
देहरादून। हालिया आपदा ने राजधानी देहरादून और आसपास के कई गांवों की तस्वीर पूरी तरह बदल दी है। आसमान से बरसी आफत ने सैकड़ों परिवारों के सपनों के आशियाने छीन लिए। जिन घरों में कभी खुशियां और रौनक बसती थी, वहां अब मलबे के ढेर और खंडहरनुमा दीवारें ही बची हैं। लोगों की आंखों में उजड़े घरों का दर्द और भविष्य की चिंता साफ झलक रही है।
तबाही का मंजर: उजड़े आशियाने और बर्बाद सामान
सहस्रधारा, मजाड़ा, कार्लीगाड़, मालदेवता समेत कई इलाकों में आपदा ने कहर ढाया।
- कुछ घर पूरी तरह मलबे में समा गए, जबकि बचे हुए घरों में भी घुसा मलबा सामान को नष्ट कर चुका है।
- प्रभावित परिवारों के पास अब पहनने तक के लिए कपड़े नहीं हैं।
- घरों में रखा अनाज, बर्तन और अन्य सामान मिट्टी व पानी में खराब हो गया।
लोग जो कुछ सामान निकाल पा रहे हैं, उसे बाहर लाकर सुरक्षित जगहों पर रखने की कोशिश कर रहे हैं। कई परिवार मजबूर होकर गांव छोड़कर रिश्तेदारों और परिचितों के यहां शरण ले रहे हैं।
प्रभावितों की पीड़ा: आंखों में आंसू और दर्द की दास्तान
आपदा प्रभावित राजेश, विनोद और शीतल ने बताया कि उनके घर में रखा सामान पूरी तरह से नष्ट हो गया है। वे अब गांव से बाहर कहीं और रात गुजारने को मजबूर हैं। गांव की तबाही का मंजर उनकी आंखें देख भी नहीं पा रही हैं।
एक स्थानीय महिला ने रोते हुए कहा, “जीवनभर की कमाई से घर बनाया था, लेकिन अब वह ढेर बन चुका है। सिर ढकने को छत तक नहीं बची।”
प्रशासन और राहत इंतजाम
प्रशासनिक स्तर पर राहत कार्य शुरू कर दिए गए हैं, लेकिन हालात इतने गंभीर हैं कि हर प्रभावित परिवार तक मदद पहुंचने में समय लग रहा है।
- प्रभावित गांवों में अस्थायी आश्रय शिविर बनाए जा रहे हैं।
- स्थानीय लोग भी राहत सामग्री पहुंचाने में जुटे हैं।
- शासन ने नुकसान का आकलन शुरू कर दिया है, ताकि मुआवजा और पुनर्वास की प्रक्रिया तेजी से आगे बढ़ सके।
गांवों में पसरा सन्नाटा और भविष्य की चिंता
- जहां कभी चहल-पहल और रौनक रहती थी, वहां अब सन्नाटा पसरा है। चारों ओर सिर्फ मलबे और तबाही के निशान हैं। बच्चे तक पूछ रहे हैं कि “हमारा घर कब बनेगा?”
- लोगों को चिंता है कि अब वे फिर से कैसे जीवन शुरू करेंगे। खेती-किसानी पर निर्भर परिवारों की हालत और खराब है क्योंकि खेतों में भी मलबा भर चुका है।
देहरादून की यह आपदा सिर्फ प्राकृतिक तबाही नहीं, बल्कि हजारों परिवारों की जिंदगी को उजाड़ देने वाली त्रासदी बन गई है। घर, दुकानें और रोज़गार के साधन सब कुछ छिन जाने के बाद लोग अब सरकार और समाज से मदद की उम्मीद लगाए बैठे हैं।
मलबे से ढके गांव, उजड़े आशियाने और आंसुओं से भरी आंखें इस बात की गवाही दे रही हैं कि पुनर्निर्माण और पुनर्वास की राह कितनी कठिन होगी।