
- विरासत को सहेजने की पहल, छात्राओं को लोकगीतों का प्रशिक्षण दे रहे पीयूष धामी
- गंगोत्री गर्बीयाल राजकीय बालिका इंटर कॉलेज में लोकगीत कार्यशाला आयोजित
- बाजूबंद और झुमैलो जैसी विलुप्त होती गायन शैलियों का कराया गया अभ्यास
- लोक विरासत जनजाति एवं लोक कला समिति की अनूठी पहल
- लोकसंस्कृति के संरक्षण पर वक्ताओं ने दिया जोर
पिथौरागढ़: उत्तराखंड की समृद्ध लोकसांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने और नई पीढ़ी तक पहुंचाने के उद्देश्य से गंगोत्री गर्बीयाल राजकीय बालिका इंटर कॉलेज, पिथौरागढ़ में 20 दिसंबर को एक दिवसीय पारंपरिक लोकगीत कार्यशाला का आयोजन किया गया। यह कार्यशाला लोक विरासत जनजाति एवं लोक कला समिति के तत्वावधान में संपन्न हुई, जिसमें प्रसिद्ध लोकगायक पीयूष धामी ने अपने साथियों के साथ छात्र-छात्राओं को उत्तराखंड की विलुप्त होती लोकगायन शैलियों से रूबरू कराया।
कार्यशाला के दौरान पीयूष धामी ने बाजूबंद, झुमैलो जैसी पारंपरिक लोकगायन विधाओं का सजीव प्रशिक्षण दिया और इनके ऐतिहासिक व सांस्कृतिक महत्व को विस्तार से समझाया। उन्होंने कहा कि तेजी से बदलते दौर में लोकसंस्कृति और पारंपरिक कलाएं हाशिये पर जा रही हैं, ऐसे में इनका संरक्षण करना और नई पीढ़ी तक इन्हें पहुंचाना बेहद जरूरी है। यदि आज के युवा अपनी लोकधरोहर से जुड़ेंगे, तभी यह विरासत भविष्य में जीवित रह पाएगी।
कार्यक्रम में छात्राओं ने पूरे उत्साह और रुचि के साथ लोकगीतों का अभ्यास किया और पारंपरिक सुरों के माध्यम से अपनी सांस्कृतिक पहचान को समझने का प्रयास किया। कार्यशाला के दौरान लोक विरासत जनजाति एवं लोक कला समिति की कोषाध्यक्ष स्मृति भट्ट, कविता पंत, लक्ष्मी तिवारी, आयुष कलकुडिया सहित अन्य सदस्य उपस्थित रहे, जिन्होंने इस पहल को लोकसंस्कृति संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया।
कार्यक्रम के समापन पर वक्ताओं ने कहा कि इस तरह की कार्यशालाएं न केवल सांस्कृतिक चेतना को मजबूत करती हैं, बल्कि छात्राओं में अपनी जड़ों के प्रति गर्व और जिम्मेदारी की भावना भी पैदा करती हैं। विद्यालय प्रबंधन और समिति ने भविष्य में भी ऐसे आयोजनों को निरंतर जारी रखने की बात कही, ताकि उत्तराखंड की लोकगायन परंपराएं आने वाली पीढ़ियों तक सुरक्षित रह सकें।




