
देहरादून | त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों के नतीजों के बाद उत्तराखंड की राजनीति एक नए मोड़ पर पहुंच गई है। राज्य में जिला पंचायत अध्यक्ष पदों के आरक्षण की प्रक्रिया जैसे-जैसे अंतिम चरण में पहुंच रही है, वैसे-वैसे सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने सभी 12 जिलों में बहुमत जुटाने की दिशा में अपनी राजनीतिक सक्रियता को तेज कर दिया है। पार्टी ने न केवल अपने समर्थित विजयी प्रत्याशियों को एकजुट करने की रणनीति अपनाई है, बल्कि निर्दलीय विजेताओं को भी अपने पाले में लाने के लिए हर स्तर पर प्रयास शुरू कर दिए हैं।
सीएम दरबार में जुटे प्रतिनिधि
सोमवार को उत्तरकाशी जिले के 20 जिला पंचायत सदस्यों ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से भेंट की। यह मुलाकात यूं ही सामान्य नहीं मानी जा रही, क्योंकि इससे पहले रुद्रप्रयाग जिले के जनप्रतिनिधि भी मुख्यमंत्री के दरबार में हाजिरी लगा चुके हैं। मुख्यमंत्री आवास पर लगातार जिलों के प्रतिनिधियों और भाजपा नेताओं का आना-जाना बना हुआ है, जिससे यह साफ हो गया है कि पार्टी नेतृत्व हर जिले में बोर्ड बनाने को लेकर गंभीर है।
पिछली बार 10 में से 12 पर भाजपा का कब्जा, इस बार सभी पर निगाह
2019 में हुए पिछले त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों में भाजपा ने 12 में से 10 जिलों में जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी अपने नाम की थी। इस बार पार्टी ने 12 में 12 जिलों में जीत का लक्ष्य रखा है और इसके लिए हर मोर्चे पर रणनीतिक तरीके से तैयारी की जा रही है। वरिष्ठ नेताओं को जिम्मेदारियां सौंपी गई हैं और हर जिले के सियासी समीकरणों की बारीकी से निगरानी की जा रही है।
निर्दलियों पर फोकस, जोड़-तोड़ की राजनीति शुरू
चुनाव परिणामों के बाद यह साफ हो गया है कि कई जिलों में भाजपा को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला है। ऐसे में अब पार्टी की नजर उन निर्दलीय उम्मीदवारों पर है जो जीतकर आए हैं, लेकिन किसी पार्टी के आधिकारिक प्रत्याशी नहीं हैं। उन्हें समर्थन देने के लिए बातचीत की जा रही है। कई निर्दलीय भी अपने-अपने हित साधने की दृष्टि से अपनी स्थिति को मजबूत करने में लगे हैं। ऐसे में जोड़-तोड़ और गठजोड़ की राजनीति चरम पर पहुंच गई है।
विशेष रणनीति और मंत्री-स्तर पर जुटाव
देहरादून, हरिद्वार, नैनीताल, ऊधमसिंह नगर जैसे बड़े जिलों में विशेष रणनीति तैयार की जा रही है। पार्टी सूत्रों के अनुसार, कुछ मंत्रियों को विशेष जिलों में भेजा गया है, ताकि वे अपने स्तर पर जिला पंचायत सदस्यों से सीधा संवाद कर सकें और पार्टी के पक्ष में समर्थन जुटा सकें। मंत्रियों को यह भी निर्देश दिए गए हैं कि यदि आवश्यकता हो तो व्यक्तिगत स्तर पर भी सदस्यों से बातचीत की जाए और भाजपा की नीति व नेतृत्व के प्रति विश्वास जगाया जाए।
जिला पंचायत अध्यक्ष पद आरक्षण प्रक्रिया अंतिम चरण में
दूसरी ओर, राज्य निर्वाचन आयोग भी अपनी ओर से जिला पंचायत अध्यक्ष और क्षेत्र पंचायत प्रमुख के चुनाव की तैयारी कर रहा है। फिलहाल आरक्षण की प्रक्रिया अंतिम चरण में है और जैसे ही यह प्रक्रिया पूरी होगी, आयोग चुनाव कार्यक्रम की घोषणा करेगा। गौरतलब है कि हाईकोर्ट ने निर्देश दिए हैं कि आरक्षण प्रक्रिया पूरी होते ही न्यूनतम समय में चुनाव कराए जाएं।
30,000 रिक्त पंचायत पदों पर भी उपचुनाव की तैयारी
पंचायत चुनावों में कई स्थानों पर नामांकन न होने या निर्विरोध निर्वाचन नहीं हो पाने के कारण ग्राम पंचायत सदस्यों के करीब 30,000 पद रिक्त रह गए हैं। इन रिक्त पदों के लिए भी उपचुनाव कराने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। राज्य निर्वाचन आयोग के अनुसार, इन उपचुनावों की अधिसूचना अगस्त अंत या सितंबर की शुरुआत में जारी की जा सकती है।
राजनीतिक विश्लेषण: शतरंज के हर मोहरे पर नजर
राजनीतिक पर्यवेक्षकों की मानें तो जिला पंचायत चुनाव अब मात्र एक स्थानीय निकाय चुनाव नहीं रह गया है, बल्कि यह राज्य की सत्ता संतुलन का एक अहम हिस्सा बन चुका है। यही कारण है कि भाजपा की ओर से इसे अत्यंत गंभीरता से लिया जा रहा है। पंचायत बोर्डों के गठन से लेकर अध्यक्ष पद की रणनीति तक, हर निर्णय में शीर्ष नेतृत्व की निगरानी हो रही है। विपक्षी दलों के लिए यह चुनौतीपूर्ण समय है, क्योंकि उनके पास संसाधन और संगठित नेतृत्व की कमी स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही है।