देहरादून। यह बात अक्टूबर 1998 की है। श्रीनगर एक कार्यक्रम के सिलसिले में पहुंची वाणी जयराम को वहां के प्राकृतिक नजारों ने तो प्रभावित किया ही था, लेकिन एक और खास बात थी, जिससे उनकी आंखों में चमक आ गई थी। यह बात दिग्गज नेता स्वर्गीय हेमवती नंदन बहुगुणा से जुड़ी थी।
उन्हें इस जानकारी ने सुखद अनुभव से भर दिया था कि वह जिस धरती पर खड़ी हैं, वह देश के दिग्गज नेता रहे स्वर्गीय हेमवती नंदन बहुगुणा की जन्मस्थली है। श्रीनगर के बुघाणी गांव से ही निकलकर बहुगुणा जी ने देश की राजनीति में अपना मुकाम हासिल किया था। वाणी जयराम ने बहुगुणा जी से संबंधित हर जानकारी पर खूब उत्साह दिखलाया था।
देश की जानी-मानी शास्त्रीय और भजन गायिका वाणी जयराम जब श्रीनगर आई थीं, तब हिंदी फिल्मी संगीत से वह पूरी तरह से किनारा कर चुकी थीं। हालांकि फिल्म गुड्डी में बोले रे पपीहरा वाले गाने से मिली जबरदस्त पहचान जरूर उनके साथ तब भी चल रही थी। उस दौरान अमर उजाला से बातचीत में उन्होंने कहा था-मौका मिला, तो हिंदी फिल्मों में फिर से गाऊंगी, लेकिन ऐसा हो नहीं सका।
ऐसा नहीं था कि उन्हें मौके नहीं मिल रहे थे, लेकिन उनकी नजर में मौके के मायने दूसरे थे। उन्हें स्तरीय अवसरों की तलाश थी। उन्हें वैसा मौका चाहिए था, जैसा कभी गुड्डी फिल्म के लिए संगीतकार वसंत देसाई ने उन्हें प्रदान किया था। या फिर मीरा फिल्म के लिए पंडित रवि शंकर उनके लिए तलाश करके लाए थे।
लता मंगेशकर, आशा भोंसले, अनुराधा पौंडवाल, कविता कृष्णामूर्ति, अनुपमा देशपांडे, सुषमा श्रेष्ठ जैसी बाॅलीवुड गायिकाओं की तरह वाणी जयराम कभी उत्तराखंड के लोक संगीत से नहीं जुड़ पाईं, लेकिन उन्हें पहाड़ी लोक संगीत, पहाड़ी जीवन, पहाड़ सब कुछ बहुत पसंद था।
बातचीत में उन्होंने अपनी इस पसंद को खुलकर बताया भी था। उनके मिलनसार और सरल स्वभाव का इससे बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता है कि जब उनसे अनुरोध किया गया, तो वह झट से गुनगुनाने को तैयार हो गईं थीं। उन्होंने तब गुनगुनाया था-बोले रे पपीहरा।