
उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले से न्याय की ऐसी गूंज सुनाई दी है जो पूरे देश को झकझोर गई है। सात और तेरह साल की दो मासूम बच्चियों की बेरहमी से हत्या करने वाले दो दोषियों को कोर्ट ने मौत की सजा सुनाई है। इस खौफनाक वारदात के चार महीने बाद ही कोर्ट ने अपना निर्णय सुना दिया। हाथरस विशेष न्यायाधीश (एससी-एसटी एक्ट) रामप्रताप सिंह ने दोषियों विकास और लालू पाल को मृत्युदंड की सजा सुनाई। दोनों ने मासूमों की हत्या करने के बाद उनके माता-पिता पर भी जानलेवा हमला किया था। इस पूरे मामले में कोर्ट ने जो तेजी दिखाई है, वो देश की न्यायिक प्रक्रिया के लिए एक मिसाल बन गई है।
22 जनवरी की रात का खूनी खेल:
आशीर्वाद धाम कॉलोनी, आगरा रोड, हाथरस — इसी जगह पर वो खौफनाक मंजर घटा था। पेशे से शिक्षक छोटेलाल गौतम के घर देर रात घुसे विकास और लालू पाल। उनकी दो बेटियां — 7 साल की विधि और 13 साल की सृष्टि — जो गहरी नींद में थीं, उन्हें बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया गया। इतना ही नहीं, उन्होंने बच्चियों के माता-पिता पर भी प्राणघातक हमला किया और फरार हो गए।
घटना ने पूरे इलाके को दहशत में डाल दिया था। लेकिन न्याय की ताकत ने इसे अधूरा नहीं छोड़ा। कोर्ट में कुल 12 गवाहों की गवाही हुई। और फिर 26 मई को आरोपियों को दोषी करार दिया गया। आज, यानी 28 मई को, कोर्ट ने केवल 10 मिनट की सुनवाई में सजा सुना दी — “फांसी”।
एडीजीसी दिनेश यादव ने कहा:
“सबूत इतने ठोस थे कि कोर्ट को किसी और गवाही या देरी की ज़रूरत ही नहीं पड़ी। 7 और 13 साल की बच्चियों की क्रूर हत्या और उनके माता-पिता पर जानलेवा हमला — इन अपराधों ने समाज की आत्मा को झकझोर कर रख दिया।”
कोर्ट ने भी साफ शब्दों में कहा कि यह मामला ‘रेयरेस्ट ऑफ द रेयर’ की श्रेणी में आता है। और ऐसे दरिंदों को समाज में जीने का कोई अधिकार नहीं है।
जज ने फैसले में लिखा:
“यह कांड न सिर्फ मानवता के खिलाफ है, बल्कि समाज की रूह को कंपा देने वाला है। मासूम बच्चियों की हत्या ने समाज को जो चोट दी है, उसकी भरपाई सिर्फ मौत की सजा से ही हो सकती है।”
इस केस में कोर्ट की कार्यवाही को तेज़ी से निपटाया गया। पहली सुनवाई के बाद से लेकर फैसला सुनाने तक सिर्फ 4 महीने 6 दिन लगे। भारत जैसे न्याय-प्रक्रिया में अक्सर देरी के लिए बदनाम सिस्टम में यह एक ऐतिहासिक मिसाल है। घटना के बाद से सदमे में जी रहे छोटेलाल गौतम और उनकी पत्नी ने कोर्ट के फैसले के बाद कहा कि उन्हें अब थोड़ी राहत महसूस हो रही है। “हमारी बेटियां वापस नहीं आएंगी, लेकिन कम से कम उनके हत्यारे अब जिएंगे नहीं।” जैसे ही फांसी का फैसला आया, कोर्ट परिसर में तालियों की गूंज और आंखों में आंसू देखने को मिले। आम जनता ने कोर्ट के फैसले को सराहा और कहा कि ऐसे ही फैसले समाज को भयमुक्त बनाते हैं।