
नैनीताल। उत्तराखंड हाईकोर्ट ने पंचायत चुनावों को लेकर बड़ा फैसला सुनाते हुए स्पष्ट कर दिया है कि जिन प्रत्याशियों के नाम नगर निकाय और ग्राम पंचायत—दोनों की मतदाता सूचियों में दर्ज हैं, वे अब पंचायत चुनाव नहीं लड़ सकेंगे। कोर्ट ने कहा कि यह स्थिति पंचायत राज अधिनियम का उल्लंघन है और ऐसे प्रत्याशी अयोग्य माने जाएंगे।
यह निर्णय मुख्य न्यायाधीश जी. नरेंदर और न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ ने जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया। याचिका शक्ति सिंह बर्त्वाल द्वारा दायर की गई थी, जिसमें कहा गया था कि उत्तराखंड के 12 जिलों में पंचायत चुनाव लड़ रहे कई प्रत्याशियों के नाम दोहरी मतदाता सूचियों में शामिल हैं। याचिका में इसे आपराधिक कृत्य बताते हुए इसे रोकने की मांग की गई थी।
याचिकाकर्ता ने जताई थी गंभीर आपत्ति
याचिकाकर्ता ने राज्य निर्वाचन आयुक्त को पत्र लिखकर मांग की थी कि नगर निकाय मतदाता सूची में शामिल व्यक्तियों को त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में नामांकन और मतदान से रोका जाए। हालांकि आयोग की ओर से कोई स्पष्ट कार्रवाई नहीं की गई, जिससे मजबूर होकर हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई।
अदालत ने दिया स्पष्ट निर्देश
कोर्ट ने कहा कि दो मतदाता सूचियों में नाम होना नियमविरुद्ध है और ऐसे प्रत्याशियों को चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं दी जा सकती। हालांकि अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि चूंकि नामांकन प्रक्रिया पूरी हो चुकी है, इसलिए वर्तमान चुनाव प्रक्रिया में कोई हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा। यह आदेश भविष्य के पंचायत चुनावों पर प्रभावी होगा।
विभिन्न पक्षों की व्याख्या, भ्रम की स्थिति
कोर्ट के फैसले के बाद भी प्रत्याशियों में भ्रम की स्थिति बनी हुई है। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता अभिजय नेगी ने कहा कि अब ऐसे प्रत्याशी स्वतः अयोग्य हो गए हैं और यदि उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं की गई तो यह अदालत की अवमानना मानी जाएगी। वहीं आयोग के अधिवक्ता संजय भट्ट ने कहा कि वर्तमान चुनाव प्रक्रिया पर आदेश का कोई असर नहीं पड़ेगा और आदेश की प्रति मिलने के बाद आयोग विधिक पहलुओं पर विचार करेगा।
आयोग के स्पष्टीकरण का इंतजार
चुनाव मैदान में अब भी कई ऐसे प्रत्याशी हैं जिनके नाम दो जगह दर्ज हैं। ऐसे में अब निर्वाचन आयोग के औपचारिक स्पष्टीकरण का इंतजार किया जा रहा है, ताकि स्थिति पूरी तरह स्पष्ट हो सके।
पृष्ठभूमि में जारी हुआ था नोटिफिकेशन
इससे पूर्व 6 जुलाई को आयोग द्वारा एक नोटिफिकेशन जारी किया गया था, जबकि जिला निर्वाचन अधिकारियों को सितंबर 2019 में ही दोहरी मतदाता सूची से जुड़ी गाइडलाइन जारी की जा चुकी थीं।
हाईकोर्ट का यह आदेश न केवल पंचायत चुनाव व्यवस्था को पारदर्शी बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है, बल्कि यह दोहरी पहचान से जुड़ी कानूनी अस्पष्टताओं को भी दूर करता है। आगामी चुनावों में इसका गहरा प्रभाव देखने को मिलेगा।