शिक्षा मित्र और औपबंधिक सहायक अध्यापक प्रदेश के दुर्गम और अति दुर्गम स्कूलों में 2001 से बच्चों को पढ़ा रहे हैं। वर्ष 2015 से उन्हें पूरा वेतन मिल रहा है। हिमाचल की तरह टीईटी से मुक्त कर उन्हें नियमित किए जाने से सरकार पर किसी तरह का वित्तीय भार नहीं पड़ेगा। हमें इस मामले में सरकार का आश्वासन मिला, लेकिन अभी तक नियमित नहीं किया गया।
-ललित द्विवेदी, प्रदेश अध्यक्ष, उत्तराखंड समायोजित प्राथमिक शिक्षक संघ
देहरादून। उत्तराखंड के सरकारी स्कूलों में 21 साल की सेवा के बावजूद अस्थायी शिक्षक हिमाचल प्रदेश की तरह नियमित नियुक्ति नहीं पा सकेंगे। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इन शिक्षकों की नियमित नियुक्ति के लिए मुख्य सचिव को कैबिनेट में प्रस्ताव लाने के निर्देश दिए थे। शासन ने यह कहते हुए मना कर दिया कि सुप्रीम कोर्ट के जिस आदेश पर हिमाचल में शिक्षकों को नियमित किया गया नियमानुसार उसे उत्तराखंड में लागू नहीं किया जा सकता।
हिमाचल प्रदेश के स्कूलों में सेवारत करीब 15 हजार अस्थायी शिक्षकों के खिलाफ सभी याचिकाओं को रद्द करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 2020 में बड़ी राहत दी थी। सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद उत्तराखंड में वर्ष 2001 से सरकारी स्कूलों में बच्चों को पढ़ा रहे शिक्षा मित्रों को भी नियमित होने की आस जगी थी। वे हिमाचल प्रदेश की तरह बिना टीईटी के नियमित नियुक्ति की मांग कर रहे थे।
शिक्षा मित्रों और औपबंधिक शिक्षकों की मांग पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने 20 सितंबर 2021 को मुख्य सचिव को निर्देश दिया था कि हिमाचल प्रदेश की तरह इन शिक्षकों को टीईटी से मुक्त कर इन्हें नियमित करने का प्रस्ताव आगामी कैबिनेट में लाया जाए।
शिक्षा मंत्री डॉ. धन सिंह रावत ने भी हाल ही में शिक्षा मित्रों को नियमित को लेकर हिमाचल प्रदेश के मामलों का परीक्षण कराने के निर्देेेश दिए थे, लेकिन शासन ने बिना टीईटी के उन्हें नियमित करने से मना कर दिया। इससे 1200 से अधिक शिक्षा मित्रों और औपबंधिक शिक्षकों को बड़ा झटका लगा है।
अपर शिक्षा सचिव मेजर योगेंद्र यादव की ओर से शिक्षा निदेशक बेसिक शिक्षा को जारी निर्देश में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट के 2020 के आदेश में उत्तराखंड सरकार पक्षकार नहीं थी। ऐसी स्थिति में सुप्रीम कोर्ट का आदेश उत्तराखंड राज्य के संबंध में नियमानुसार लागू नहीं होता है। न ही इसे लागू किया जाना बाध्यकारी है।