
चंडीगढ़ | चंडीगढ़ पुलिस में भ्रष्टाचार और लापरवाही का चौंकाने वाला मामला सामने आया है। यहां इंडस्ट्रियल एरिया थाने में तैनात तीन पुलिसकर्मी—हेड कांस्टेबल प्रदीप, सुरेश और मुखराम—पर रिश्वत लेने और अनैतिक आचरण के गंभीर आरोप लगे हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि वीडियो सबूत मौजूद होने के बावजूद इन पुलिसकर्मियों के खिलाफ तुरंत कार्रवाई नहीं हुई और वे करीब 50 दिनों तक ड्यूटी करते रहे।
मामला क्या है
- तारीख: 8 अप्रैल 2025
- स्थान: सेक्टर-30 स्थित एक स्पा सेंटर
- शिकायतकर्ता: करनाल निवासी बलिंद्र
बलिंद्र ने आरोप लगाया कि थाने में तैनात पुलिसकर्मियों ने उनसे अलग-अलग मदों में रिश्वत की मांग की।
- हेड कांस्टेबल प्रदीप ने तत्कालीन एसएचओ की “मंथली” के नाम पर ₹12,000 लिए।
- पुलिसकर्मी सुरेश और मुखराम ने “बीट बॉक्स फीस” के नाम पर ₹7,000 लिए।
बलिंद्र ने यह पूरा घटनाक्रम मोबाइल पर रिकॉर्ड कर लिया और इसके वीडियो सबूत भी उपलब्ध कराए।
बलिंद्र ने यह भी आरोप लगाया कि एक पुलिसकर्मी ने स्पा की एक लड़की के साथ अनैतिक कार्य किया, हालांकि इस संबंध में वीडियो सबूत उपलब्ध नहीं है।
शिकायत और जांच में देरी
घटना के बाद बलिंद्र ने तुरंत डीएसपी को वीडियो भेजा और मामले की जानकारी दी। लेकिन डीएसपी ने इसे “औपचारिक शिकायत” न मानते हुए बलिंद्र को पब्लिक विंडो पर शिकायत दर्ज करने की सलाह दी।
इस बीच आरोपी पुलिसकर्मी बिना किसी रोक-टोक के थाने में ड्यूटी करते रहे। यही सबसे बड़ा सवाल खड़ा करता है कि जब सबूत साफ-साफ मौजूद थे, तो कार्रवाई में इतनी देरी क्यों हुई।
डीएसपी की पूछताछ और पुलिसकर्मियों का बचाव
जब आधिकारिक शिकायत दर्ज हुई, तो डीएसपी ने तीनों पुलिसकर्मियों से पूछताछ की।
- जांच में पाया गया कि वीडियो और ऑडियो फुटेज में उन्हीं पुलिसकर्मियों की आवाज और मौजूदगी है।
- जब पैसों के बारे में पूछा गया तो पुलिसकर्मियों ने सफाई दी कि उन्होंने यह पैसे “उधार” लिए थे और इसे बीट बॉक्स की मरम्मत में लगाने वाले थे।
डीएसपी ने उनकी इस दलील को बेबुनियाद मानते हुए अपनी रिपोर्ट में तीनों को दोषी ठहराया।
अधिकारियों के बयान
- डीएसपी दिलबाग सिंह: उन्होंने माना कि रिश्वत लेने के सबूत सही हैं और पूरी रिपोर्ट एसएसपी को भेज दी गई थी।
- एसएसपी कंवरदीप कौर: उनका कहना है कि शिकायतकर्ता ने पहले औपचारिक शिकायत नहीं दी थी, इसी वजह से कार्रवाई में देर हुई। उन्होंने स्पष्ट किया कि डीएसपी की रिपोर्ट आने के बाद ही तीनों पुलिसकर्मियों को निलंबित किया गया।
बड़ी तस्वीर
सबूत और वीडियो मौजूद होने के बावजूद आरोपी पुलिसकर्मी करीब 50 दिन तक थाने में ड्यूटी करते रहे। इसने पुलिस तंत्र की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
- क्या पुलिस महकमे में शिकायतों पर कार्रवाई जानबूझकर टाली जाती है?
- क्या इस तरह की देरी भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने का एक तरीका है?
- और सबसे अहम, जब पुलिस खुद ही कानून तोड़े, तो जनता न्याय की उम्मीद किससे करे?
नतीजा
यह मामला सिर्फ तीन पुलिसकर्मियों के खिलाफ रिश्वतखोरी का नहीं है, बल्कि पूरे सिस्टम की लापरवाही और अंदरूनी गड़बड़ियों का आईना भी है। यदि समय रहते कार्रवाई होती, तो पुलिस महकमे की साख पर इतना बड़ा सवाल नहीं उठता। अब देखना यह होगा कि क्या निलंबन के बाद इन पुलिसकर्मियों पर सख्त कानूनी कार्रवाई होगी या मामला फिर फाइलों में दबकर रह जाएगा।