देहरादून। राज्य सरकार के गोल्डन कार्डधारी पेंशनरों को, राज्य स्वास्थ्य योजना के अंतर्गत घोषित, उच्च स्तरीय स्वास्थ्य सेवाओं की सुलभता में हो रही कठिनाइयों को दूर करने की मांग। उत्तराखंड पेंशनर्स समन्वय समिति के सदस्य सचिव सुशील त्यागी ने मुख्यमंत्री धामी तथा मुख्य सचिव को पत्र भेजकर पेंशनर्स से संबंधित दिक्कतों को गिनाते हुए बताया है की शासनादेश दिनांक 25 नवंबर 2021 के द्वारा योजना जारी करते हुए शासन ने बीमार पेंशनर्स को उच्च स्तरीय स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने का निर्णय लिया था! लेकिन धरातल पर निम्न स्तर की सुविधा भी मुश्किल से मिल रही है। नेत्ररोग ऑपरेशन में लैंस के रेट 10 हजार से 50 हजार तक हैं। परंतु उच्च स्तरीय महंगे लेंस की जगह साधारण लैंस की सुविधा मिलती है। इसी तरह हृदय रोगों में स्टंट भी उच्च स्तरीय न होकर साधारण स्तर के लगाए जाते हैं।
दांतों के रोगों में भी यही हाल है। इस व्यवस्था में भी बदलाव जरूरी है। त्यागी का कहना है की राज्य के लगभग 30,000 गोल्डन कार्ड धारी पेंशनर्स अगस्त 2022 में स्वेच्छा से राज्य स्वास्थ्य योजना से बाहर हो गए थे। वे अब स्वेच्छा से अपनी पेंशन से अंशदान करके दोबारा इस योजना से जुड़ना चाहते हैं और दो साल से इस बारे में लगातार सरकार से मांग करते चले आ रहे हैं परन्तु जनहित से संबंधित इस मांग, जिसपर सरकार का धेला भी खर्च नहीं होना, पर कोई फैसला नहीं किया गया जो दुखद है। इसलिए पेंशनर्स से दुबारा विकल्प लेकर, इन्हें योजना में मासिक अंशदान करने की शर्त के साथ शामिल होने का पुनः अवसर दिया जाए।
यह योजना सरकारी पैसों से संचालित ना होकर पेंशनर्स के मासिक अंशदान से संचालित है।त्यागी ने कहा है राज्य स्वास्थ्य प्राधिकरण चिट फंड एवं सोसाइटी एक्ट के अंतर्गत पंजीकृत सोसायटी है परन्तु इसमें साझेदार हितग्राही पेंशनर्स को शामिल ही नहीं किया गया है जो जरूरी था। इसके कारण पेंशनर्स अपनी दिक्कतों को प्राधिकरण की बैठकों में औपचारिक रूप से नहीं रख सके। इसलिए अब राज्य के पेंशनर संगठनों के अध्यक्षों/ सचिवों को इसमें शामिल किया जाना जरूरी है। त्यागी का यह भी कहना है की गंभीर रोगों से ग्रस्त असहाय पेंशनर्स को आपात स्थिति मे अपनी जिंदगी को बचाने की जद्दोजहद पहले होती है को, योजना में सम्बद्ध सूचीबद्ध/ गैर सूचीबद्ध अस्पतालों में गोल्डन कार्ड के आधार पर बिना किसी अन्य औपचारिकता तथा तकनीकी बहानेबाजी के,तत्काल भर्ती कर चिकित्सा सेवाएं उपलब्ध कराया जाना सुनिश्चित किया जाए।
सर्वोच्च न्यायालय भी इस संबंध में सकारात्मक निर्देश दे चुका है। चिट्ठी के आखिर में त्यागी ने कहा है की राज्य के सभी राजकीय/ गैर राजकीय सूचीबद्ध अस्पतालों में पेंशनर्स को आउटडोर पेशेंट के रूप में सभी जांचे,दवाइयां निशुल्क उपलब्ध कराते हुए ओपीडी को पूर्णतया कैशलेस बनाया जाए। क्योंकि चिकित्सा प्रतिपूर्ति की औपचारिकताओं को पूर्ण करने में अशक्त पेंशनर्स को मानसिक शारीरिक कठिनाइयां/उत्पीड़न होता हैं और चिकित्सा करने की दशा में हुए वास्तविक खर्चों का आधा अधूरा ही पेमेंट मिलता है इसलिए भी ओपीडी को पूर्णतया कैशलेस बनाया जाना जरूरी है।
प्रेषक- सुशील त्यागी सेवानिवृत जिला मनोरंजन कर अधिकारी, सदस्य सचिव, उत्तराखंड पेंशनर्स समन्वय समिति ।9897287147