
उत्तराखंड में शहरी विकास के स्वरूप को बदलने जा रही भूमि पूलिंग नियमावली 2025 को राज्य कैबिनेट ने स्वीकृति दे दी है। यह नीति भूमि अधिग्रहण की पुरानी प्रक्रिया को बदलकर एक साझेदारी आधारित विकास मॉडल प्रस्तुत करती है, जिसमें जमीन मालिक अपनी भूमि सरकार या प्राधिकरण को सौंपकर बदले में उसी भूमि का विकसित हिस्सा तथा आर्थिक लाभ प्राप्त कर सकेंगे। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक में इस नियमावली पर मुहर लगाई गई। नई नीति के तहत प्राधिकरण जमीन लेकर उसका विकास करेगा और फिर उसका एक निर्धारित हिस्सा भूमि मालिक को वापस लौटाएगा, जबकि शेष हिस्से को लीज पर दिया जा सकेगा या बेचा जा सकेगा। प्रमुख सचिव आवास आर. मीनाक्षी सुंदरम के अनुसार, इस नीति का उद्देश्य लाभ कमाना नहीं बल्कि पूरे राज्य में सुनियोजित और व्यवस्थित शहरी विस्तार को बढ़ावा देना है।
नीति के प्रावधानों के अनुसार, जिनके पास भूमि है उन्हें 24 प्रतिशत तक विकसित रिहायशी प्लॉट और सात प्रतिशत कॉमर्शियल प्लॉट मिलेगा। यदि मालिक कॉमर्शियल प्लॉट नहीं लेना चाहते, तो उन्हें 14 प्रतिशत अतिरिक्त रिहायशी प्लॉट दिया जाएगा। विकसित प्लॉट देने में असमर्थता की स्थिति में रिहायशी प्लॉट पर दोगुना और कॉमर्शियल प्लॉट पर तीन गुना सर्किल रेट के बराबर राशि दी जाएगी। वहीं जिन भूमि मालिकों की जमीन कानूनी रूप से किसी और के नाम नहीं की जा सकती, उन्हें 22 प्रतिशत रिहायशी और छह प्रतिशत कॉमर्शियल जमीन दी जाएगी।
इसके अलावा, भूमि मालिकों को आजीविका भत्ता भी प्रदान किया जाएगा। गैर-कृषि भूमि होने पर 12 रुपये प्रति वर्ग मीटर प्रतिमाह और कृषि भूमि होने पर छह रुपये प्रति वर्ग मीटर प्रतिमाह भत्ता मिलेगा, जो अधिकतम तीन वर्षों तक दिया जाएगा। इसका भुगतान तीन वार्षिक किस्तों में होगा और प्रारंभिक 25–30 प्रतिशत राशि अग्रिम जारी की जाएगी। छोटे भूमि मालिकों के लिए, जिनकी भूमि 250 वर्गमीटर से कम है, नकद मुआवजे की व्यवस्था की गई है।
भूमि पूलिंग प्रक्रिया में 13 चरण निर्धारित किए गए हैं—from बेस मैप और ड्राफ्ट लेआउट की तैयारी से लेकर अंतिम प्रमाणपत्र जारी होने तक। प्राधिकरण इन सभी प्रक्रियाओं को निर्धारित समयावधि में पूरा करेगा। योजना घोषित होते ही संबंधित क्षेत्र में दो वर्ष के लिए निर्माण गतिविधियों पर रोक लगाई जाएगी, जिसे बाद में छह से बारह महीने तक बढ़ाया जा सकता है। योजना के अंतर्गत भूमि मालिक और सरकार के बीच प्लॉट के पुनर्गठन पर कोई स्टांप ड्यूटी या रजिस्ट्रेशन शुल्क नहीं लगेगा। किसी भी विवाद की स्थिति में तीन स्तरीय अपील प्रणाली होगी—पहला स्तर प्राधिकरण के चेयरमैन, दूसरा स्तर आवास विकास प्राधिकरण के मुख्य प्रशासक और अंतिम स्तर इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कमिश्नर होंगे, जिनका फैसला अंतिम माना जाएगा।
देश के अन्य हिस्सों में भूमि पूलिंग के सफल उदाहरण भी सामने आए हैं। आंध्र प्रदेश में अमरावती परियोजना के लिए 33,000 एकड़ भूमि पूल की गई, जिसने 51,000 करोड़ रुपये के निवेश को आकर्षित किया। दिल्ली में भी इस नीति के अंतर्गत 20,000 हेक्टेयर भूमि अधिसूचित की गई, जिससे 60,000 करोड़ से अधिक के निजी निवेश की उम्मीद है। उत्तराखंड सरकार को उम्मीद है कि यह मॉडल शहरीकरण को नए आयाम देगा, भूमि विवादों में कमी लाएगा और प्रदेश में निवेश तथा विकास दोनों को गति प्रदान करेगा।




