टीकमगढ़। जिन मासूमों को अपराध का ए भी नहीं आता है, वह जेल की चार दीवारों में बंद हैं। मध्यप्रदेश जेल प्रशासन की वेबसाइट की माने तो मध्यप्रदेश में अप्रैल 2024 तक प्रदेश की सभी जिलों में पांच साल से कम उम्र के 144 मासूम बंद हैं। विभिन्न अपराधों में सजायाफ्ता महिला बंदियों के साथ इन मासूमों को रखा गया है। मध्यप्रदेश जेल अधिनियम के अनुसार, पांच साल तक के बच्चों को उनकी मां के साथ रखने की सुविधा दी जाती है। अगर पांच साल से अधिक होते हैं तो उन्हें जेल से बाहर कर दिया जाता है।
जिस उम्र में मासूम खेलकूद और दौड़कर अपनी गलियों को गुलजार करते हैं, उस उम्र में अपने माता-पिता की गलती की सजा मासूम बच्चों को भुगतना पड़ रहा है। मध्यप्रदेश की जेलों में चार दीवारों में बंद हैं। वर्तमान में टीकमगढ़ जिला जेल में जहां पांच साल से कम उम्र के पांच बच्चे अपनी मां के साथ रह रहे हैं तो पूरे प्रदेश में इन मासूमों की संख्या 144 है। इन बच्चों की उचित परवरिश एवं पढ़ाई के लिए जेल प्रबंधन द्वारा भले ही हर सुविधा दी जा रही हो। लेकिन इनका जेल में रहना उनकी माता को भी किसी वेदना से काम नहीं है।
जेल में बंद इन महिलाओं को जहां अपने बच्चों के भविष्य की चिंता है तो पांच साल के बाद इनसे दूर होने की पीड़ा भी उनके चेहरे पर साफ दिखाई देती है। बच्चों के साथ बंद मां को अब अपनी करनी पर पछतावा भी हो रहा है। जेल में बंद एक महिला कैदी की बेटी अब पांच साल की होने को है। कुछ दिन बाद जेल प्रबंधन उसे घर भेज देगा। अपनी मासूम बेटी के जेल में रहना मां को बिल्कुल पसंद नहीं है। वह कहती हैं, मेरी बेटी का क्या दोष है। इसका तो बचपन ही खत्म हुआ जा रहा है। बाहर जाने के बाद कौन इसकी देखभाल करेगा, यह चिंता अलग से हो रही है।
वहीं, एक अन्य महिला बंदी तो सोच भी नहीं पा रही है कि आखिरकार उसकी बेटी बाहर जाने के बाद किसके पास रहेगी और कौन उसका सहारा बनेगा। क्योंकि उसके पति की मौत हो चुकी है। इस मामले में समाजसेवी मनोज चौबे का कहना है कि जेल में बंद मासूमों पर नकारात्मक असर पड़ता है। कई बार यह असर बच्चों में लंबे समय तक बना रहता है। क्योंकि जेल में बंद मासूम सामाजिक जीवन के साथ-साथ अन्य चीजों से कट जाते हैं। ऐसे में उनके मानसिक स्तर पर काफी असर पड़ता है, क्योंकि बंधन तो बंधन होता है।
टीकमगढ़ जिला जेल के अधीक्षक प्रतीक जैन का कहना है कि यदि किसी अपराध में बंद महिला का पांच साल से कम उम्र का बच्चा है तो उसे मां के साथ रहने की सुविधा है। ऐसे बच्चों की शिक्षा उनके खान-पान के लिए आंगनबाड़ी केंद्रों की मदद ली जाती है। बच्चों के खेलने के लिए खिलौने आदि भी दिए जाते हैं। प्रयास किया जाता है कि उन्हें किसी प्रकार से आभास न हो कि वह जेल में हैं।
टीकमगढ़ जिले के वरिष्ठ अधिवक्ता मानवेंद्र सिंह कहते हैं कि यह एक संवेदनशील मामला है। मासूमों के जेल में रहने के कारण उनकी मानसिकता पर असर पड़ता है। ऐसे में न्यायालय भी उनकी माता को रहम कर जमानत दे देता है। वशर्ते कि बड़ा कोई अपराध न हो। उनका मानना है कि इस मामले में राज्य सरकार को पहल करना चाहिए, जिससे कि मासूमों की जीवन पर गलत असर न पड़े और हाईकोर्ट को इस मामले को संज्ञान में लेना चाहिए।