पांच अधिकारियों पर मुकदमा दर्ज करने की अनुमति मांगी
यूकेएसएसएससी की ओर से पिछले सात साल में कराई गई भर्तियों में गड़बड़ी के मामले सामने आने पर विजिलेंस ने आयोग के पूर्व सचिव और वर्तमान में निलंबित चल रहे संयुक्त सचिव संतोष बडोनी, पूर्व परीक्षा नियंत्रक नारायण सिंह डांगी के साथ तीन अनुभाग अधिकारियों पर मुकदमा दर्ज करने के लिए शासन से अनुमति मांगी है। विजिलेंस अधिकारियों के अनुसार आरएमएस टेक्नो साल्यूशंस का रिकार्ड खराब होने के बावजूद आयोग के अधिकारियों ने इसी कंपनी से परीक्षाएं करवाईं।
देहरादून। भर्ती परीक्षाओं में गड़बड़ी को लेकर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के सख्त रुख के क्रम में शनिवार को एसटीएफ ने बड़ी कार्रवाई की। वर्ष 2016 में ग्राम पंचायत विकास अधिकारी (वीपीडीओ) की परीक्षा में धांधली के आरोप में उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग (यूकेएसएसएससी) के तत्कालीन अध्यक्ष डा. आरबीएस रावत, तत्कालीन सचिव मनोहर सिंह कन्याल और तत्कालीन परीक्षा नियंत्रक राजेंद्र सिंह पोखरिया को गिरफ्तार कर लिया गया।
आरोप है कि इन अधिकारियों ने वीपीडीओ परीक्षा की ओएमआर शीट से छेड़छाड़ की। परीक्षा का परिणाम सचिव के घर पर तैयार किया गया। आरोपितों में एक वर्तमान में उत्तराखंड सचिवालय में संयुक्त सचिव के पद पर कार्यरत है। जबकि अन्य दोनों सेवानिवृत्त हो चुके हैं। डा. रावत आयोग अध्यक्ष से पहले प्रदेश के प्रमुख मुख्य वन संरक्षक रहे हैं। भर्ती घपले में राज्य गठन के बाद यह अब तक की सबसे बड़ी कार्रवाई है।
कांग्रेस सरकार में हुई थी वीपीडीओ की परीक्षा
वीपीडीओ की परीक्षा कांग्रेस सरकार में मुख्यमंत्री हरीश रावत के कार्यकाल के आखिरी दिनों में हुई थी। धांधली के आरोप लगने के बाद वर्ष 2017 में तत्कालीन भाजपा सरकार ने यह परीक्षा रद कर दी थी। वर्ष 2019 में सरकार ने विजिलेंस को इस मामले में खुली जांच के आदेश दिए।
वर्ष 2022 में यूकेएसएसएससी की स्नातक स्तर की परीक्षा में धांधली की बात सामने आई तो मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने आयोग के स्तर से कराई गई सभी भर्तियों की जांच एसटीएफ को सौंप दी। एसटीएफ ने अगस्त 2022 में मामले की जांच शुरू की। शनिवार को इस मामले में एसटीएफ ने बड़ी कार्रवाई करते हुए उस वक्त आयोग में अध्यक्ष, सचिव और परीक्षा नियंत्रक की भूमिका निभा रहे तीनों अधिकारियों को गिरफ्तार कर लिया।
इनमें मनोहर सिंह कन्याल वर्तमान में शासन में संयुक्त सचिव है। तीनों को मेडिकल कराने के बाद कोर्ट में पेश किया गया। जहां से उन्हें न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया गया। वर्ष 2017 में भाजपा सत्ता में आई तो मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को इसमें गड़बड़ी की शिकायत मिली। इस पर उन्होंने तत्कालीन अपर मुख्य सचिव की अध्यक्षता में जांच समिति गठित कर दी और परीक्षा रद कर दी। इसके बाद वर्ष 2017 में दोबारा परीक्षा कराई गई।
87,196 अभ्यर्थियों ने दी थी परीक्षा
छह मार्च 2016 को 236 पदों के लिए कराई गई वीपीडीओ की भर्ती परीक्षा में 87,196 अभ्यर्थी शामिल हुए थे। 24 दिन बाद 30 मार्च को इसका परिणाम घोषित कर दिया गया। तभी परीक्षा में गड़बड़ी की शिकायतें आने लगीं। लेकिन तत्कालीन हरीश रावत सरकार के स्तर से इस पर चुप्पी साध ली गई।
कुछ अभ्यर्थियों को फायदा पहुंचाने के लिए परीक्षा की ओएमआर शीट में छेड़छाड़ की पुष्टि फोरेंसिक जांच में हुई है। जांच में पाया गया कि सांठगांठ वाले अभ्यर्थियों की ओएमआर शीट में गोले काले कर दिए गए। वर्ष 2017 में दोबारा परीक्षा हुई तो वर्ष 2016 में चयनित 196 अभ्यर्थियों में से केवल आठ का चयन हुआ था।
जांच में ओएमआर शीट से छेड़छाड़ के साथ ही दो सगे भाइयों के बराबर अंक मिलने और ऊधमसिंह नगर जिले के एक गांव के 20 से ज्यादा युवाओं के धांधली से चयन की पुष्टि भी हुई थी। जो परीक्षा का टापर था, वह 10वीं से 12वीं तक की परीक्षा चार वर्ष में उत्तीर्ण कर सका था। वीपीडीओ भर्ती प्रकरण में एसटीएफ तीन आरोपितों को पूर्व में गिरफ्तार कर चुकी है। इनमें लखनऊ स्थित आरएमएस टेक्नो साल्यूशंस प्रिंटिंग प्रेस के सीईओ राजेश पाल, पौड़ी में तैनात शिक्षक मुकेश कुमार शर्मा और काशीपुर (ऊधमसिंह नगर) निवासी मुकेश चौहान शामिल हैं। अन्य भर्ती परीक्षाओं में हुई गड़बड़ी में भी ये लोग आरोपित हैं।
भर्ती के डेढ़ महीने बाद ही आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष आरबीएस रावत ने मई 2016 में पद से इस्तीफा दे दिया था। तब इस परीक्षा में धांधली को लेकर उनपर अंगुली उठने लगी थी। इस पर उन्होंने यह कहते हुए पद छोड़ दिया था कि वह आरोप-प्रत्यारोपों को देखते हुए अंतरआत्मा की आवाज सुनते हुए पद छोड़ रहे हैं। हालांकि, उन्होंने स्पष्ट किया कि वह जितने भी पदों पर रहे, कभी कोई राजनीतिक दबाव उन पर नहीं रहा।