देहरादून। पंचायतीराज संस्थाएं (जिला, क्षेत्र व ग्राम पंचायत) व शहरी नगर निकाय जब-तब बजट का रोना रोते रहते हैं। दूसरी तरफ इनके पास आय अर्जित करने के जो साधन हैं, उनका भी पूरा उपयोग नहीं किया जाता। राजस्व अर्जित करने के लिए पंचायतों व नगर निकायों ने जो कर लागू किए हैं, उनकी तक पूरी वसूली नहीं की जा रही। प्रदेश में 13 जिला पंचायतों में से 11 के करों और किराये में 9.04 करोड़ रुपये की कमी पाई गई है। वहीं, नगर निकायों की गृहकर की वसूली मांग के सापेक्ष 13 से 74 प्रतिशत ही रही है।
पंचायतीराज संस्थाओं व नगर निकायों की यह तस्वीर 31 मार्च 2018 व 2019 में समाप्त हुए वित्तीय वर्ष की लेखापरीक्षा में सामने आई। विधानसभा पटल पर रखी गई प्रधान महालेखाकार (लेखापरीक्षा) की रिपोर्ट में न सिर्फ करों की वसूली में अक्षमता की कहानी बयां की गई है, बल्कि विभिन्न वित्तीय गड़बड़ी को भी इंगित किया गया है।
महालेखाकार की रिपोर्ट के मुताबिक, चमोली जिले में वर्ष 2015-16 में 87.52 लाख रुपये से बनाए गए चार पर्यटक गृह अप्रयुक्त पड़े थे और इनसे कोई आय अर्जित नहीं की जा रही थी। चंपावत व चमोली जिले में पिछड़ा क्षेत्र अनुदान निधि के तहत 8.74 करोड़ रुपये की लागत के 528 कार्य 4.90 करोड़ रुपये खर्च होने के बाद भी अधूरे मिले।
इसी तरह तरह विभिन्न योजनाओं के तहत 24.62 करोड़ रुपये की लागत के 1005 कार्य 17.16 करोड़ रुपये की उपलब्धता के बाद भी लक्ष्य से छह साल पीछे चल रहे थे। यहां तक कि ठेकेदारों से रायल्टी वसूल करने व श्रम उपकर काटे जाने को लेकर भी पंचायतीराज संस्थाएं सुस्त पाई गई। 18 पंचायतीराज संस्थाओं ने 51.91 लाख रुपये का श्रम उपकर काटा ही नहीं और 10 पंचायतीराज संस्थाओं ने ठेकेदारों के बिलों से 17.31 लाख रुपये की रायल्टी काटने में परहेज दिखाया।
इसके अलावा मार्च 2019 तक 31 पंचायतीराज संस्थाओं ने विभिन्न योजना निधियों से अर्जित 6.40 करोड़ रुपये के ब्याज को संबंधित प्राप्ति शीर्ष (खाते) में जमा ही नहीं कराया। दूसरी तरफ ग्राम पंचायत स्तर पर खातों के रखरखाव आदि में तमाम तरह की अनियमितताएं पाई गईं।
प्रदेश में आठ नगर निगम, 41 नगर पालिका और 43 नगर पंचायतें हैं। गृहकर के रूप में निकायों को अच्छी खासी आय प्राप्त होती है। इसके बाद भी मांग के अनुरूप गृहकर वसूली का आंकड़ा 13 से 74 प्रतिशत के बीच सिमटा है। परीक्षण में शामिल 12 नगर निकायों में से किसी की भी गृहकर वसूली 90 प्रतिशत से अधिक नहीं पाई गई। दूसरी तरफ छह निकायों की वसूली 50 प्रतिशत भी नहीं पाई गई।
इसके अलावा 11 निकाय ऐसे पाए गए, जो दुकानों के किराये के रूप में 2.01 करोड़ रुपये वसूल करने में नाकाम रहे। पंचायतीराज संस्थाओं की भांति शहरी निकायों में भी रायल्टी की कटौती न करने और अनुबंधों पर स्टांप शुल्क की कमी की बात सामने आई। लेखापरीक्षा में बिना व्यय उपयोगिता प्रमाण पत्र प्रेषित कर देने, लाखों रुपये के निष्फल व्यय व श्रम उपकर की कटौती न करने जैसे मामले भी पकड़ में आए।