
कानपुर विकास प्राधिकरण (केडीए) में भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर शुक्रवार को एक अनोखा मामला सामने आया। जनता दर्शन कार्यक्रम में डीएम जितेंद्र प्रताप सिंह के समक्ष पहुंचे फरियादी नीरज गुप्ता ने अधिकारियों पर रिश्वत मांगने का आरोप लगाते हुए 30 हजार रुपये का चेक सौंप दिया और कहा कि “यह रिश्वत का चेक है, इसे केडीए को दे दीजिए और मेरी मकान रजिस्ट्री करा दीजिए।”
नीरज गुप्ता का आरोप था कि उनके द्वारा 7 जून 2024 को बर्रा-6, डबल स्टोरी, एल-349 के मकान की रजिस्ट्री के लिए आवेदन किया गया था, जो मूल रूप से सोमनाथ उपाध्याय के नाम पर आवंटित था। सोमनाथ की 2011 में मृत्यु के बाद मकान उनकी पत्नी रेनू उपाध्याय और तीन बेटों – उपदेश, स्वतंत्र व स्वदेश – के नाम हो गया था। नीरज ने उनके पावर ऑफ अटॉर्नी के आधार पर मकान की रजिस्ट्री के लिए आवेदन किया था, लेकिन उनका दावा है कि केडीए के विशेष कार्याधिकारी (ओएसडी) अजय कुमार ने पावर ऑफ अटॉर्नी को अमान्य बताते हुए रजिस्ट्री से इनकार कर दिया और इसके बदले 30 हजार रुपये की रिश्वत मांगी।
डीएम ने शिकायत मिलते ही केडीए उपाध्यक्ष को जांच के निर्देश दिए और आरोपित अधिकारी अजय कुमार से सीधे बात की। अजय कुमार ने खुद पर लगे आरोपों को निराधार बताया और कहा कि नीरज गुप्ता की फाइल उनके पास कार्यालय में पहुंची ही नहीं थी। हालांकि, डीएम के हस्तक्षेप के बाद महज चार घंटे के भीतर – यानी शाम पांच बजे – उसी फाइल की केडीए में मौजूदगी भी साबित हो गई और रजिस्ट्री की स्वीकृति भी जारी कर दी गई।
बाद में ओएसडी अजय कुमार ने सफाई दी कि संबंधित फाइल उन्हें नहीं मिली थी क्योंकि पहले वह जोन-4 के सह प्रभारी संदीप मोदनवाल के पास थी। संदीप के स्थानांतरण के बाद फाइल बाबू के पास पड़ी रही और अब उसे मंगाकर मंजूरी दे दी गई है। उन्होंने कहा कि उन पर लगाए गए आरोप निराधार और बेबुनियाद हैं। यह पूरा घटनाक्रम न केवल केडीए की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े करता है, बल्कि इस बात की ओर भी इशारा करता है कि अगर डीएम स्तर से हस्तक्षेप न होता तो शायद रजिस्ट्री की फाइल यूं ही दबाकर रखी जाती। मामला अब जांच के अधीन है और यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि आरोपों की पुष्टि होती है या नहीं।