
उत्तरकाशी | सात फरवरी 2021 को आई ऋषिगंगा आपदा में 200 से अधिक लोगों की जान जाने और कई बड़े हाइड्रो प्रोजेक्ट्स के ध्वस्त हो जाने के बावजूद उत्तराखंड सरकार ने नदी घाटी परियोजनाओं के ऊपरी जलग्रहण क्षेत्रों में अर्ली वार्निंग सिस्टम (EWS) लगाने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया। वरिष्ठ भू-वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि धराली आपदा से पहले यह व्यवस्था होती, तो जनहानि का आंकड़ा निश्चित रूप से कम हो सकता था।
ऋषिगंगा से धराली तक: चेतावनी की अनदेखी
2021 की ऋषिगंगा त्रासदी में, ग्लेशियर टूटने से अचानक आई बाढ़ ने ऋषिगंगा और तपोवन हाइड्रो प्रोजेक्ट को पूरी तरह तबाह कर दिया था। उस समय, गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के भूगर्भ विभागाध्यक्ष प्रो. एम.पी.एस. बिष्ट समेत कई वरिष्ठ भू-वैज्ञानिकों ने राज्य सरकार और परियोजना कंपनियों को ऊपरी जलग्रहण क्षेत्रों में श्रृंखलाबद्ध अर्ली वार्निंग सिस्टम लगाने की सलाह दी थी। यह सिस्टम आपदा से पहले खतरे की सटीक सूचना देने में सक्षम होता है, जिससे निचले इलाकों में रहने वाले लोग समय रहते सुरक्षित स्थानों पर पहुंच सकते हैं। लेकिन चार साल बीतने के बाद भी उत्तराखंड में इस दिशा में कोई ठोस पहल नहीं हुई।
धराली आपदा: एक और चेतावनी
हाल ही में आई धराली आपदा में भारी जनहानि और संपत्ति का नुकसान हुआ। भू-वैज्ञानिकों का कहना है कि अर्ली वार्निंग सिस्टम के अभाव में बचाव दलों को समय पर अलर्ट नहीं मिला और न ही स्थानीय लोगों को अग्रिम चेतावनी दी जा सकी।
प्रो. बिष्ट ने बताया—
“प्रदेशभर में संवेदनशील स्थानों की पहचान कर परियोजना कंपनियों को EWS लगाने की जिम्मेदारी दी जानी चाहिए। यूरोप के आल्प्स पर्वत में हाल ही में आई एक आपदा से हम सीख सकते हैं।”
आल्प्स से सबक: समय रहते बची जानें
29 मई 2025 को यूरोप के आल्प्स पर्वत में धराली जैसी स्थिति बनी। एक विशाल ग्लेशियर का हिस्सा टूटकर नीचे आया, जिससे बर्फ, कीचड़ और चट्टानों का सैलाब स्विटजरलैंड के ब्लैटिन गांव की ओर बहने लगा। लेकिन वहां लगे अर्ली वार्निंग सिस्टम की बदौलत आपदा से पहले ही गांव खाली करा लिया गया। ग्रामीणों के साथ-साथ भेड़ों और गायों को भी हेलीकॉप्टर से सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया। नतीजतन, भारी तबाही के बावजूद जनहानि शून्य रही।
उत्तराखंड में क्यों जरूरी है अर्ली वार्निंग सिस्टम
- प्रदेश का अधिकांश हिस्सा पर्वतीय और आपदा-संवेदनशील है।
- ग्लेशियर टूटने, बादल फटने और भूस्खलन जैसी घटनाएं अचानक और तीव्रता से होती हैं।
- ऊपरी जलग्रहण क्षेत्रों में EWS होने से निचले इलाकों में 30 मिनट से 2 घंटे तक का अग्रिम समय मिल सकता है।
- यह समय बचाव, निकासी और जान-माल के नुकसान को कम करने में निर्णायक हो सकता है।
आपदा प्रबंधन में ढिलाई पर सवाल
धराली आपदा के एक सप्ताह बाद भी इसके कारणों का स्पष्ट पता नहीं चल पाया है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह स्थिति आपदा प्रबंधन व्यवस्था की कमजोरी को उजागर करती है।
यदि सरकार और परियोजना कंपनियां 2021 के बाद से ही चेतावनी प्रणालियों पर काम शुरू कर देतीं, तो धराली जैसे हादसों में जनहानि काफी हद तक रोकी जा सकती थी।