
देहरादून। उत्तराखंड में प्राकृतिक आपदाओं का खतरा हर साल बारिश के मौसम में बढ़ जाता है, लेकिन आईआईटी रुड़की के एक हालिया शोध ने इस खतरे की गंभीरता को और पुख्ता कर दिया है। अध्ययन में पाया गया है कि राज्य में सबसे अधिक भूस्खलन बांध अगस्त माह में बने हैं और इसका सबसे बड़ा कारण भारी बारिश है।
हालिया घटनाएं: कृत्रिम झील बनीं और प्रशासन रहा परेशान
अगस्त 2025 में उत्तरकाशी जिले में दो बड़े भूस्खलन बांध बने।
- पहले हर्षिल में भागीरथी नदी पर भारी मलबा गिरने से कृत्रिम झील बनी।
- इसके बाद स्यानाचट्टी में यमुना नदी का प्रवाह बाधित हुआ और नदी का बहाव रुककर झील का रूप ले लिया।
दोनों ही जगह प्रशासन को झील का पानी निकालने में काफी मशक्कत करनी पड़ी। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि समय पर पानी की निकासी नहीं होती तो ये झीलें अचानक टूटकर फ्लैश फ्लड का कारण बन सकती थीं, जिससे नीचे बसे गांवों और कस्बों को भारी नुकसान होता।
IIT रुड़की का शोध
आईआईटी रुड़की के आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र की शोधकर्ताओं शिवानी जोशी और श्रीकृष्णन शिव सुब्रमण्यम ने “उत्तराखंड भूस्खलन बांध अध्ययन – अतीत, वर्तमान और भविष्य” विषय पर विस्तृत रिसर्च किया।
- यह अध्ययन स्प्रिंगर जर्नल में जनवरी 2025 में प्रकाशित हुआ।
- इसमें 1857 से 2018 तक की घटनाओं का डेटा संकलन किया गया है।
शोध के मुख्य निष्कर्ष
- अगस्त माह सर्वाधिक संवेदनशील
- बारिश के चरम समय पर पहाड़ी ढलानों पर दबाव बढ़ता है।
- भारी मलबे और चट्टानों के टूटकर गिरने से नदियों का प्रवाह रुक जाता है।
- इसी कारण अगस्त महीने में सबसे अधिक भूस्खलन बांध बनते हैं।
- सबसे अधिक प्रभावित नदियाँ
- अलकनंदा और मंदाकिनी नदियाँ इस तरह की घटनाओं से सबसे ज्यादा प्रभावित पाई गईं।
- इनकी घाटियाँ भूस्खलन के लिहाज से बेहद अस्थिर और संवेदनशील हैं।
- संवेदनशील जिले
- चमोली, रुद्रप्रयाग और उत्तरकाशी जिले भूस्खलन बांध बनने के लिहाज से सबसे अधिक जोखिम वाले क्षेत्र पाए गए।
- बांध की अवधि और खतरे
- कुछ बांध कुछ घंटों तक टिके रहते हैं, जबकि कुछ कई दिनों तक बने रहते हैं।
- लंबे समय तक बने रहने वाले बांध ज्यादा खतरनाक होते हैं, क्योंकि इनके टूटने पर बड़े पैमाने पर बाढ़ आ सकती है।
प्राकृतिक कारण और खतरे
शोध में बताया गया है कि:
- भारी वर्षा प्रमुख कारण है।
- ढलानों की कमजोरी, भूकंपीय गतिविधियां और नदियों का संकरा प्रवाह क्षेत्र भी जोखिम बढ़ाते हैं।
- बांध टूटने पर अचानक आई बाढ़ से गांव, सड़कें, पुल और हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट खतरे में आ जाते हैं।
आपदा प्रबंधन के लिए चुनौती
विशेषज्ञों का कहना है कि भूस्खलन बांध बनने पर सबसे बड़ी चुनौती समय पर पानी की निकासी और लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करना होती है।
- यदि झील समय रहते खाली नहीं की जाती तो इसके टूटने से भारी तबाही हो सकती है।
- प्रशासन को इस दौरान अर्ली वार्निंग सिस्टम और जोखिम वाले गांवों को अलर्ट करना जरूरी होता है।
विशेषज्ञों की राय
- शोधकर्ताओं का मत: बारिश के महीनों में सरकार को नदियों के प्रवाह क्षेत्रों की लगातार निगरानी करनी चाहिए।
- आपदा प्रबंधन विभाग: इन घटनाओं से निपटने के लिए ड्रोन सर्वे, सैटेलाइट मॉनिटरिंग और लोकल कम्युनिटी की सहभागिता बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है।