
प्रयागराज। नलाइन गेम किस कदर खतरनाक हो सकता है, इसकी बानगी कुंडा कमालापुर के देवीगंज गांव में सामने आई, जब यू-ट्यूब पर वीडियो देखकर एक किशोर ने खेल-खेल में बच्चे के गले की नस दबाई। इससे न सिर्फ बच्चा बेहोश हुआ, बल्कि उसकी जान खतरे में पड़ गई। गंभीर हालत में उसे प्रयागराज के निजी अस्पताल में न्यूरो सर्जन के पास लाया गया, जहां उसका इलाज चल रहा है।
ऑनलाइन गेम की लत में पड़कर कई बच्चे, किशोर और युवा जान गंवा चुके हैं। वहीं मोबाइल पर रील बनाने के लिए भी खतरों से खेला जा रहा है। ताजा मामले में मुंबई से कुंडा कमालापुर के देवीगंज गांव रिश्तेदारी में पहुंचे 11 साल के अहमान की जान खतरे में पड़ गई। दरअसल, शादी समारोह में माता-पिता के साथ पहुंचा अहमान चार-पांच दोस्तों के साथ यू-ट्यूब पर वीडियो देखकर गेम खेल रहा था। इसमें गर्दन की एक विशेष नस दबाने के बाद व्यक्ति बेहोश हो जाता है।
इसके बाद गाल पर थप्पड़ मारने से उसे होश में लाया जाता है। जब यही ट्रिक एक साथी किशोर ने अहमान पर आजमाई तो वह भी बेहोश हो गया। दोस्तों ने थप्पड़ मारकर उसे होश में तो ला दिया, मगर अहमान को पैंट में बाथरूम होने तक का पता नहीं चला। अहमान के परिजनों ने बताया कि जब उन्होंने कमरे में जाकर देखा तो उसके मुंह से झाग निकल रहा था, पानी गले के नीचे नहीं उतर रहा था, वह चल-फिर भी नहीं पा रहा था और चेहरा लाल हो गया था।
आनन-फानन उसे प्रयागराज में निजी चिकित्सक के पास ले जाया गया। यहां वरिष्ठ न्यूरो सर्जन डॉ. प्रकाश खेतान ने बताया कि जब बच्चे का एमआरआई कराया गया तो देखा कि उसके दिमाग को ब्लड सप्लाई करने वाली कैरोटिड धमनी के दब जाने से दिमाग को ऑक्सीजन नहीं मिल पा रही। इस वजह से बच्चे को मिर्गी का दौरा आने लगा और उसका हाथ-पैर कमजोर पड़ गया था। पांच दिन उपचार के बाद बच्चा अब अपने पैरों पर चलने लगा है। जिस किशोर ने अहमान के गले की नस दबाकर उसे बेहोश किया, वह पहले भी कई बार इस तरह यू-ट्यूब पर वीडियो देखकर खतरनाक खेल कर चुका है। जब उससे घटना के बारे में पूछा गया तो उसने बताया कि पहले भी कई बार लोगों को बेहोश कर वह दोबारा होश में ला चुका है।
वह अक्सर मोबाइल पर वीडियो देखकर ऐसा खतरनाक गेम हकीकत में खेलता है। बताया जा रहा है कि वह यह सब रील बनाने के लिए भी करता है। इस प्रकार के कई मामले सामने आ रहे हैं, जहां पर बच्चे ऑनलाइन गेम खेलकर जान जोखिम में डाल रहे हैं। अगर इस बच्चे को लाने में थोड़ी सी और देरी हो जाती, तो बच्चे की जिंदगी मुश्किल में पड़ सकती थी। फिलहाल बच्चा ठीक है और उसका इलाज चल रहा है।-डॉ. प्रकाश खेतान, वरिष्ठ न्यूरो सर्जन। बच्चों में हिंसात्मक गेम खेलने के कई मामले सामने आ रहे हैं। ऐसे में माता-पिता को चाहिए कि वह अपने बच्चे को अगर मोबाइल देते हैं, तो कम से कम 18 वर्ष की उम्र तक कड़ी नजर रखें कि वह मोबाइल का इस्तेमाल कैसे कर रहा है। समय-समय पर संवाद करें और बच्चो को आउटडोर गतिविधियों के लिए प्रोत्साहित करें.