
देहरादून। हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र पर जलवायु परिवर्तन का असर अब स्पष्ट रूप से दिखने लगा है। भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) में चल रहे एक दीर्घकालिक अध्ययन में यह सामने आया है कि तापमान में लगातार बढ़ोतरी के कारण हिमालय के मध्य क्षेत्र में पाए जाने वाले बड़े पक्षी जैसे चीड़ फिजेंट और जुजुराना के अस्तित्व पर खतरा मंडरा सकता है, जबकि जंगली मुर्गा (Red Junglefowl) जैसे कुछ पक्षी इस परिवर्तन को झेलने में सक्षम रहेंगे।
जलवायु परिवर्तन पर हिमालयी अध्ययन
भारतीय वन्यजीव संस्थान में वर्ष 2015 में “नेशनल मिशन फॉर सस्टेनिंग द हिमालयन इकोसिस्टम (NMSHE)” के अंतर्गत एक व्यापक अध्ययन शुरू किया गया था। इस अध्ययन का उद्देश्य यह समझना था कि जलवायु परिवर्तन का पक्षियों और वन्यजीवों पर दीर्घकालिक प्रभाव क्या होगा। इस शोध में पूरे हिमालयी क्षेत्र — अरुणाचल से लेकर उत्तराखंड तक — के तापमान, वनस्पति और पक्षी प्रजातियों के व्यवहारिक पैटर्न का विश्लेषण किया गया।
कौन-से पक्षी होंगे प्रभावित
अध्ययन में पाया गया कि 2000 से 3500 मीटर की ऊंचाई पर मिलने वाले पक्षी सबसे अधिक प्रभावित हो सकते हैं।
प्रोजेक्ट साइंटिस्ट विनीत दुबे के अनुसार, “अगर अगले दो से तीन दशकों में औसत तापमान 1 से 2 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ता है, तो इसका प्रत्यक्ष असर मध्य हिमालय के पक्षियों पर पड़ेगा। विशेष रूप से चीड़ फिजेंट, जुजुराना और तिब्बतन स्नो काक जैसी प्रजातियों के लिए आवास (habitat) सीमित हो जाएगा।”
क्यों बढ़ेगी मुश्किल
इन पक्षियों की विशिष्टता यह है कि ये एक निश्चित ऊंचाई वाले ठंडे, नम और घने वन क्षेत्रों में ही जीवित रह सकते हैं। जैसे-जैसे तापमान बढ़ेगा, इनका अनुकूल आवास ऊपर की ओर खिसकेगा। लेकिन ऊंचाई की एक सीमा होती है — जिसके पार न तो पर्याप्त वनस्पति मिलती है और न ही भोजन।
इस वजह से ये पक्षी “ऊंचाई के जाल (Altitudinal trap)” में फंस सकते हैं, जहां इनके जीवित रहने की संभावना घट जाएगी।
जंगली मुर्गा क्यों रहेगा सुरक्षित
इसके विपरीत, जंगली मुर्गा (Gallus gallus) जैसे पक्षी अपेक्षाकृत नीची और गर्म जलवायु में पाए जाते हैं। ये अनुकूलनशील (adaptive) हैं और तापमान में हल्के बदलाव को सहन कर सकते हैं। इसलिए वैज्ञानिकों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन का असर इन पर सीमित रहेगा।
पारिस्थितिकी तंत्र पर व्यापक प्रभाव
विशेषज्ञों का कहना है कि तापमान में वृद्धि सिर्फ पक्षियों पर ही नहीं, बल्कि पूरे हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र पर असर डालेगी। इससे
- वनस्पति की संरचना बदलेगी,
- कीट-पतंगों की संख्या और वितरण में परिवर्तन होगा,
- और पक्षियों के प्रवास (migration) का पैटर्न भी प्रभावित होगा।
यह परिवर्तन धीरे-धीरे भोजन श्रृंखला (food chain) और प्राकृतिक संतुलन को प्रभावित करेगा।
वैज्ञानिकों की चेतावनी
WII के वैज्ञानिकों का कहना है कि यह अध्ययन जलवायु संकट के प्रति एक चेतावनी है। अगर तापमान वृद्धि की गति इसी तरह जारी रही, तो आने वाले दशकों में हिमालयी पक्षियों की कई प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर पहुंच सकती हैं।
अध्ययन के अनुसार, स्थानीय स्तर पर वन संरक्षण, जलस्रोतों का पुनरुद्धार, और प्राकृतिक आवासों के संरक्षण के लिए नीति-स्तर पर कदम उठाने की आवश्यकता है।




