
अलकनंदा तथा पिण्डर नदियों के संगम पर कर्णप्रयाग स्थित है। पिण्डर का एक नाम कर्ण गंगा भी है, जिसके कारण ही इस तीर्थ संगम का नाम कर्ण प्रयाग पडा। यहां पर उमा मंदिर और कर्ण मंदिर दर्शनीय है। यहां पर भगवती उमा का अत्यंत प्राचीन मन्दिर है। संगम से पश्चिम की ओर शिलाखंड के रूप में दानवीर कर्ण की तपस्थली और मन्दिर हैं। यहीं पर महादानी कर्ण द्वारा भगवान सूर्य की आराधना और अभेद्य कवच कुंडलों का प्राप्त किया जाना प्रसिद्ध है। कर्ण की तपस्थली होने के कारण ही इस स्थान का नाम कर्णप्रयाग पड़ गया। साथ ही यहां स्नान के बाद दान करने की परंपरा है।
आवाजाही के मार्ग
उत्तराखंड के पंच प्रयागों में शामिल कर्णप्रयाग स्थल नेशनल हाईवे 58 पर स्थित है। यह स्थल बद्रीनाथ और माणा गांव को दिल्ली से जोड़ता है। कर्णप्रयाग के लिए आपको ऋषिकेश से लगभग 170 किमी का सफर तय करना होगा। यहां तक के लिए आपको पहाड़ी सड़क मार्गों का सहारा लेना होगा। कर्णप्रयाग से बद्रीनाथ की दूरी महज 127 किमी तक की रह जाती है।
पर्यटकों के लिए खास
पर्यटन के लिहाज से देवप्रयाग, रूद्रप्रयाग के बाद कर्णप्रयाग एक प्रसिद्ध टूरिस्ट डेस्टिनेशन है. यहां की आवोहवा में व्याप्त शांति किसी का भी मन मोह लेगी। नेचर लवर्स के लिए यह स्थल काफी मायने रखता है। दार्शनिक स्थलों के शौकीन देवप्रयाग, रूद्रप्रयाग के बाद इस स्थान पर जरूर आना पसंद करते हैं. इस स्थान पर आप बेस्ट रिवर राफ्टिंग का आनंद ले सकते हैं। यहां से लगभग 170 किमी की दूरी पर ऋषिकेश स्थित है अगर आप चाहें तो यहां आकर भी विभिन्न वाटर स्पोर्ट्स का लुफ्त उठा सकते हैं। ऋषिकेश से होकर चंबा के रास्ते आप धनौल्टी नामक पर्यटक स्थल तक भी पहुंच सकते हैं। जहां सर्दियों में चारों तरफ जमी बर्फ आपको रोमांच से भर देगी।