
उत्तराखंड के चमोली जिले से एक मार्मिक वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है, जिसमें एक युवक कंधे पर सामान रखकर उफनते गदेरे को पार करता दिख रहा है। यह दृश्य न केवल जोखिम भरा है, बल्कि स्थानीय ग्रामीणों की दशकों पुरानी उपेक्षा और बुनियादी ढांचे की कमी को भी उजागर करता है। वीडियो वायरल होने के बाद जिलाधिकारी संदीप तिवारी ने तत्काल मामले की जांच के आदेश दिए हैं और एसडीएम को इसकी रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा है।
पुल बहने के बाद 14 वर्षों से परेशानी झेल रहे ग्रामीण
यह वीडियो दशोली विकासखंड के ग्राम पंचायत भतंग्याला के मिमराणी तोक का है। गांव के पास स्थित जेंथा गदेरा पर वर्ष 2013 की आपदा के दौरान बना पैदल पुल बह गया था, जिसके बाद से अब तक इस पुल का दोबारा निर्माण नहीं हो पाया है। नतीजतन, ग्रामीणों को 5 किलोमीटर अतिरिक्त पैदल दूरी तय करके नंदप्रयाग बाजार जाना पड़ता है। जब गदेरे का जलस्तर कम होता है, तो ग्रामीण वहीं से जोखिम उठाकर पार करते हैं, लेकिन बारिश के दिनों में यह गदेरा उफान पर आ जाता है, जिससे आवाजाही अत्यंत खतरनाक हो जाती है।
वायरल वीडियो बना प्रशासन की आंख खोलने वाला
बीते दिनों एक स्थानीय युवक का वीडियो वायरल हुआ जिसमें वह पीठ पर सामान लादे उफनते गदेरे को पार कर रहा है। यह दृश्य न सिर्फ खतरनाक था, बल्कि स्थानीय प्रशासन की आंख खोलने वाला भी साबित हुआ। इस वीडियो ने क्षेत्र की जमीनी हकीकत को उजागर कर दिया कि किस तरह से ग्रामीण आज भी जीवन और मौत के बीच झूलते हुए मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं।
आठ परिवारों की कठिन जिंदगी
मिमराणी गांव में महज आठ परिवार रहते हैं, लेकिन उनकी समस्याएं वर्षों से जस की तस बनी हुई हैं। ग्रामीणों को आवश्यक सामान, दवाइयों और दैनिक उपयोग की वस्तुएं लाने के लिए उफनते गदेरे या फिर कई किलोमीटर का चक्कर काट कर जाना पड़ता है। स्थानीय निवासी वीरेंद्र सिंह, देवेंद्र सिंह और मनोज ने बताया कि जब जलस्तर बहुत बढ़ जाता है, तो ग्रामीणों को मजबूरन सकंड, ग्वांई और सिरोली गांव होते हुए नंदप्रयाग जाना पड़ता है, जिससे यात्रा और कठिन हो जाती है।
प्रशासन की प्रतिक्रिया
उपजिलाधिकारी आरके पांडेय ने कहा है कि पुल निर्माण को लेकर ग्रामीणों से प्रस्ताव प्राप्त हुआ है और शीघ्र ही आवश्यक कार्यवाही शुरू की जाएगी। जिलाधिकारी द्वारा दी गई जांच के आदेश के बाद यह उम्मीद जगी है कि शायद अब प्रशासन इस गंभीर समस्या की ओर ध्यान देगा। यह घटना केवल एक वायरल वीडियो भर नहीं है, बल्कि यह उत्तराखंड जैसे पर्वतीय राज्य में अभी तक बुनियादी ढांचे की भयावह स्थिति का प्रतीक है। जहां आपदा के बाद पुनर्निर्माण की गूंज कुछ समय तक सुनाई देती है, वहीं सालों बाद भी सैकड़ों गांव मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं।
सरकार और प्रशासन को यह समझने की आवश्यकता है कि वायरल वीडियो नहीं, बल्कि जमीनी काम जनता की राहत है। मिमराणी जैसे गांवों की आवाज अब सोशल मीडिया के जरिए सामने आ रही है, लेकिन असल बदलाव तब होगा जब इन गांवों तक पुल, सड़क और स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचेगी—सिर्फ जांच नहीं।