
हरिद्वार| सावन मास में हरिद्वार का कनखल क्षेत्र आध्यात्मिक ऊर्जा से जाग्रत हो उठता है। यह वही पुण्यभूमि है जहां राजा दक्ष ने विराट यज्ञ का आयोजन किया था, भगवती सती ने आत्माहुति दी थी, और शिव ने तांडव कर सृष्टि को हिला दिया था। सावन के पावन अवसर पर यह पूरा क्षेत्र शिव, शक्ति और गंगा की दिव्य उपस्थिति से ओतप्रोत हो जाता है। कनखल को ब्रह्मा, विष्णु और महेश की पावन उपस्थिति का साक्षी माना जाता है। स्कंद पुराण केदारखंड के अनुसार, श्रावण मास में हिमालय और शिवालिक पर्वतों की गोद में बसा यह क्षेत्र विशेष रूप से शिव, शक्ति और मां गंगा की कृपा से जागृत होता है। गंगा किनारे बसे इस क्षेत्र में बिना कहे भी शिव कृपा की वर्षा होती है।
यहां शिव के पांच ज्योतिर्थ — दक्षेश्वर, बिल्वकेश्वर, नीलेश्वर, वीरभद्र और नीलकंठ — आकाशीय केंद्र से जुड़े हैं। वहीं, शक्ति के पांच पावन स्थल — शीतला मंदिर, सतीकुंड, माया देवी, चंडी देवी और मनसा देवी — पाताल केंद्र से संबंधित माने जाते हैं। शिव और शक्ति के इन दसों ज्योतिर्केंद्रों से सावन में भक्तों पर आशीर्वाद की वर्षा होती है। इतिहास के अनुसार, यहीं कनखल में दक्ष प्रजापति ने यज्ञ किया था, जिसमें शिव को आमंत्रित नहीं किया गया। इससे आहत होकर सती ने यज्ञकुंड में आत्माहुति दी और क्रोधित शिव ने वीरभद्र को उत्पन्न किया, जिसने यज्ञ विध्वंस कर दिया। यहीं से शिव ने सती की पार्थिव देह को कंधे पर उठाकर तांडव किया, जिससे 52 शक्ति पीठों की स्थापना हुई।
कनखल में स्थित दक्षेश्वर महादेव मंदिर शिव का ससुराल स्थल माना जाता है। सावन में भगवान शिव स्वयं दक्ष को दिए वचन को निभाने के लिए दक्षेश्वर रूप में यहां विराजते हैं। साथ ही, मायादेवी मंदिर को आदि शक्ति पीठ के रूप में पूजा जाता है, जहां से शक्ति की उपासना का केंद्र पाताल से जुड़ा हुआ माना गया है। हरिद्वार से निकलने वाली श्रावणी कांवड़ यात्रा देश की सबसे बड़ी धार्मिक यात्राओं में मानी जाती है। कनखल में यह यात्रा शिव और शक्ति दोनों के केंद्र बिंदु से होकर गुजरती है। श्रद्धालु इन स्थलों पर पहुंचकर कांवड़ जल अर्पण करते हैं और अपनी यात्रा की पूर्णता पाते हैं।
कनखल में सावन सिर्फ धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि शिव-सती की लीला और तप की पावन स्मृति है। यहां का प्रत्येक कण शिवत्व और शक्तिपुंज से युक्त होता है, जो भक्तों को आत्मिक शांति और मोक्ष की ओर अग्रसर करता है।