
ऋषिकेश/उत्तरकाशी। धराली में आई भीषण आपदा के पांच दिन बाद भी वहां के जख्म ताज़ा हैं। इस हादसे में मौत के मुंह से निकलने वाले गुजरात निवासी पंकज और अल्मोड़ा के चौखुटिया निवासी भूपेंद्र ने अपनी आपबीती सुनाई तो सुनने वालों के रोंगटे खड़े हो गए। दोनों गंगोत्री धाम यात्रा पर निकले थे, लेकिन प्रकृति के प्रचंड प्रकोप ने उनकी यात्रा को भयावह अनुभव में बदल दिया। पंकज और भूपेंद्र चार अगस्त की रात धराली पहुंचे थे। बारिश रुकने का इंतजार करते हुए वे एक होम स्टे में ठहरे।
पांच अगस्त की सुबह उनका गंगोत्री जाने का इरादा था, लेकिन रातभर से हो रही बारिश ने उन्हें रोक लिया। नाश्ता करने के बाद थोड़ी देर के लिए दोनों सो गए। अचानक कानों में सीटियों की आवाज, लोगों की चीख-पुकार और “भागो-भागो” की गूंज से नींद टूटी। भूपेंद्र ने बताया, “हम बालकनी में आए तो देखा कि चारों तरफ मलबा ही मलबा था। हमारा होम स्टे पहाड़ी के किनारे था और भूतल पूरी तरह मलबे में डूब चुका था। नीचे ठहरे तीन-चार लोग हमारी आंखों के सामने मलबे में समा गए।”
जान बचाने के लिए छलांग
दोनों ने फंसे लोगों को बचाने की पूरी कोशिश की, एक व्यक्ति का सिर भी दिखाई दे रहा था, जिसे निकालने का प्रयास किया, लेकिन दूसरी ही पल उन्हें अपनी जान का डर सताने लगा। “हमने ऊपरी मंज़िल से छलांग लगाई और रेंगते हुए किसी तरह सुरक्षित स्थान पर पहुंचे,” पंकज ने कहा। पंकज और भूपेंद्र के मुताबिक, पहली लहर में पानी कम और मलबा ज्यादा था, जिसने अधिकांश होटल और होम स्टे को बहा दिया। उनका होम स्टे पहली लहर में बच गया, लेकिन दूसरी लहर में तेज पानी ने बाकी बची इमारतों को भी अपने साथ बहा दिया। “चौराहे (सर्कल) पर खड़े सबसे अधिक लोग इसकी चपेट में आ गए,” उन्होंने कहा।
सेना ने दी मदद
आपदा में उनका सारा सामान, यहां तक कि कपड़े तक बह गए। किराये पर ली गई बाइक भी आपदा में खत्म हो गई। “जब हम आर्मी कैंप पहुंचे, तो जवानों ने हमें अपने कपड़े दिए। उनके सहयोग के बिना हम ठंड और भीगने से शायद बच नहीं पाते,” पंकज ने भावुक होकर कहा।