अल्मोड़ा। लोकसभा चुनाव के लिए मैदान सज चुका है और राजनीतिक लड़ाई शुरू हो चुकी है। संसद पहुंचने की चाहत में सभी राजनीतिक दलों के प्रत्याशी पूरी जोर आजमाईश कर रहे हैं। अल्मोड़ा संसदीय सीट पर भाजपा से दो बार के सांसद अजय टम्टा फिर से चुनावी मैदान में हैं। पांच साल पहले जीत दर्ज करने के बाद उन्होंने विकास के जरिए गांव का कायाकल्प करने के दावे कर ताकुला विकासखंड के स्वतंत्रता सेनानी सोबन सिंह जीना के पैतृक गांव सुनोली को गोद लिया। गांव की 1450 की आबादी को उम्मीद थी कि सांसद की नजर हमारे गांव पर पड़ने के बाद यहां विकास की बयार बहेगी और उन्हें तमाम समस्याओं से मुक्ति मिलेगी।
विकास के नाम पर इन पांच सालों में डेढ़ करोड़ रुपये भी खर्च हुए, लेकिन यह गांव आज भी मूलभूत सुविधाओं से जूझ रहा है और इसकी तस्वीर पहले की तरह है। हैरानी तब होती है जब ग्रामीण कहते हैं कि गोद लेने के बाद सांसद एक बार भी गांव नहीं पहुंचे समस्याएं सुनना-और समझना तो दूर की बात है। अल्मोड़ा-बागेश्वर हाईवे से चार किमी दूर बसे सुनोली गांव को जोड़ने वाली सड़क सिस्टम की बेरुखी की कहानी बंया कर रही है। यह पूरी सड़क गड्ढों से पटी है, इस पर खतरे के बीच सफर करना ग्रामीणों की मजबूरी बना है। बीमारों और गर्भवती महिलाओं को भी खतरे के बीच अस्पताल पहुंचाना ग्रामीणों की मजबूरी है।
सुनोली गांव के बच्चे, बुजुर्ग, महिलाएं, गर्भवती महिलाएं सभी स्वास्थ्य सुविधाओं से जूझ रहे हैं। गांव में सालों पहले खोले गया स्वास्थ्य उपकेंद्र फार्मासिस्ट के भरोसे संचालित हो रहा है। यहां न तो प्रसव की सुविधा है और न ही बेहतर उपचार की। ऐसे में गर्भवती महिलाएं प्रसव के लिए तो अन्य मरीज उपचार के लिए 40 किमी दूर जिला मुख्यालय की दौड़ लगा रहे हैं। स्वतंत्रता सेनानी और सांसद के गोद लिए गए गांव सुनोली में आंतरिक रास्तों पर खड़ंचे तक नहीं हैं, कंक्रीट तो दूर की बात है। अधिकांश रास्ते बदहाल हैं, इन पर ग्रामीण किसी तरह आवाजाही कर रहे हैं। उम्मीद थी सांसद के गोद लेने के बाद इस गांव की तस्वीर बदलेगी, लेकिन पांच साल बाद भी ऐसा नहीं हो सका है।
सुनोली गांव गडेरी और आलू उत्पादन के लिए प्रसिद्ध था। ग्रामीणों के अनुसार पूर्व में छह माह गडेरी तो छह माह आलू उत्पादन से उनकी आजीविका चलती थी। जंगली जानवरों के आतंक से इनकी खेती चौपट हो गई तो रोजगार के लिए पलायन शुरू हुआ। बीते पांच सालों में ही यहां से 40 परिवार पलायन कर गए। जिससे गांव में आबादी अब वीरान हो गई हैं। सांसद के गोद लिए गांव में जीआईसी संचालित है। लेकिन यहां अब तक विज्ञान विषय संचालित नहीं हो सका है। मजबूर होकर विद्यार्थियों को विज्ञान का ज्ञान लेने के लिए अन्य विद्यालयों की दौड़ लगानी पड़ रही है। जल जीवन मिशन योजना के तहत कनेक्शन तो लगा दिए गए, लेकिन नई योजना न बनने से इन नलों में पानी नहीं आ रहा है। जिससे सभी परेशान है।
बोले ग्रामीण-
पिछले पांच साल में हमने अपने सांसद को नहीं देखा। गांव में जंगली जानवरों का आतंक है, इससे खेती चौपट हो गई है। बेरोजगारी बढ़ गई है और रोजगार के युवाओं को पलायन करना पड़ रहा है। गांव की तस्वीर बदलने के दावे कब परवान चढ़ेंगे। -रमेश राम।
हमारा गांव अब भी विकास का इंतजार कर रहा है। अस्पताल में उपचार नहीं मिलता और इसके लिए अल्मोड़ा जाना पड़ता है। रास्ते में खड़ंचे तक नहीं हैं। सड़क बदहाल है। क्या इसी को विकास कहते हैं। -दीवान राम।
रोजगार न होने से बच्चे घर बैठे हैं या उन्हें पलायन करना पड़ रहा है। जंगली जानवरों के आतंक से खेती भी नहीं हो रही है। महिलाओं के लिए स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव है। सांसद के गांव को गोद लेने का कोई औचित्य नहीं है। -कला भाकुनी।
चुनाव में सभी नेता गांव आते हैं, लेकिन जीतने के बाद हमारी समस्याएं भुला दी जाती हैं। हमारे गांव के साथ भी ऐसा ही हुआ है। सड़क पर डामरीकरण न होने से ग्रामीण परेशान हैं। हमारे लिए सांसद की तरफ से गांव को गोद लेना या न लेना बराबर है। हमें इसका कोई लाभ नहीं मिला है। -नीरज कांडपाल।