पालम में श्री दादा देव मंदिर की स्थापना से जुड़ी कथा में कहा जाता है कि एक बार श्री दादा देव जी के पैतृक गांव में जब अकाल पड़ा तो गांव वालों ने कहीं और जाने का फैसला किया और अपने साथ उस शिला को भी लेकर चल दिये जिस पर श्री दादा देव जी ध्यान की मुद्रा में रहा करते थे।
श्री दादा देव महाराज का मंदिर नई दिल्ली के पालम में स्थित है। इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहां आने के बाद सभी बिगड़े काम बनने लगते हैं और मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इस प्राचीन मंदिर में गुड की ढैया का प्रसाद चढ़ाया जाता है। इस मंदिर के प्रति आस्था रखने वालों में सिर्फ दिल्ली ही नहीं समूचे उत्तर भारत के लोग हैं। यहां लगने वाला पारम्परिक मेला भी काफी प्रसिद्ध है। हाल ही में इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया गया। मंदिर लगभग साढ़े आठ एकड़ भूमि में फैला हुआ है। इस मंदिर में श्री दादा देव के साथ ही सभी प्रमुख देवी देवताओं के मंदिर हैं। यहां नवग्रहों और शनि देवता की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा भी की जा चुकी है।
श्री दादा देव जी के बारे में मान्यता है कि वह विक्रमी संवत 838 (781 इसवीं) में राजस्थान के एक छोटे से गांव टोडा रॉय सिंह जिला टोंक में अवतरित हुए थे। वह गांव में एक शिला पर सदा ही ध्यानस्थ मुद्रा में बैठे रहते थे। कहा जाता है कि उनके इस तप से प्रसन्न होकर स्वयं भगवान ने उन्हें देव शक्ति प्रदान की थी। तभी से वह लोगों का कल्याण करने लगे। बाद में वह उसी शिला पर ध्यानस्थ मुद्रा में ही पार्थिव शरीर छोड़कर ब्रह्मलीन हो गए। लेकिन गांव के लोग उसी शिला को उनका स्वरूप मानकर पूजते रहे जिससे उनका कल्याण होता रहा।
पालम में श्री दादा देव मंदिर की स्थापना से जुड़ी कथा में कहा जाता है कि एक बार श्री दादा देव जी के पैतृक गांव में जब अकाल पड़ा तो गांव वालों ने कहीं और जाने का फैसला किया और अपने साथ उस शिला को भी लेकर चल दिये जिस पर श्री दादा देव जी ध्यान की मुद्रा में रहा करते थे। शिला को जब बैलगाड़ी में लाद कर ले जाया जा रहा था तभी एक आकाशवाणी हुई- हे भक्तों! मैं शिला रूप में हमेशा तुम्हारे साथ रहूंगा परन्तु यह शिला जिस स्थान पर गिर जाये उसी स्थान को अपना निवास स्थान बना लेना वही तुम्हारा गंतव्य स्थान होगा। अनेक दिनों तक चलते हुए वह शिला पालम गांव में बैलगाड़ी से फिसल कर गिर गई। आकाशवाणी की बात को मानते हुए गांव वालों ने वहीं डेरा डाल लिया और जिस स्थान पर शिला गिरी थी वहां शिला के ऊपर एक मढ़ी बना दी। इस प्रकार आसपास 12 गांव बसे और इन गांव वालों ने श्री दादा देव को अपना कुल देवता माना और विधि पूर्वक पूजा अर्चना करने लगे। बाद में अन्य स्थानीय लोगों ने इन्हें ग्राम्य देवता के रूप में मानना शुरू कर दिया।
इस मंदिर में वैसे तो प्रतिदिन ही श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है। लेकिन रविवार, अमावस्या व पूर्णिमा के दिन यहां लाखों भक्त पूजा अर्चना करने के लिए आते हैं। श्री दादा देव के बारे में ऐसा माना जाता है कि वह दशहरे के दिन पृथ्वी पर अवतरित हुए इसलिए उनकी जयन्ती महोत्सव को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन यहां पर एक भव्य मेला भी लगता है। श्री दादा देव महाराज जी के बारे में कहा जाता है कि जो भी उनके चरित्र को 21 दिन लगातार पढ़ता है उसके समस्त मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं।