
हरिद्वार में गंगनहर की वार्षिक बंदी के दौरान गंगा की धारा रुक गई है, जिससे घाटों पर लोग सिक्के, सोना और चांदी खोजने में जुट गए हैं। यह परंपरा प्रतिवर्ष होती है और लगभग 15 दिन तक जारी रहती है। हरिद्वार के हाईवे से लेकर कानपुर तक निआरिआ समाज के लोग गंगा में समर्पित वस्तुएं और धातुएं खंगालते हैं। वार्षिक बंदी में ये परिवार अपने छोटे व्यवसायों को छोड़कर पूरी तरह से रेत और बजरी में दौलत तलाशने में जुट जाते हैं।
कई बार उन्हें सिक्के, चांदी और सोने के छोटे आभूषण मिलते हैं। कुछ को लोहे के बड़े सामान, सिलिंडर और यहां तक कि फ्रीज तक मिल गया है। निआरिआ समाज के लोगों के अनुसार, बीते दिनों देहरादून में आई बाढ़ और पहाड़ों की आपदाओं के कारण कुछ सामान बहकर गंगा में आया होगा। इस दौरान घाटों पर छोटे बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक सभी शामिल हैं। इस वार्षिक बंदी के समय गंगा की धारा में ब्रिटिश शासनकाल की रेलवे लाइन भी दिखाई देती है।
यह लाइन रुड़की आईआईटी से जुड़ी थी और निर्माण सामग्री लाने के लिए बनाई गई थी। अब भी यह लाइन घाटों के पास मौजूद है, हालांकि बारिश और तेज बहाव के कारण कई हिस्से क्षतिग्रस्त हो चुके हैं। इस सिलसिले में घाटों पर लोगों की भीड़ हर साल देखने को मिलती है, जो गंगा में समर्पित वस्तुएं खोजकर अपनी आजीविका और सपनों की दौलत जुटाने का प्रयास करते हैं।