
ऊधम सिंह नगर: कड़ी मेहनत और सालभर की मशक्कत के बाद भी जब किसानों को उनकी फसल का समय पर भुगतान नहीं मिलता, तो हताशा और निराशा स्वाभाविक है। यही हाल उत्तराखंड के गन्ना किसानों का हो गया है, जहां लगातार कई वर्षों से भुगतान संकट के चलते किसान गन्ने की खेती से दूरी बना रहे हैं। इसका सीधा असर गन्ना उत्पादन पर पड़ा है और प्रदेश में गन्ने की पैदावार में करीब 35 प्रतिशत तक की गिरावट दर्ज की गई है।
आंकड़े इस सच्चाई को साफ तौर पर उजागर करते हैं। वर्ष 2006-07 में प्रदेश में लगभग 1,34,899 हेक्टेयर क्षेत्रफल में गन्ने की खेती होती थी, जो वर्ष 2025-26 में घटकर महज 88,603.05 हेक्टेयर रह गई है। किसान सालभर खेतों में पसीना बहाकर गन्ना तैयार करता है, फिर उसे चीनी मिलों तक पहुंचाता है, लेकिन इसके बाद भी भुगतान के लिए महीनों इंतजार करना पड़ता है। कई मामलों में तो किसानों को अपनी मेहनत की कमाई पाने के लिए अदालतों के चक्कर तक लगाने पड़ते हैं।
प्रदेश की चीनी मिलों पर किसानों का कुल करीब 146.10 करोड़ रुपये बकाया बताया जा रहा है। भुगतान में हो रही इस देरी और अनिश्चितता के कारण किसान अब गन्ने के बजाय दूसरी फसलों की ओर रुख कर रहे हैं। इसका असर केवल किसानों पर ही नहीं, बल्कि चीनी मिलों के संचालन पर भी पड़ रहा है। पर्याप्त गन्ना उपलब्ध न होने के कारण कई बार मिलों को बंद करना पड़ रहा है, जिसका दुष्परिणाम अंततः किसानों को ही झेलना पड़ रहा है।
प्रदेश में गन्ने की खेती मुख्य रूप से हरिद्वार और ऊधम सिंह नगर जिलों में होती है। चालू सत्र में ऊधम सिंह नगर में लगभग 20,380.20 हेक्टेयर और हरिद्वार में 63,294.47 हेक्टेयर क्षेत्र में गन्ने की बुआई की गई, जबकि नैनीताल और देहरादून जैसे जिलों में यह रकबा काफी सीमित रहा। बीते पांच वर्षों के आंकड़े भी यह दर्शाते हैं कि गन्ने की बुआई में लगातार उतार-चढ़ाव और गिरावट का सिलसिला बना हुआ है।
बकाया भुगतान को लेकर कई चीनी मिलों के मामले न्यायालयों में विचाराधीन हैं। इकबालपुर चीनी मिल पर वर्ष 2018-19 का लगभग 106 करोड़ रुपये बकाया होने के कारण उसे इस बार गन्ना आवंटित नहीं किया गया है, जबकि अन्य वर्षों के भुगतान को लेकर भी कानूनी प्रक्रिया जारी है। काशीपुर चीनी मिल का मामला भी उच्च न्यायालय में लंबित है। गन्ना विकास एवं चीनी उद्योग विभाग का कहना है कि न्यायालय से आदेश मिलने के बाद किसानों का भुगतान किया जाएगा, लेकिन तब तक किसानों की परेशानी कम होने का नाम नहीं ले रही है।
कुल मिलाकर भुगतान संकट ने गन्ना किसानों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। जब तक समय पर और सुनिश्चित भुगतान की व्यवस्था नहीं होती, तब तक गन्ने की खेती के प्रति किसानों का भरोसा लौटना मुश्किल नजर आ रहा है, और इसका असर प्रदेश की कृषि व्यवस्था पर लंबे समय तक दिखाई दे सकता है।




