
नींदड़/रींगस/सीकर | राजस्थान की राजधानी जयपुर के पास स्थित नींदड़ गांव का नाम पिछले कई महीनों से किसानों के आंदोलन के कारण चर्चा में है। लेकिन इस बार यह आंदोलन भावनात्मक और प्रतीकात्मक स्तर पर एक नई ऊंचाई पर पहुंच गया, जब किसान बंशीधर शर्मा खुद को जंजीरों में जकड़कर रींगस से खाटूश्यामजी तक पदयात्रा पर निकल पड़े। इस दृश्य ने न केवल लोगों को झकझोरा, बल्कि एक बार फिर सरकार और व्यवस्था के प्रति ग्रामीण किसानों की पीड़ा को उजागर कर दिया।
1350 बीघा जमीन पर संकट, 248 दिन से जारी है आंदोलन
जयपुर जिले के नींदड़ क्षेत्र में सरकार द्वारा प्रस्तावित आवासीय योजना के तहत 1350 बीघा कृषि भूमि का अधिग्रहण किया जा रहा है। बंशीधर शर्मा और उनके साथी किसानों का दावा है कि यह जमीन उनके खेती, पशुपालन और जीविका का मुख्य स्रोत है। यदि यह जमीन चली गई, तो उनके पास कोई विकल्प नहीं बचेगा। “हमारे पास खेत है, वही हमारा बैंक है, वही राशन है। अगर वो भी सरकार ले जाएगी, तो जीने का अधिकार क्या सिर्फ शहरों वालों को है?” – बंशीधर की आंखों में आंसू थे, लेकिन स्वर में संघर्ष और भरोसा था। 248 दिनों से किसानों का धरना जारी है। सर्दी, गर्मी, बारिश – हर मौसम में वे सड़क किनारे संघर्षरत रहे। लेकिन सरकार की ओर से अब तक कोई सार्थक वार्ता या समाधान नहीं आया।
जंजीरों का प्रतीक: “हम आज़ाद हैं, पर मजबूरियों के गुलाम”
पदयात्रा के दौरान सबसे ध्यान खींचने वाली बात थी बंशीधर का जंजीरों में जकड़ा हुआ शरीर। पूछने पर वे कहते हैं –
“ये जंजीरें मेरी मजबूरी की हैं, सिस्टम की हैं। आज़ादी सिर्फ किताबों में रह गई है। किसान आज भी गुलामी की हालत में जी रहा है। जब सरकारें सुनती नहीं, तब इंसान ईश्वर को पुकारता है।” यह पदयात्रा रींगस से खाटूधाम तक लगभग 17 किलोमीटर की है। उनके साथ पांच अन्य किसान भी चल रहे हैं, जिनके खेतों पर अधिग्रहण की तलवार लटक रही है। इन सभी की एक ही मांग है – “बाबा श्याम, हमारी जमीन बचा लो।”
“हम कोर्ट गए, धरना दिया, ज्ञापन सौंपे – लेकिन कहीं सुनवाई नहीं हुई”
बंशीधर शर्मा बताते हैं कि उन्होंने हर लोकतांत्रिक रास्ता अपनाया – कोर्ट में याचिका डाली, अधिकारियों से मिले, विधायकों और मंत्रियों को ज्ञापन दिए। लेकिन जवाब सिर्फ आश्वासन के रूप में आया, और जमीन पर कुछ नहीं बदला। उनका आरोप है कि अधिग्रहण की प्रक्रिया में पारदर्शिता नहीं है, किसानों को समुचित मुआवजा नहीं दिया गया, और पूर्व सहमति लिए बिना नोटिस थमा दिए गए। “कानून किताबों में अच्छा लगता है, जमीन पर तो बस प्रशासन की मनमानी चलती है।”
खाटूश्यामजी में पुकार – न्याय नहीं मिला, अब भरोसा है सिर्फ बाबा पर
खाटूश्यामजी में पहुंचते ही बंशीधर ने बाबा के दरबार में विनती की – “अब सरकार नहीं सुन रही, बाबा श्याम ही हमारी आखिरी आस हैं। हम न्याय मांगने आए हैं, भीख नहीं।” मंदिर के बाहर जुटी भीड़ और स्थानीय लोगों ने इस भावुक दृश्य को देखकर समर्थन जताया। सोशल मीडिया पर भी यह पदयात्रा वायरल हो रही है और कई किसान संगठनों ने इसे “किसान सम्मान पदयात्रा” का नाम दिया है।
राजनीतिक चुप्पी और प्रशासन की निष्क्रियता पर सवाल
अब तक राज्य सरकार की ओर से इस मुद्दे पर कोई ठोस बयान नहीं आया है। विपक्षी दलों ने जरूर सरकार पर किसानों की उपेक्षा का आरोप लगाया है, लेकिन व्यावहारिक समाधान कहीं नजर नहीं आता। बंशीधर की जंजीरों में जकड़ी पदयात्रा सिर्फ एक किसान की व्यक्तिगत पीड़ा नहीं, बल्कि लाखों छोटे किसानों की सामूहिक आवाज है, जो आज भी विकास की योजनाओं के नीचे दबती जा रही है। खाटूश्यामजी के मंदिर की सीढ़ियों पर बैठा यह किसान पूरे सिस्टम को एक सवाल पूछ रहा है – “किसका भारत महान?” जब तक इस सवाल का जवाब ईमानदारी से नहीं मिलेगा, तब तक किसान बाबा के दरबार में सिर झुकाते रहेंगे, और सरकारों के सामने खड़े रहेंगे — जंजीरों में भी, लेकिन उम्मीद के साथ।