देहरादून। चंद्रमा और मंगल मिशन के बाद भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) अब शुक्र के अध्ययन की योजना बना रहा है। इससे पहले अगले साल चंद्रयान-3 को भेजा जाएगा। यह चंद्रमा पर हर समय रहने वाली काली छाया का अध्ययन करेगा। इसके लिए इसरो जैपनीज एयरो स्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी (जैक्सा) की मदद लेगा। वहीं, चंद्रयान-3 के बाद इसरो का अगला मिशन शुक्र पर यान भेजने का है। इसमें भी जापान की मदद ली जाएगी।
उत्तरांचल विवि में आयोजित आकाश तत्व सम्मेलन में रविवार को नेशनल रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर स्पेस एंड एलाइड साइंस की भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला (पीआरएल) अहमदाबाद के निदेशक डॉ. अनिल भारद्वाज ने कहा कि आकाश में चल रही हलचल पर भारत नजर बनाए हुए है। वर्ष 1975 में पहला उपग्रह आर्यभट्ट छोड़ने के बाद भारत ने अंतरिक्ष विज्ञान को तेजी से आगे बढ़ाया है। आज देश इसमें अग्रणी भूमिका में है। भविष्य में हम शुक्र और सूर्य के अध्ययन के लिए खुद की तकनीक विकसित करने जा रहे हैं।
उन्होंने बताया कि अंतरिक्ष एजेंसी ने मंगल ग्रह की एक बार फिर अध्ययन करने की योजना बनाई हैै। वहीं, चंद्रमा के अंधेरे वाले इलाके का अध्ययन करने के लिए मिशन चंद्रयान-3 के तहत इसरो की ओर से निर्मित लैंडर और रोवर को जापानी अंतरिक्ष एजेंसी की मदद से कक्षा में स्थापित किया जाएगा। यह चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास योजना के अनुरूप लैंडिंग करेगा। इसके बाद रोवर चंद्रमा के अंधेरे वाले इलाके की यात्रा करेगा, जहां सूर्य की रोशनी कभी नहीं पहुंचती है।
डॉ. अनिल भारद्वाज बताया कि सूर्य का अध्ययन करने के लिए आदित्य एल-1 मिशन की शुरुआत की गई है। यह अपने आप में अनूठा मिशन होगा। 400 किलो के उपग्रह को पेलोड ले जाने के लिए सूर्य के चारों ओर एक कक्षा में इस तरह रखा जाएगा कि वह एक निर्धारित बिंदु से तारे को लगातार देख सके। आदित्य एल-1 की कक्षा पृथ्वी से 1.5 मिलियन किमी दूर होगी। यह कोरोनल हीटिंग, सोलर विंड और कोरोनल मास इजेक्शन को बारे में जानकारियां जुटाएगा।