
देहरादून : उत्तराखंड में शिक्षा के अधिकार को लेकर एक गंभीर मामला सामने आया है, जिसमें बिना किसी वैध कारण और पूर्व सूचना के बच्चों को स्कूल से बाहर कर दिया गया। उत्तरकाशी जिले के बड़कोट तहसील स्थित राजकीय प्राथमिक विद्यालय मदेश में वर्ष 2023 में पांच बच्चों को विद्यालय से हटाए जाने के मामले को उत्तराखंड बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने गंभीरता से लेते हुए शिक्षा विभाग से जवाब तलब किया है। आयोग ने मुख्य शिक्षा अधिकारी उत्तरकाशी को पत्र भेजकर पूरे प्रकरण की विस्तृत जांच रिपोर्ट और दोषियों के विरुद्ध अब तक की गई कार्रवाई की जानकारी मांगी है।
जानकारी के अनुसार जुलाई 2023 में विद्यालय के प्रधानाध्यापक ने यह कहते हुए पांच बच्चों को विद्यालय से पृथक कर दिया कि वे नियमित रूप से स्कूल नहीं आ रहे थे। आरोप है कि इस दौरान न तो अभिभावकों से कोई पूर्व बातचीत की गई और न ही उन्हें कोई लिखित सूचना दी गई। अभिभावकों का कहना है कि अचानक उनके बच्चों की ट्रांसफर सर्टिफिकेट उन्हें थमा दी गई, जिससे वे स्तब्ध और आक्रोशित हो गए।
मामले के बाद बच्चों के अभिभावकों ने उपजिलाधिकारी बड़कोट के माध्यम से शिक्षा विभाग में शिकायत दर्ज कराई। शिकायत के आधार पर खंड शिक्षा अधिकारी स्तर से जांच कराई गई, जिसमें यह स्पष्ट रूप से सामने आया कि पांचों बच्चों के नाम बिना किसी वैध कारण और बिना सूचना दिए विद्यालय से हटा दिए गए थे। जांच रिपोर्ट में इस प्रक्रिया को नियमों के विपरीत बताया गया, जिसके बाद मामला उत्तराखंड बाल अधिकार संरक्षण आयोग तक पहुंचा।
आयोग ने इस पूरे घटनाक्रम को बच्चों के मौलिक शिक्षा अधिकार का उल्लंघन मानते हुए शिक्षा विभाग की भूमिका पर सवाल खड़े किए हैं। आयोग ने मुख्य शिक्षा अधिकारी उत्तरकाशी को निर्देश दिए हैं कि पूरे प्रकरण में जिम्मेदार अधिकारियों और कर्मचारियों के विरुद्ध क्या कार्रवाई की गई, इसकी विस्तृत रिपोर्ट तत्काल प्रस्तुत की जाए। साथ ही यह भी स्पष्ट करने को कहा गया है कि भविष्य में इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं।
स्थानीय स्तर पर यह मामला शिक्षा व्यवस्था की कार्यप्रणाली पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगा रहा है। अभिभावकों का कहना है कि बच्चों के भविष्य से जुड़ा इतना संवेदनशील निर्णय मनमाने ढंग से नहीं लिया जाना चाहिए। नियमों और कानून की अनदेखी कर बच्चों को स्कूल से निकाल देना न केवल अमानवीय है, बल्कि शिक्षा व्यवस्था की मूल भावना के भी खिलाफ है। हालांकि अभिभावकों ने बाद में अपने बच्चों का दाखिला अन्य विद्यालयों में करवा दिया है, लेकिन उनका कहना है कि इस प्रकरण में जिम्मेदारों पर कार्रवाई होना बेहद जरूरी है, ताकि भविष्य में किसी और बच्चे के साथ ऐसा अन्याय न हो।
वहीं इस संबंध में मुख्य शिक्षा अधिकारी उत्तरकाशी अमित कोटियाल का कहना है कि यह मामला उनके संज्ञान में अभी तक नहीं है। यदि उत्तराखंड बाल अधिकार संरक्षण आयोग की ओर से कोई पत्र प्राप्त होता है तो उसके अनुसार नियमानुसार कार्रवाई अमल में लाई जाएगी। आयोग के सख्त रुख के बाद अब निगाहें शिक्षा विभाग की अगली कार्रवाई पर टिकी हुई हैं।




