
देहरादून। उत्तराखंड में बड़े भूकंप की आशंका जताई गई है। देश के प्रमुख भूवैज्ञानिकों ने देहरादून में आयोजित वैज्ञानिक बैठकों में इस संभावना पर विस्तार से चर्चा की। वैज्ञानिकों का मानना है कि हिमालयी क्षेत्र में टेक्टोनिक प्लेटों के आपसी घर्षण से भारी मात्रा में ऊर्जा भूगर्भ में एकत्र हो रही है, जो बड़े भूकंप का संकेत दे रही है। इसके चलते जून में देशभर के भूवैज्ञानिक देहरादून में जुटे, जहां वाडिया इंस्टीट्यूट और एफआरआई में इस विषय पर गहन विचार-विमर्श किया गया।
बैठक में विशेषज्ञों ने बताया कि अगला बड़ा भूकंप करीब 7.0 तीव्रता का हो सकता है। 4.0 तीव्रता के भूकंप से निकलने वाली ऊर्जा की तुलना में 5.0 तीव्रता वाला भूकंप 32 गुना अधिक ऊर्जा छोड़ता है। रिपोर्ट के अनुसार, पिछले छह महीनों में उत्तराखंड में 22 बार 1.8 से 3.6 तीव्रता के भूकंप दर्ज किए गए हैं, जिनमें सर्वाधिक झटके चमोली, पिथौरागढ़, उत्तरकाशी और बागेश्वर में महसूस किए गए।
उत्तराखंड भूकंपीय संवेदनशीलता के जोन-4 और जोन-5 में आता है। वर्ष 1991 में उत्तरकाशी और 1999 में चमोली में आए 7.0 और 6.8 तीव्रता के भूकंप के बाद से यहां कोई बड़ा भूकंप नहीं आया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि भूगर्भीय प्लेटों की गति ‘‘लॉक्ड’’ होने की स्थिति में टेक्टोनिक तनाव बढ़ता है, जिससे बड़े भूकंप की आशंका बनी रहती है। भूकंप पूर्वानुमान को लेकर वैज्ञानिकों ने बताया कि ‘‘कब’’ और ‘‘कितना बड़ा’’ भूकंप आएगा, इसका सटीक अनुमान अभी संभव नहीं है, लेकिन ‘‘कहां’’ भूकंप आ सकता है, इसका अध्ययन किया जा सकता है। उत्तराखंड में दो जीपीएस सेंसर लगाए गए हैं जो यह जानकारी देंगे कि किस क्षेत्र में सबसे ज्यादा ऊर्जा जमा हो रही है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इनकी संख्या और बढ़ाई जानी चाहिए।
वाडिया संस्थान में आयोजित कार्यशाला में बताया गया कि यदि समान तीव्रता का भूकंप मैदान और पहाड़ दोनों क्षेत्रों में आता है, तो मैदानों में नुकसान अधिक होता है। बड़े भूकंप आमतौर पर 10 किलोमीटर की उथली गहराई में आते हैं, जो अधिक गहराई वाले भूकंप की तुलना में तीन गुना ज्यादा खतरनाक होते हैं। केंद्र सरकार ने देहरादून समेत कुछ शहरों को भूकंपीय अध्ययन के लिए चुना है। सीएसआईआर बेंगलूरू शहर की जमीन की मजबूती की जांच करेगा, जिसमें यह देखा जाएगा कि कौन-कौन से क्षेत्र किस तरह की चट्टान पर बसे हैं और उनकी मोटाई कितनी है।
वाडिया इंस्टीट्यूट के निदेशक डॉ. विनीत गहलोत ने बताया कि उत्तर-दक्षिण टेक्टोनिक तनाव के कारण हिमालय धीरे-धीरे खिसक रहा है। सामान्यतः प्लेटें हर साल दो सेंटीमीटर खिसकती हैं, लेकिन उत्तराखंड में यह गति बेहद धीमी है, जिससे प्लेटों के बीच तनाव बढ़ता है और एक हिस्सा ‘‘लॉक’’ हो जाता है। यही बड़ी भूकंपीय घटनाओं का कारण बनता है। सीएसआईआर बेंगलूरू के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. इम्तियाज परवेज के अनुसार, पूरे हिमालय क्षेत्र में ऊर्जा जमा हो रही है। विशेष रूप से मध्य और पूर्वोत्तर हिमालय में यह स्थिति गंभीर है, लेकिन यह कहना बेहद कठिन है कि यह ऊर्जा कब और कहां मुक्त होगी।
आपदा सचिव विनोद कुमार सुमन ने बताया कि राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों में 169 स्थानों पर भूकंप चेतावनी सेंसर लगाए गए हैं, जो 5 तीव्रता से अधिक के भूकंप से पहले 15 से 30 सेकेंड में चेतावनी देंगे। यह जानकारी “भूदेव” मोबाइल एप के माध्यम से आम लोगों को दी जाएगी, ताकि लोग समय रहते सतर्क होकर खुद को सुरक्षित कर सकें। उत्तराखंड में बढ़ती भूगर्भीय गतिविधियों के चलते बड़े भूकंप की संभावना को लेकर वैज्ञानिक सतर्क हैं और संभावित खतरे से निपटने की तैयारी में जुटे हैं।