देहरादून। क्राइम लिटरेचर फेस्टिवल के अंतिम दिन कई पुस्तकों और अपराध से जुड़े विषयों पर विशेषज्ञों व पूर्व और वर्तमान पुलिस अधिकारियों ने चर्चा की। यूपी के डॉन श्रीप्रकाश शुक्ला का खात्मा करने वाले यूपी एसटीएफ के पूर्व चीफ सेवानिवृत्त आईपीएस राजेश पांडेय ने कहा कि अपराध के साहित्य को पुलिस अधिकारियों को लिखना चाहिए। तभी लोगों तक पूरा सच पहुंचेगा।
वास्तविक घटनाओं के विषय में जब अन्य लेखक लिखते हैं तो उनके अथक प्रयासों के बाद भी पुलिस की कार्यप्रणाली को नहीं समझा जा सकता है। अपराध का साहित्य अन्य साहित्य से बहुत अलग है। पांडेय श्रीप्रकाश शुक्ला एनकाउंटर पर आधारित ऑपरेशन बाजूका पर चर्चा कर रहे थे। इसमें उन्होंने श्रीप्रकाश शुक्ला के खिलाफ चलाए गए इस ऑपरेशन की जटिलता को विस्तार से बताया।
उन्होंने अपराध के साहित्य पर बोलते हुए कहा कि अन्य साहित्य लोग दिल से पढ़ते हैं। जबकि, अपराध के साहित्य को पढ़ने के लिए दिमाग का अधिक प्रयोग होता है। कहानियों और पुलिस की कार्यप्रणाली को समझने के लिए पाठक को अधिक मेहनत करनी पड़ती है। लेकिन, जब यह साहित्य खुद पुलिस कर्मी लिखता है तो बेहद आसानी होती है।
इस सत्र में उनके साथ आरके गोस्वामी वक्ता और साहेल माथुर संचालक के रूप में उपस्थित रहे। इससे पहले अंतिम दिन की शुरुआत सत्र जासूसी थ्रीलर के साथ हुई। इसमें सिद्धार्थ माहेश्वरी ने कहा कि जासूसी उपन्यास लिखना रोमांचकारी और कठिन कार्य है। कुख्यात चंदन तस्कर विरप्पन के खिलाफ चले ऑपरेशन ककून पर पूर्व आईपीएस के विजय कुमार ने पूर्व डीजीपी आलोक बी लाल और डीवी गुरू प्रसाद के साथ चर्चा की।
उन्होंने कहा कि विरप्पन जंगल में शिकार करता था। उसका यह क्षेत्र दो राज्यों कर्नाटक और तमिलनाडु का था। उस वक्त चले ऑपरेशन ककून को बेहतर ढंग से चलाने में दोनों राज्यों ने समन्वय का एक उत्कृष्ट उदाहरण पेश किया। आईपीएस नवनीत सिकेरा के मुजफ्फरनगर के कार्यकाल पर बनी वेबसीरिज भौकाल पर भी एक सत्र में चर्चा की गई। इसमें एडीजी नवनीत सिकेरा और सीरिज के निर्माता हर्मन बावेजा व लेखक जयशीला बंसल शामिल रहे। इस दौरान निर्माता और लेखक ने कहा कि सीरिज को पुलिस के नियमों को ध्यान में रखकर बनाना बेहद चुनौतीपूर्ण रहा। इसके अलावा कई सत्रों पर विशेषज्ञों ने अपनी राय रखी।
बाटला हाउस एनकाउंटर में दिल्ली पुलिस के इंस्पेक्टर मोहनचंद शर्मा शहीद हो गए थे। उस वक्त दिल्ली क्राइम ब्रांच के चीफ पूर्व आईपीएस करनैल सिंह ने कहा कि इस एनकाउंटर को झूठा बताने वालों की होड़ लग गई थी। जबकि, न्यायिक प्रक्रिया में सभी आरोपियों को दोषी ठहराया जा चुका है। इंस्पेक्टर शर्मा के योगदान को याद करते हुए उनका गला भर आया। उन्होंने कहा कि एनकाउंटर से एक दिन पहले शर्मा का बेटा अस्पताल में जिंदगी और मौत के बीच झूल रहा था। लेकिन, वह उसके साथ रहने के बजाय वह टीम के साथ गए।
तराई के आतंकवाद विषय पर पूर्व डीजीपी आलोक लाल, पूर्व डीजीपी उत्तराखंड अनिल रतूड़ी और डीजीपी अशोक कुमार ने चर्चा की। वक्ताओं ने कहा कि पंजाब में जब आतंकवाद की जड़ें उखड़ने लगी तो आतंकियों ने तराई का रुख किया। उस वक्त उत्तर प्रदेश की पुलिस के पास ऐसा कोई अनुभव नहीं था कि अत्याधुनिक हथियारों से लैस आतंकियों पर कैसे काबू पाया जाए। बावजूद इसके तराई के इस आतंकवाद को पूरी तरह से खत्म कर दिया गया। पूर्व डीजीपी अनिल रतूड़ी ने अपने कार्यकाल की प्रमुख घटनाओं का जिक्र किया। 1990 से 1993 के बीच आतंकियों ने तराई (उत्तराखंड के रुद्रपुर से बरेली तक इलाका) में सैकड़ों लोगों को मौत के घाट उतारा था।
अंतिम सत्र में डीजीपी अशोक कुमार की पुस्तक खाकी में इंसान पर चर्चा हुई। इसमें डीजीपी अशोक कुमार, एसएसपी देहरादून अजय सिंह और पुस्तक के सह लेखक लोकेश ओहरी ने चर्चा की। इस दौरान डीजीपी ने कहा कि पुलिस को ट्रिपल पॉवर मिली है। यानी उसके पास वर्दी, हथियार और कानून हैं। इसी ट्रिपल पॉवर का इस्तेमाल करते हुए पुलिस जनता की उम्मीदों पर खरा उतर सकती है। एसएसपी अजय सिंह ने कहा कि किताब से रोजमर्रा की पुलिसिंग में सहायता मिलती है, साथ ही सिस्टम को सुधारने के लिए किसी एक को आगे रहकर नेतृत्व करना होता है।