देहरादून। पाखरो टाइगर सफारी निर्माण में अवैध रूप से पेड़ काटे जाने के मामले में वन विभाग ने भारतीय वन सर्वेक्षण विभाग (एफएसआई) की रिपोर्ट पर ही सवाल खड़े किए हैं। वन मुख्यालय की मानें तो जिस हिसाब से काटे गए पेड़ों की गणना की गई है, उस तरह इनकी संख्या छह हजार नहीं, बीस हजार होनी चाहिए। इसलिए इस रिपोर्ट को स्वीकार नहीं किया जा सकता है।
पीसीसीएफ (हॉफ) विनोद कुमार सिंघल ने कहा कि एफएसआई को हाई-रेजोल्यूशन सेटेलाइट इमेजरी के आधार पर पाखरो क्षेत्र में पेड़ कटान की संख्या बताने के लिए कहा गया था। एफएसआई ने सांख्यिकीय अनुमान के आधार पर क्षेत्र में काटे गए पेड़ों की संख्या बताई है।
हॉफ के अनुसार, मोरघट्टी और पाखरो में आवासीय परिसर क्षेत्र भी है, जहां पेड़ों का घनत्व सामान्य वन क्षेत्र जैसा नहीं है। एफएसआई ने वहां का घनत्व भी सामान्य वन घनत्व के आधार पर कर अवैध पातन का आकलन किया है। सिंघल ने कहा कि पेड़ों के अवैध पातन के लिए अपनाई गई तकनीक के वैज्ञानिक रूप से सिद्ध होने के संबंध में कोई टिप्पणी रिपोर्ट में नहीं की गई है। इस मामले में एफएसआई के निदेशक अनूप सिंह का पक्ष जानना चाहा, लेकिन उन्होंने फोन रिसीव नहीं किया।
एफएसआई की ओर से 379 वृक्ष प्रति हेक्टेयर का अनुमान लगाया गया है। सिंघल ने सवाल उठाया कि यदि आवासीय परिसर में एक हेक्टेयर में 379 पेड़ (प्रति नाली लगभग आठ पेड़) खड़े थे तो आवास कहां बने थे। जबकि पाखरो और मोरघट्टी दोनों पर्यटन क्षेत्र हैं, जहां पर्यटकों के लिए वन विश्राम भवन भी हैं और गाडियों की पार्किंग की सुविधा भी है।
वन प्रमुख की मानें तो एफएसआई से कालागढ़ टाइगर रिजर्व प्रभाग में वृक्षों के अवैध पातन की सूचना मांगी गई थी, जबकि केंद्रीय एजेंसी ने दूसरे प्रभाग में बने वाटर होल (बड़े तालाब) में पेड़ों का अवैध पातन दिखाया है। इसके अलावा 15 ऐसे क्षेत्रों में भी अवैध पातन का अनुमान दिया गया है, जिसे वन विभाग ने सर्वे में शामिल करने के लिए कहा ही नहीं था। हॉफ के अनुसार, एफएसआई की ओर से ऐसे स्थलों को चुनने का आधार स्पष्ट नहीं है।