
ऊधम सिंह नगर। गाजर घास (पार्थेनियम हिस्टेरोफोरस) जिसे अब तक किसान और समाज के लिए मुसीबत माना जाता था, अब दूषित जल को साफ करने का बड़ा साधन बनने जा रही है। जीबी पंत कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय (पंतनगर विवि) की शोधार्थी निष्ठा नौडियाल ने गाजर घास से कार्बन डॉट्स तैयार कर पानी की शुद्धिकरण तकनीक विकसित की है। खास बात यह है कि इस तकनीक का पेटेंट भी फाइल कर दिया गया है।
हानिकारक पौधे को बनाया उपयोगी संसाधन
गाजर घास खेतों में फसलों को नुकसान पहुंचाने, एलर्जी व सांस की बीमारियां फैलाने के कारण हमेशा से समस्या रही है। लेकिन शोधार्थी निष्ठा ने विभागाध्यक्ष डॉ. आरके श्रीवास्तव के मार्गदर्शन में इसे अवसर में बदल दिया। उन्होंने बताया कि कृषि अपशिष्ट और इस हानिकारक खरपतवार का उपयोग कर जल शोधन की एक पर्यावरण-अनुकूल, किफायती और टिकाऊ तकनीक तैयार की गई है।
कैसे तैयार होते हैं कार्बन डॉट्स
निष्ठा के अनुसार, गाजर घास से पहले बायोचार बनाया गया। इसके बाद धीमी पायरोलेसिस विधि से कार्बन डॉट्स तैयार किए गए। इन डॉट्स को टाइटेनियम डाइऑक्साइड के साथ मिलाकर नैनो-कंपोजिट्स बनाए गए। यह कंपोजिट्स गंदे पानी में मौजूद प्रदूषक तत्वों और भारी धातुओं को अवशोषित कर पानी को साफ कर देते हैं। इस प्रक्रिया में किसी भी हानिकारक रसायन का इस्तेमाल नहीं होता, जिससे यह तकनीक पूरी तरह हरित (ग्रीन) और सुरक्षित है।
क्या होते हैं कार्बन डॉट्स?
कार्बन डॉट्स बेहद सूक्ष्म नैनो कण होते हैं जिनका आकार 10 से 20 नैनोमीटर तक होता है। ये पानी से जहरीले तत्वों को खींचकर बाहर निकालने में सक्षम होते हैं। पारंपरिक जल शोधन तकनीक की तुलना में यह विधि अधिक सरल, किफायती और टिकाऊ है।
शोध की अहमियत
डॉ. आरके श्रीवास्तव का कहना है कि “कृषि अपशिष्ट से कार्बन डॉट्स तैयार करने की यह उपलब्धि शानदार है। यह तकनीक भविष्य में गंदे पानी की सफाई के लिए एक सशक्त और किफायती विकल्प बन सकती है।” इस खोज से न सिर्फ गंदे पानी की सफाई संभव होगी, बल्कि बेकार समझी जाने वाली गाजर घास का भी प्रभावी उपयोग हो सकेगा। यह शोध आने वाले समय में जल संकट और प्रदूषण की समस्या से निपटने में महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है।




