो एक भव्य मंदिर का अहसास कराती हैं।
- बावड़ी की दीवारों और स्तंभों पर 500 से अधिक बड़ी मूर्तियाँ और 1000 से अधिक लघु मूर्तियाँ अंकित हैं।
- इनमें भगवान विष्णु के दशावतार, देवी-देवताओं, अप्सराओं, ऋषियों और सामान्य जनजीवन के दृश्य देखने को मिलते हैं।
विशेषज्ञ बताते हैं कि यह संरचना इस मायने में अद्वितीय है कि इसे केवल जल-संग्रहण के लिए नहीं, बल्कि एक भूमिगत मंदिर के रूप में डिज़ाइन किया गया था।
कलात्मक उत्कृष्टता
रानी की वाव की नक्काशी इतनी बारीक और जीवंत है कि पत्थरों पर उकेरे गए आभूषण, भाव-भंगिमाएँ और मुद्राएँ आज भी दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देती हैं।
विशेष आकर्षण:
- भगवान विष्णु के दशावतार की शृंखला
- मोहक अप्सराएँ और नृत्य मुद्राएँ
- दैनिक जीवन के दृश्य, जो 11वीं शताब्दी की सामाजिक झलक दिखाते हैं
पुरातत्वविदों का कहना है कि यहाँ का हर शिल्प भारतीय शास्त्रीय कला का जीवंत दस्तावेज़ है।
आधुनिक दौर में पहचान
- 2014 में यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर स्थल घोषित किया।
- 2016 में भारतीय रिज़र्व बैंक ने इसे ₹100 के नए नोट की डिज़ाइन पर स्थान दिया, जिससे यह भारत के हर नागरिक की पहचान से जुड़ गया।
- यहाँ समय-समय पर ‘रानी की वाव फेस्टिवल’ आयोजित होता है, जिसमें गुजरात की लोककला, संगीत और सांस्कृतिक विविधता झलकती है।
संरक्षण और पर्यटन
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) इस धरोहर के संरक्षण की ज़िम्मेदारी निभा रहा है। आधुनिक रोशनी और मार्गदर्शक सुविधाओं के कारण यह स्थान अब अंतरराष्ट्रीय पर्यटकों का भी पसंदीदा ठिकाना बन गया है।
हर वर्ष हज़ारों सैलानी यहाँ आते हैं और भारत की महान स्थापत्य परंपरा को नमन करते हैं।
कैसे पहुँचे?
- हवाई मार्ग: अहमदाबाद हवाई अड्डा (लगभग 125 किमी)
- रेल मार्ग: मेहसाणा और पाटन रेलवे स्टेशन
- सड़क मार्ग: अहमदाबाद और गांधीनगर से पाटन तक अच्छी सड़क सुविधा उपलब्ध
धरोहर का महत्व
रानी की वाव केवल एक स्थापत्य धरोहर नहीं, बल्कि भारत के प्राचीन जल प्रबंधन मॉडल की झलक है। यह दिखाती है कि हमारे पूर्वज किस तरह विज्ञान, कला और आध्यात्मिकता को एक सूत्र में पिरोते थे।
आज जब दुनिया जल संकट और पर्यावरणीय चुनौतियों से जूझ रही है, रानी की वाव न सिर्फ़ अतीत की स्मृति है बल्कि भविष्य के लिए एक सीख भी है।