
पत्रकारिता के आकाश का एक उज्ज्वल तारा बुझा
वरिष्ठ पत्रकार राकेश खंडूड़ी का असमय निधन संस्थान और प्रदेश की पत्रकारिता के लिए अपूरणीय क्षति है। 52 वर्ष की उम्र में उनका यूं चले जाना उनके परिवार, मित्रों और सहयोगियों के लिए गहरा सदमा है। पत्रकारिता की गहरी समझ और कार्य के प्रति समर्पण ने उन्हें उत्तराखंड ही नहीं, बल्कि पड़ोसी हिमाचल प्रदेश में भी एक विश्वसनीय और सशक्त आवाज़ बना दिया था।
एक पत्रकार के भीतर छिपा कलाकार
खंडूड़ी जी का व्यक्तित्व बहुआयामी था। आमतौर पर गंभीर और शांत दिखाई देने वाले इस पत्रकार ने जीवन के अंतिम वर्षों में अपने भीतर छिपी एक अद्भुत कला से सबको चौंकाया। उन्होंने माउथ ऑर्गन बजाकर ऐसी मधुर धुनें प्रस्तुत कीं कि सभी उनके कलाकार रूप से अचंभित रह गए। कुछ महीने पहले ही उन्होंने खुद को ‘माउथ ऑर्गन प्लेयर’ के रूप में पेश किया और उनकी प्रस्तुतियों ने सोशल मीडिया पर एक अलग पहचान बना दी। यह इस बात का प्रमाण था कि पत्रकारिता के कठिन और चुनौतीपूर्ण पेशे के बावजूद उन्होंने अपने जुनून और पैशन को जिंदा रखा।
पत्रकारिता में ईमानदारी और संवेदनशीलता की मिसाल
राकेश खंडूड़ी ने कभी भी पत्रकारिता को सनसनी या व्यक्तिगत लाभ का माध्यम नहीं बनने दिया। वे खबरों को लेकर हमेशा निष्पक्ष, गहरे और संवेदनशील दृष्टिकोण रखते थे।
- उन्होंने देहरादून के डोईवाला से बतौर संवाददाता अपनी पत्रकारिता यात्रा की शुरुआत की।
- लगातार मेहनत, लगन और समझ के बल पर वे स्टेट ब्यूरो चीफ के पद तक पहुंचे।
- उनकी नेतृत्व क्षमता और सहयोगात्मक प्रवृत्ति ने उन्हें सहयोगियों का प्रिय और वरिष्ठों के बीच अलग पहचान दिलाई।
उत्तराखंड की नब्ज़ पर गहरी पकड़
खंडूड़ी जी की पहचान सिर्फ पत्रकार भर नहीं थी। वे राज्य की राजनीति और प्रशासन की गहरी समझ रखते थे।
- उत्तराखंड की सांस्कृतिक विरासत से उनका गहरा लगाव था। वे अक्सर न्यूज रूम में युवा पत्रकारों को बताते थे कि संस्कृति को समझे बिना समाज और राजनीति की असली तस्वीर को नहीं पकड़ा जा सकता।
- पड़ोसी राज्य हिमाचल पर भी उनकी उतनी ही गहरी नज़र रहती थी। यही कारण था कि क्षेत्रीय मुद्दों पर उनके लेख और रिपोर्टिंग बेहद सटीक और प्रामाणिक मानी जाती थी।
साथियों और वरिष्ठों का प्रिय
खंडूड़ी जी अपने मृदुल स्वभाव, कार्यकुशलता और मिलनसार व्यवहार के कारण हर किसी के प्रिय थे। शायद ही उत्तराखंड का कोई पत्रकार या संस्थान हो, जिसने उनके जाने पर सोशल मीडिया पर अपनी संवेदना व्यक्त न की हो। हर संदेश में उनके सहयोगी स्वभाव, नेतृत्व क्षमता और पेशे के प्रति ईमानदारी का ज़िक्र मिलता है।