देहरादून। नगर निकाय चुनावों में एक बार फिर दल-बल न होते हुए भी जनता का दिल जीतने में निर्दल कामयाब रहे। पिछले तीन चुनावों की भांति निर्दलीय प्रत्याशियों ने इस बार भी निकायों में अध्यक्ष पदों पर दमदार प्रदर्शन किया है तो पार्षद-सभासद व सदस्य पदों पर अपनी चमक बिखेरी है। तमाम निकायों में निर्दलीयों के पक्ष में आए जनादेश ने एक प्रकार से सियासी दलों को आइना दिखाने का काम भी किया है।
उत्तराखंड में 100 नगर निकायों के चुनाव में इस बार भी बड़ी संख्या में निर्दलीय प्रत्याशियों की धमक रही। इनमें भाजपा व कांग्रेस के ऐसे कार्यकर्ताओं की भी अच्छी-खासी संख्या है, जो दमदार दावेदारी करने के बावजूद टिकट से वंचित रह गए और फिर बागी तेवर अपनाकर मैदान में उतरे। चुनाव में क्षेत्र में छवि, व्यवहार और जनता के बीच पकड़ के साथ ही सहानुभूति लहर इनकी जीत का बड़ा आधार भी बना। यह तस्वीर सियासी दलों के प्रत्याशी चयन में की गई चूक को भी दर्शाती है।
खैर, वर्ष 2008 निकाय चुनाव से अब तक के परिदृश्य को देखें तो निर्दलीयों ने हर बार ही दमदार उपस्थिति दर्ज कराई है। वर्ष 2008 में निर्दलीयों ने अध्यक्ष के 22 पदों और पार्षद-सभासद व सदस्य पदों पर 300 ने जीत हासिल की थी। इसी तरह वर्ष 2013 में 22 अध्यक्ष पद और पार्षद-सभासद व सदस्य के 369 पदों पर कब्जा जमाया था। वर्ष 2018 में भी निर्दलीयों ने अध्यक्ष के 23 और पार्षद-सभासद व सदस्य के 450 से अधिक पदों पर जीत दर्ज की थी।
इस बार की तस्वीर देखें तो रात आठ बजे तक अध्यक्ष के 13 और पार्षद-सभासद व सदस्य के 305 पदों पर. निर्दलीय जीत चुके थे, जबकि अध्यक्ष के सात और पार्षद-सभासद व सदस्य के 108 पदों पर आगे चल रहे थे। निकायों में निर्दलीयों की यह धमक दर्शाती है कि शहरी क्षेत्रों में जनता के बीच प्रत्याशी की छवि और उसका जुझारूपन अधिक असर डालता है।
निकायों में निर्दलीयों की धमक
वर्ष, अध्यक्ष पदों पर जीत
2008, 22
2013, 22
2018, 23
2025, 13 अब तक जीते (सात पदों पर आगे)