देहरादून। आज अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस है। समाज में बालिकाओं के प्रति सोच, नजरिया और संवेदनशीलता बढ़ रही है, लेकिन उससे कहीं अधिक महत्वपूर्ण है, उनका आगे आकर खुद के लिए स्थान बना लेना। अब न तो कोई क्षेत्र अछूता रहा और न ही बेटियों में पीछे रखने की मजबूरी है। ये सच है कि बेटी के जन्म के साथ ही पालन पोषण, पढ़ाई और फिर उनकी तरक्की को आसान बनाने की तमाम सुविधाएं और योजनाएं हैं, बावजूद आसपास नजर घुमाकर देखेंगे तो ऐसे कई परिवार हैं जहां बेटियों ने बिना परवाह संघर्ष और अभाव के बाद भी साबित किया कि वे परिवार पर बोझ नहीं हैं बल्कि खुद परिवार और समाज को दिशा देने निकल पड़ी हैं। किसी सहारे के बिना बुलंदियों को छू रही हैं।
देहरादून निवासी मिमांसा नेगी 13 वर्ष की उम्र में स्केटिंग के जरिए अपनी प्रतिभा दिखा रही हैं। मिमांसा सेंट पैट्रिक अकेडमी में पढ़ती हैं। वह पांच बार राष्ट्रीय स्तर पर प्रतियोगिता में खेल चुकी हैं। 2022 में सीआईएससीई रीजनल में दो गोल्ड जीतने के बाद वह नेशनल प्रतियोगिता के लिए चयनित हुई थीं। जिसके बाद उन्होंने अहमदाबाद में हुई राष्ट्रीय प्रतियोगिता में सिल्वर मेडल जीता था। इस वर्ष एक से तीन अक्तूबर तक हुई सीआईएससीई यूपी एंड उत्तराखंड रीजनल स्केटिंग प्रतियोगिता में उन्होंने एक गोल्ड व एक सिल्वर मेडल जीता। जिसके बाद उनका चयन फिर से राष्ट्रीय प्रतियोगिता के लिए हुआ है। वहीं, चार से सात नवंबर को पुणे महाराष्ट्र में होने वाली नेशनल प्रतियोगिता में भी वह भाग लेंगी। उन्होंने बताया कि उन्हें छोटी उम्र से ही स्केटिंग का शौक था। वह अपने कोच अरविंद गुप्ता और दीप निथुन सेनातिपथि से ट्रेनिंग लेकर इस मुकाम तक पहुंचीं हैं।
पिथौरागढ़ निवासी बरखा पांडेय आठ वर्ष की उम्र में रेडियो जॉकी बनी हैं। बरखा दूसरी कक्षा में पढ़ती हैं। वह रोज पहाड़ी इंटरनेट रेडियो पॉडकास्ट चैनल पर मार्निंग शो कर अपनी आवाज का जादू चला रही हैं। पहाड़ी इंटरनेट रेडियो पॉडकास्ट के अजय ओली ने बाताया कि बरखा उनके साथ करीब दस महीने पहले जुड़ी थीं। वह पहली कक्षा से ही कहानियां लिखती आ रही हैं। उनकी इस प्रतिभा को देखते हुए उन्हें रेडियो के साथ जोड़ा गया। बरखा रेडियो के माध्यम से किस्से, कहानियां लोगों तक पहुंचाती हैं। साथ ही कई सामाजिक मुद्दों पर भी स्पेशल प्रोग्राम करती है। बरखा का परिवार खड़कोट में रहता है। उनके पिता ज्योति प्रकाश पांडे यूपीसीएल में कार्यरत हैं और माता चित्रा पांडेय गृहिणी हैं।
प्रतिभा किसी चीज की मोहताज नहीं होती और न ही उसकी कोई उम्र होती है। ये बात सिद्ध की है उत्तराखंड की बालिकाओं ने। छोटी सी उम्र में इन्होंने बड़े काम कर अपनी पहचान बनाई है। छोटी सी उम्र में अपना कारोबार खड़ी करने वाली देहरादून की प्रिंसी वर्मा की कहानी सभी के लिए प्रेरणादायक है। प्रिंसी ने स्वरोजगार की राह पर चलते हुए घर पर ही सेनेटरी नैपकिन बनाने की यूनिट लगाई। 21 साल की प्रिंसी अन्य लोगों को भी रोजगार उपलब्ध करवा रही है। प्रिंसी की माता संगीता वर्मा व पिता राजेश वर्मा औद्योगिक इकाईयों में काम करके अपने परिवार की आजीविका चलाते थे।
चमोली जिले के दशोली ब्लॉक के मजोठी गांव की मानसी नेगी वॉक रेस में आज अंतरराष्ट्रीय फलक पर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रही है। मानसी ने पगडंडियों पर दौड़ना शुरू किया था और आज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दौड़कर कई मेडल अपने नाम कर चुकी हैं। मानसी के परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। उसके पिता की कई साल पहले मृत्यु होने पर घर की जिम्मेदारी मां शकुंतला देवी के कंधों पर आ गई। शकुंतला ने खेती-बाड़ी और दूध बेचकर परिवार का खर्च निकाला। मानसी व उसके छोटे भाई की पढ़ाई के लिए पैसे जुटाए। मानसी नेगी ने स्कूल स्तर से ही फर्राटा दौड़ सहित अन्य प्रतियोगिताओं में प्रतिभाग करना शुरू कर दिया था। मानसी ने अभी तक छह राष्ट्रीय सहित कुल आठ स्वर्ण पदक जीते हैं। इसके अलावा 2021 में विश्व चैंपियनशिप कोलंबिया में भी प्रतिभाग किया है।
दिव्यांग होकर भी निर्मला देवी ने अपने हुनर का लोहा मनवाया। पैरा स्पोर्ट्स में उन्होंने बैडमिंटन में राज्य व देश नाम रोशन किया। उनकी प्रतिभा को राज्य सरकार ने स्वीकारते हुए राज्य दक्ष खिलाड़ी पुरस्कार से सम्मानित किया। वहीं राज्य स्त्री शक्ति लीलू रौतेली पुरस्कार भी प्रदान किया। उत्तराखंड की बेटी निर्मला देवी ग्राम हरमान, पोस्ट हरिपुरा, तहसील बाजपुर, जिला उधमसिंह नगर की रहने वाली हैं। छह माह की उम्र में उनके दोनों पैर पोलियो ग्रस्त हो गए। उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय, हल्द्वानी से स्पेशल बीएड करने के साथ उन्होंने बैडमिंटन के शौक को हुनर बनाया। वह 2018 में नेशनल पैरा बैडमिंटन में ब्रांज, 2019 में नेशनल में सिल्वर, गोल्ड, 2022 में गोल्ड प्राप्त कर राज्य का नाम रोशन कर चुकी हैं। निर्मला कहती हैं कि उन्होंने सीखा कि जीवन में कैसे संतुलन बनाना है। सौभाग्य से मेरे आसपास कई लोग ऐसे थे, जिन्होंने मेरी बहुत सहायता की। हर कोई बहुत धैर्यवान था, क्योंकि वह लोग जानते थे कि शरीर को कुछ समय लगता है। लेकिन एक बार जब आप कोई चीज ठान लेते हैं, तो यह बहुत आसान हो जाता है।