
ऋषिकेश। एम्स ऋषिकेश के चिकित्सकों द्वारा किए गए एक व्यापक शोध में यह चौंकाने वाला तथ्य सामने आया है कि उत्तराखंड के दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्रों की बड़ी संख्या में महिलाओं को स्तन कैंसर और सर्वाइकल कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियों की जानकारी ही नहीं है। शोध में शामिल 38 फीसदी महिलाओं को तो यह तक नहीं पता था कि स्तन कैंसर जैसी कोई बीमारी भी होती है, जबकि 79 फीसदी महिलाओं ने सर्वाइकल कैंसर का नाम तक नहीं सुना था।
इस शोध को यूकास्ट के सहयोग से किया गया और यह बीते मई में अमेरिका के प्रतिष्ठित जर्नल Cancer Causes and Control में प्रकाशित हुआ है। शोध जनवरी 2022 से दिसंबर 2023 तक चला और इसमें पौड़ी जनपद के दूरस्थ चार विकासखंडों — नैनीडांडा, रिखणीखाल, जयहरीखाल और पोखड़ा की कुल 589 महिलाओं को शामिल किया गया। इन महिलाओं की उम्र 18 वर्ष से 65 वर्ष के बीच थी।
एम्स ऋषिकेश के कैंसर रोग विशेषज्ञ डॉ. दीपक सुंद्रियाल ने बताया कि महिलाओं से स्तन व सर्वाइकल कैंसर के बारे में जानकारी और जागरूकता के स्तर को लेकर प्रश्न पूछे गए। शोध में यह स्पष्ट हुआ कि जहां स्तन कैंसर को लेकर 38 फीसदी महिलाएं पूरी तरह अनभिज्ञ थीं, वहीं सर्वाइकल कैंसर को लेकर यह संख्या और भी अधिक, 79 फीसदी तक थी।
और भी चिंताजनक पहलू यह है कि जिन महिलाओं को इन बीमारियों के बारे में कुछ जानकारी थी, उनमें से भी 14 से 50 फीसदी महिलाएं उनके प्राथमिक लक्षणों की पहचान नहीं कर सकती थीं। सर्वाइकल कैंसर से बचाव के लिए लगाए जाने वाले टीके (एचपीवी वैक्सीन) के बारे में तो केवल 6.5 फीसदी महिलाओं को ही जानकारी थी।
हालांकि, इस शोध में एक सकारात्मक संकेत भी सामने आया। जब महिलाओं से पूछा गया कि अगर उन्हें सुविधाएं और जानकारी दी जाएं तो क्या वे समय-समय पर जांच करवाना चाहेंगी, तो 57 फीसदी महिलाओं ने इसके लिए सहमति जताई। इससे यह निष्कर्ष निकाला गया कि यदि सरकार और स्वास्थ्य संस्थान जागरूकता और स्वास्थ्य सेवाओं को सुलभ बनाएं, तो ग्रामीण महिलाएं स्वयं भी इन बीमारियों से बचाव के प्रति सक्रिय हो सकती हैं।
शोध दल के सुझाव और निष्कर्ष:
शोध टीम का सुझाव है कि इन बीमारियों से बचाव और समय पर पहचान के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में लगातार जागरूकता कार्यक्रम चलाए जाएं। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के कर्मचारियों को कैंसर की प्रारंभिक जांच और लक्षणों की पहचान के लिए प्रशिक्षित किया जाए। आशा कार्यकर्ताओं को भी इस अभियान में सक्रिय भूमिका सौंपी जाए, क्योंकि वे गांवों की जमीनी स्थिति से अच्छी तरह वाकिफ होती हैं और महिलाओं के बीच सहज पहुंच रखती हैं।
शोध में शामिल विशेषज्ञों की टीम:
इस महत्वपूर्ण अध्ययन में एम्स ऋषिकेश के डॉ. दीपक सुंद्रियाल, डॉ. अमित सहरावत, डॉ. योगेश बहुरूपी, डॉ. शालिनी राजाराम, डॉ. महेंद्र सिंह, डॉ. प्रदीप अग्रवाल, डॉ. स्वीटी गुप्ता और डॉ. प्रीति शामिल रहे। सर्वेक्षण कार्य में उत्तराखंड मानव सेवा समिति के अध्यक्ष वीएन शर्मा और उनकी टीम का भी सहयोग रहा।
कैंसर के आँकड़े:
भारत में महिलाओं में सबसे ज्यादा मामले स्तन कैंसर के हैं। वर्ष 2024 में देश में कुल 15 लाख 33 हजार नए कैंसर मामलों में 28.8 फीसदी महिलाएं स्तन कैंसर से ग्रसित थीं, जबकि 10.6 फीसदी महिलाओं को सर्वाइकल कैंसर था। ये आंकड़े दर्शाते हैं कि समय पर जांच, टीकाकरण और जागरूकता से बड़ी संख्या में महिलाओं की जान बचाई जा सकती है।
शोध से यह स्पष्ट हुआ है कि ग्रामीण भारत की महिलाएं अभी भी गंभीर बीमारियों की जानकारी से वंचित हैं। सरकार द्वारा चलाए जा रहे जागरूकता अभियानों का वास्तविक लाभ तब तक नहीं मिल पाएगा, जब तक जानकारी, स्वास्थ्य सेवाएं और संवाद जमीनी स्तर पर प्रभावी रूप से नहीं पहुंचते। यह शोध एक चेतावनी है कि यदि अब भी व्यापक स्तर पर कार्य नहीं किया गया, तो महिलाओं की जानें केवल जानकारी के अभाव में जाती रहेंगी।