
बांग्लादेश की राजनीतिक उथल-पुथल और अस्थिरता के बीच अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण द्वारा पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को “मानवता के खिलाफ अपराध” के आरोप में सुनाई गई मौत की सज़ा ने पूरे दक्षिण एशिया का माहौल तनावपूर्ण कर दिया है। यह फैसला न केवल बांग्लादेश के भविष्य के लिए एक गहरी चिंता बनकर सामने आया है, बल्कि भारत के सामने भी एक बेहद कठिन कूटनीतिक संकट खड़ा कर गया है, क्योंकि हसीना पिछले वर्ष अपनी सरकार गिरने के बाद से भारत में ही रह रही हैं।
बांग्लादेश की राजनीति में उतार-चढ़ाव कोई नई बात नहीं, लेकिन आज जो हालात बने हैं वह देश को गंभीर अनिश्चितता और संभावित गृहयुद्ध जैसी स्थिति की ओर धकेलते दिखाई देते हैं। न्यायाधिकरण का यह फैसला ऐसे समय आया है जब देश पहले ही 2024 के “जुलाई विद्रोह” के घावों से उबर नहीं पाया है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट बताती है कि उस विद्रोह में एक महीने के भीतर 1,400 लोगों की जान गई थी। यह आँकड़ा स्वयं इस बात की गवाही देता है कि बांग्लादेश का सामाजिक ढांचा भीतर से कितना हिल चुका था।
शेख हसीना का मामला भी ऐसे ही विवादों में उलझा हुआ है। हसीना को भगोड़ा घोषित करने और उनकी अनुपस्थिति में मुकदमा चलाने का फैसला स्वयं न्यायिक निष्पक्षता पर प्रश्नचिह्न खड़ा करता है। अंतरिम सरकार, जिसने सत्ता संभालने के बाद हसीना पर कानूनी शिकंजा कसना शुरू किया, लंबे समय से आलोचनाओं के घेरे में है। देश के बड़े हिस्से में प्रशासन ठप है, ग्रामीण इलाकों में झड़पें बढ़ती जा रही हैं, और राजनीतिक ध्रुवीकरण नई ऊंचाइयों पर पहुँच गया है। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि न्यायाधिकरण का फैसला उस राजनीतिक खाई को और चौड़ा करेगा जिसका अंत हिंसा में ही होना तय है।
शेख हसीना बांग्लादेश की राजनीति में एक सामान्य नेता नहीं, बल्कि सबसे लंबे समय तक सत्ता में रहने वाली प्रमुख हस्ती हैं। अवामी लीग का उनका व्यापक राजनीतिक आधार उन्हें आज भी लाखों समर्थकों के बीच लोकप्रिय बनाता है। यही कारण है कि उनकी मौत की सज़ा ने लोगों की भावनाओं को गहराई से झकझोर दिया है। फैसले के तुरंत बाद पूरे बांग्लादेश में प्रदर्शनों और हिंसा की खबरें लगातार सामने आने लगीं। हालात इतने बिगड़े कि सुरक्षा बलों को प्रदर्शनकारियों पर “देखते ही गोली मारने” का आदेश तक देना पड़ा। यह स्पष्ट संकेत है कि फैसले ने देश को स्थिरता से और दूर धकेल दिया है।
अंतरिम सरकार के मुखिया मुहम्मद यूनुस पहले से ही विपक्ष, विशेषज्ञों और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के निशाने पर हैं। उन पर यह आरोप लगातार लगाया जाता रहा है कि वे न्यायिक संस्थाओं का उपयोग राजनीतिक बदले की कार्रवाई के लिए कर रहे हैं। विपक्ष का यह भी आरोप है कि यह सब अवामी लीग को पूरी तरह राजनीतिक परिदृश्य से हटाने की सुनियोजित रणनीति का हिस्सा है। इन सबके बीच भारत की स्थिति सबसे अधिक संवेदनशील हो गई है। भारत के लिए यह फैसला किसी कूटनीतिक परीक्षा की तरह है। यदि भारत हसीना को ढाका के हवाले करता है, तो वह उस फैसले को वैधता देगा जिसे बड़ा हिस्सा राजनीतिक प्रतिशोध मान रहा है। इससे अवामी लीग जैसे भारत समर्थक गुटों में गहरी निराशा फैल सकती है, और भारत-विरोधी ताकतें इसे अपने हित में इस्तेमाल कर सकती हैं।
दूसरी ओर, यदि भारत हसीना को शरण देना जारी रखता है, तो अंतरिम सरकार और कट्टरपंथी समूह भारत पर बांग्लादेश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप का आरोप लगाएंगे। इससे दोनों देशों के राजनयिक रिश्ते तनावपूर्ण हो सकते हैं और सीमा सुरक्षा से लेकर व्यापार तक हर क्षेत्र में बाधाएँ पैदा हो सकती हैं। यह स्थिति भारत की क्षेत्रीय रणनीति के लिए गहरा खतरा बन सकती है, क्योंकि हसीना ही वह नेता रही हैं जिन्होंने बांग्लादेश को पूरी तरह चीन के प्रभाव में जाने से रोके रखा। न्यायाधिकरण के फैसले में यह दावा किया गया कि पिछले वर्ष 15 जुलाई से 15 अगस्त के बीच छात्र-नेतृत्व वाले विरोध प्रदर्शनों के खिलाफ की गई हिंसक कार्रवाई के आदेश हसीना ने ही दिए थे, जिसके चलते कई छात्रों की मौत हुई। अदालत ने इसे निहत्थे नागरिकों के खिलाफ घातक बल प्रयोग करार दिया। परंतु शेख हसीना ने इस आरोप को पूरी तरह से खारिज कर दिया है। उन्होंने इस फैसले को “राजनीतिक प्रतिशोध” बताते हुए अंतरिम सरकार पर कठोर आरोप लगाए।
अपने बयान में उन्होंने कहा कि न्यायाधिकरण पूरी तरह पक्षपातपूर्ण है और इसे एक ऐसी सरकार चला रही है जिसे जनता ने नहीं चुना। हसीना ने यह भी याद दिलाया कि उनके कार्यकाल में बांग्लादेश ने अभूतपूर्व विकास किया—चाहे वह रोहिंग्या शरणार्थियों को आश्रय देना हो, शिक्षा व बिजली की पहुंच बढ़ाना हो, या फिर GDP में 450% की वृद्धि कर लाखों लोगों को गरीबी से बाहर निकालना। उनके अनुसार, जो नेतृत्व इतनी उपलब्धियाँ हासिल कर सकता है, वह मानवाधिकार उल्लंघन नहीं कर सकता। संपूर्ण घटना यह दर्शाती है कि बांग्लादेश एक गंभीर राजनीतिक, सामाजिक और संस्थागत संकट में डूब चुका है। जब न्याय व्यवस्था राजनीतिक हथियार बन जाए और संघर्ष का समाधान संवाद की बजाय दमन से खोजा जाए, तो लोकतंत्र और न्याय व्यवस्था दोनों कमजोर हो जाते हैं। इस समय बांग्लादेश को पारदर्शी न्यायिक प्रक्रिया और राजनीतिक मेल-मिलाप की आवश्यकता है, अन्यथा देश गहरे विभाजन, हिंसा और अराजकता की ओर बढ़ता ही जाएगा।
दक्षिण एशिया की स्थिरता के लिए बांग्लादेश की स्थिति बेहद महत्वपूर्ण है। ऐसे में यह फैसला न केवल ढाका की राजनीति, बल्कि क्षेत्रीय शांति, सुरक्षा और कूटनीतिक संतुलन को भी बुरी तरह प्रभावित कर सकता है। भारत के सामने यह चुनौती अब पहले से कहीं अधिक जटिल हो चुकी है कि वह मानवाधिकार, पड़ोसी नीति और रणनीतिक हितों के बीच कैसे संतुलन स्थापित करे।







