
देहरादून | उत्तराखंड में हाइब्रिड कारों पर वाहन कर से 100% छूट देने का कैबिनेट का फैसला ऑटोमोबाइल कंपनियों के विरोध के चलते अटक गया है। टाटा मोटर्स और महिंद्रा जैसी देसी कंपनियों ने इस फैसले को चुनौती देते हुए राज्य सरकार से इसे वापस लेने की मांग की है। सरकार अब इस फैसले पर पुनर्विचार कर रही है और आने वाले समय में कैबिनेट में इसे रद्द करने का प्रस्ताव आ सकता है।
🚗 क्या था टैक्स छूट का फैसला?
जून के पहले सप्ताह में उत्तराखंड सरकार ने मोटरयान कराधान सुधार अधिनियम में संशोधन करते हुए केंद्र के नियम 125-M के तहत राज्य में पंजीकृत प्लग-इन हाइब्रिड और स्ट्रॉन्ग हाइब्रिड कारों पर वाहन कर में 100% छूट देने का निर्णय लिया था।
- यह छूट वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिए वैध मानी गई थी।
- छूट से राज्य सरकार को वाहन कर से नुकसान, लेकिन जीएसटी (28–43%) की भरपाई का तर्क था।
🏭 टाटा-महिंद्रा का विरोध क्यों?
- टाटा और महिंद्रा मुख्य रूप से इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) पर ध्यान दे रही हैं, जबकि हाइब्रिड टेक्नोलॉजी पर उनकी पकड़ नहीं है।
- इस फैसले से टोयोटा, होंडा, मारुति जैसी कंपनियों को बढ़त मिलती, जो हाइब्रिड कारें बनाती हैं।
- टाटा और महिंद्रा का कहना है कि इससे उनके ईवी कारोबार को सीधा नुकसान पहुंचेगा।
- दोनों कंपनियों ने राज्य में भारी निवेश किया है, और उनके प्रतिनिधियों ने इस आधार पर सरकार से फैसला वापस लेने की मांग की।
📉 परिवहन विभाग का पक्ष:
- परिवहन विभाग का कहना था कि उत्तर प्रदेश समेत कई राज्य हाइब्रिड कारों पर टैक्स छूट दे रहे हैं।
- नतीजा यह कि उत्तराखंड के निवासी भी दूसरे राज्यों में पंजीकरण करवा रहे हैं, जिससे राज्य को कर नुकसान हो रहा है।
- उत्तराखंड में 2024-25 में सिर्फ 750 हाइब्रिड कारों का पंजीकरण हुआ, जबकि छूट लागू होने पर 2025-26 में 2000 से ज्यादा पंजीकरण का अनुमान था।
- कर छूट से राज्य में उत्सर्जन में कमी और पर्यावरणीय लाभ का दावा भी किया गया।
⚖️ अब क्या होगा?
- राज्य सरकार निवेश करने वाली कंपनियों की आपत्तियों को गंभीरता से ले रही है।
- संभावना है कि जल्द ही इस पर कैबिनेट में पुनर्विचार कर इसे रद्द किया जा सकता है।
- अगर फैसला वापस होता है तो हाइब्रिड कारें राज्य में महंगी बनी रहेंगी, और उनका पंजीकरण अन्य राज्यों में होता रहेगा।
उत्तराखंड में हाइब्रिड कारों पर टैक्स छूट का फैसला एक सकारात्मक पर्यावरणीय पहल हो सकता था, लेकिन उद्योग हितों और प्रतिस्पर्धा की राजनीति के कारण फिलहाल यह अटक गया है। यह मामला साफ करता है कि पर्यावरण और अर्थव्यवस्था के बीच संतुलन बनाना आज भी एक बड़ी चुनौती है। प्रश्न यही है — क्या पर्यावरण हित के फैसले निवेश विरोध के आगे टिक पाएंगे?