देहरादून। पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का देवस्थानम बोर्ड भंग होने को लेकर दर्द एक बार फिर छलक पड़ा। देवस्थानम बोर्ड के गठन के फैसले को दूरगामी सोच बताते हुए उन्होंने कहा कि यदि बोर्ड होता तो उसकी आय से ही जोशीमठ का पुनर्निर्माण किया जा सकता था।
सरकार को पैसों के लिए भटकना नहीं पड़ता। उन्होंने यह भी कहा कि वह सबको अपनी बात समझा नहीं पाए। जोशीमठ में भूधंसाव से आई आपदा के संबंध में मीडिया से बातचीत में पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि देवस्थानम बोर्ड होता तो उससे 125-150 करोड़ की आय हो गई होती।
केवल चारधाम यात्रा से ही जो आय प्राप्त होती, उससे जोशीमठ का पुनर्निर्माण किया जा सकता था। पैसों के लिए भटकना नहीं पड़ता। उन्होंने कहा कि कुछ फैसले दूरगामी सोच के साथ लिए जाते हैं। वह यह बात सबको समझा नहीं पाए।
देवस्थानम बोर्ड का गठन भाजपा की त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार के कार्यकाल में हुआ था। सरकार ने 25 फरवरी, 2020 को इसकी अधिसूचना जारी कर बोर्ड का गठन किया था।
मुख्यमंत्री को बोर्ड का अध्यक्ष और धर्मस्व व संस्कृति मंत्री को उपाध्यक्ष बनाया गया। तत्कालीन गढ़वाल मंडलायुक्त रविनाथ रमन को बोर्ड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी का पद सौंपा गया। मुख्य सचिव समेत कई अधिकारी इसके सदस्य बनाए गए।
बोर्ड के गठन के बाद से ही हक-हकूकधारियों और पंडा समाज ने इसका विरोध शुरू कर दिया था। स्थिति यह बनी कि त्रिवेंद्र सिंह रावत के बाद मुख्यमंत्री पद संभालने वाले तीरथ सिंह रावत सरकार को बोर्ड के संबंध में कदम पीछे खींचने के संकेत देने पड़े थे।
तीरथ के बाद मुख्यमंत्री बने पुष्कर सिंह धामी ने पहल उच्च स्तरीय समिति और फिर मंत्रिमंडल की उप समिति की रिपोर्ट के बाद 30 नवंबर, 2021 को बोर्ड भंग कर दिया था। अब जोशीमठ भूधंसाव प्रकरण के बाद पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने देवस्थानम बोर्ड को लेकर अपना मंतव्य जाहिर कर दिया।