
दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (डूटा) ने शनिवार को इंडिया इंटरनेशनल सेंटर, नई दिल्ली में यूजीसी विनियमन का मसौदा –2025 पर एक महत्वपूर्ण सम्मेलन आयोजित कर शिक्षकों से विचार जाने । इस कार्यक्रम में शिक्षाविदों, हितधारकों और विभिन्न विश्वविद्यालयों के प्रतिनिधियों ने हाल ही में जारी किए गए यूजीसी विनियमन के मसौदे 2025 के निहितार्थों की आलोचनात्मक जांच करने के लिए एक साथ मंच पर आए। अधिकांश शिक्षकों ने इस मसौदे की आलोचना की और कहा कि इसमें सुधार की आवश्यकता है । शिक्षकों से बिना राय जाने लागू न किया जाए ।
सम्मेलन की शुरुआत डूटा अध्यक्ष प्रो. ए.के. भागी ने कार्यक्रम का उद्घाटन भाषण से किया उन्होंने इस बात पर बल दिया कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ( यूजीसी ) को नवाचार और प्रौद्योगिकी केंद्रों (आईटीसी) की तुलना में शिक्षण अधिगम केंद्रों (टीएलसी) को प्राथमिकता देनी चाहिए खासकर देश भर में कई संस्थानों के सामने आने वाली बुनियादी ढांचागत चुनौतियों के मद्देनजर। उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि नियुक्ति और पदोन्नति के मानदंड अधिक कठोर नहीं होने चाहिए । उन्होंने शैक्षणिक संदर्भों की विविधता को समायोजित करने के लिए लचीलेपन का आह्वान किया।
कार्यक्रम में वक्ता के तौर पर डॉ संजय पासवान ने समावेशिता के आह्वान को दोहराया और जोर दिया कि नियामक ढांचे को भारत के विस्तृत और विविध उच्च शिक्षा परिदृश्य में संस्थानों और व्यक्तियों की विभिन्न जरूरतों को प्रतिबिंबित करना चाहिए।
पूर्व डूटा अध्यक्ष डॉ नंदिता नारायण ने अकादमिक इक्विटी को बढ़ावा देने के लिए सार्वजनिक वित्त पोषित शिक्षा प्रणाली और यूजीसी की भूमिका और इस संबंध में प्रस्तावित नियमों की विफलता पर जोर दिया। विचार सम्मेलन में प्रो एन के कक्कड़, पूर्व डूटा और फेडकुटा अध्यक्ष; डॉ आदित्य नारायण मिश्रा, पूर्व डूटा और फेडकुटा अध्यक्ष; एडवोकेट एल एस चौधरी, ईसी सदस्य; प्रो रवींद्र कुमार, अध्यक्ष, इग्नूटा; प्रोफेसर राजेश गर्ग, अध्यक्ष, एयूटीए; प्रोफेसर सुरजीत मजूमदार, अध्यक्ष, जेएनयूटीए और एफईसीडीयूटीए, इस अवसर पर कार्यकारी समिति के सदस्य श्री अमन कुमार, जेएनयू के डॉ. रवि शुक्ला, दिल्ली विश्वविद्यालय और इसके संबद्ध महाविद्यालयों के शिक्षाविद और पदाधिकारी, कार्यकारी और विद्वत परिषद के सदस्य, दिल्ली विश्वविद्यालय कोर्ट के सदस्य और देश भर के अन्य विश्वविद्यालयों के प्रतिनिधि उपस्थित थे।
विचार सम्मेलन के दूसरे सत्र में राष्ट्रीय शिक्षा नीति –2020 के उद्देश्यों के साथ मसौदा विनियमों के संरेखण को स्वीकार करते हुए डूटा ने अकादमिक स्वायत्तता, भर्ती, पदोन्नति और संस्थागत विविधता पर उनके संभावित प्रभाव के बारे में गंभीर चिंता व्यक्त की। सम्मेलन के दौरान पारित किए गए प्रमुख प्रस्तावों में उनके वर्तमान स्वरूप में मसौदा विनियमों की स्पष्ट अस्वीकृति शामिल थी जिसमें मांग की गई थी कि उन्हें 8 वें वेतन आयोग के ढांचे में एकीकृत किया जाए और व्यापक हितधारक परामर्श के माध्यम से संशोधित किया जाए। प्रमुख सिफारिशों में एमफिल और पीएचडी वेतन वृद्धि जारी रखना, पदोन्नति के लिए पिछली सेवा की उचित मान्यता, समयबद्ध और पारदर्शी पदोन्नति प्रक्रिया, शोध अवकाश के लिए बढ़ा हुआ समय और वरिष्ठ प्रोफेसरों की नियुक्तियों पर मनमानी सीमा हटाना शामिल था ।
डूटा ने लाइब्रेरियन, शारीरिक शिक्षा निदेशक और अन्य शैक्षणिक कर्मचारियों के लिए समान सेवा शर्तों और सेवानिवृत्ति की आयु की भी जोरदार वकालत की। सम्मेलन का समापन यूजीसी से मसौदा विनियमों के जल्दबाजी में कार्यान्वयन को रोकने और एक समावेशी, परामर्श प्रक्रिया आयोजित करने के आह्वान के साथ हुआ, जो अधिक न्यायसंगत, व्यावहारिक और भविष्य के लिए तैयार उच्च शिक्षा नियामक ढांचे को सुनिश्चित करता है। डूटा के इस विचार सम्मेलन में ईसी सदस्य डॉ.सुनील शर्मा , डॉ.आकांशा खुराना , डॉ.सुधांशु कुमार , डॉ.चमन सिंह , डॉ.हंसराज सुमन , डॉ. विवेक चौधरी आदि भी उपस्थित थे ।