
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सात वर्षों बाद अपनी पहली चीन यात्रा पर हैं और शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के क्षेत्रीय सुरक्षा शिखर सम्मेलन में भाग लेने पहुंचे हैं। यह यात्रा ऐसे समय हो रही है जब वैश्विक राजनीति और अर्थव्यवस्था दोनों अस्थिरता के दौर से गुजर रहे हैं। चीन में राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ होने वाली उनकी द्विपक्षीय बैठक से पहले पीएम मोदी ने स्पष्ट संदेश दिया है कि नई दिल्ली आपसी सम्मान, साझा हितों और संवेदनशीलता पर आधारित एक दीर्घकालिक रणनीतिक दृष्टिकोण के तहत बीजिंग के साथ संबंध मजबूत करना चाहती है।
“स्थिर भारत-चीन संबंध हिंद-प्रशांत के लिए जरूरी”
जापान के अख़बार योमिउरी शिम्बुन को दिए एक लिखित साक्षात्कार में मोदी ने कहा कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए भारत और चीन के बीच संतुलित और सौहार्दपूर्ण संबंध आवश्यक हैं। उन्होंने कहा –
“दो पड़ोसी और दुनिया के दो सबसे बड़े राष्ट्रों के रूप में भारत और चीन के बीच स्थिर, पूर्वानुमानित और मैत्रीपूर्ण संबंध क्षेत्रीय और वैश्विक शांति एवं समृद्धि पर सकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं।”
मोदी ने आगे कहा कि बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था में लगातार बढ़ती अनिश्चितता को देखते हुए भारत-चीन रिश्तों की स्थिरता अत्यंत महत्वपूर्ण है।
पृष्ठभूमि: सात साल बाद चीन दौरा
प्रधानमंत्री मोदी का यह दौरा कई मायनों में खास है। 2018 के बाद यह उनका पहला चीन दौरा है। इस बीच दोनों देशों के रिश्तों ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं—विशेषकर सीमा विवाद और गलवान घाटी की घटना के बाद रिश्ते तनावपूर्ण रहे। लेकिन पिछले साल कज़ान (रूस) में शी जिनपिंग से मुलाकात के बाद रिश्तों में धीरे-धीरे सकारात्मक प्रगति दर्ज की गई है।
मोदी ने कहा कि पड़ोसी देशों के बीच अच्छे रिश्ते पूरे क्षेत्र की समृद्धि और विकास पर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं। उन्होंने विश्वास जताया कि यह नई शुरुआत भारत-चीन संबंधों को नई दिशा देगी।
वैश्विक संदर्भ: ट्रंप का टैरिफ़ और नया समीकरण
प्रधानमंत्री मोदी की यह यात्रा ऐसे समय हो रही है जब अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारतीय वस्तुओं पर 50 प्रतिशत तक का आयात शुल्क लगा दिया है। इस पृष्ठभूमि में भारत और चीन के बीच संभावित निकटता को एक नए भू-राजनीतिक समीकरण के रूप में देखा जा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह मुलाकात “ट्रोइका” (भारत-चीन-रूस) की भूमिका को और मजबूत कर सकती है।
31 अगस्त को प्रधानमंत्री मोदी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात करेंगे, जबकि 1 सितंबर को उनकी बैठक रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से तय है। इससे यह साफ है कि भारत बहुपक्षीय मंचों पर अपनी सक्रिय भूमिका को और गहरा करना चाहता है।
“आर्थिक स्थिरता के लिए साथ काम करेंगे”
प्रधानमंत्री मोदी ने साक्षात्कार में वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भी चिंता जताई। उन्होंने कहा कि वर्तमान वैश्विक अस्थिरता और सप्लाई चेन में व्यवधान को देखते हुए भारत और चीन जैसी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के लिए साथ मिलकर काम करना जरूरी है।
“विश्व आर्थिक व्यवस्था में स्थिरता लाने के लिए भारत और चीन का सहयोग बेहद अहम है।”
भारत का रुख: संवेदनशीलता और सम्मान पर जोर
मोदी ने स्पष्ट किया कि भारत आपसी सम्मान, आपसी हित और आपसी संवेदनशीलता के आधार पर रणनीतिक और दीर्घकालिक दृष्टिकोण से रिश्तों को आगे बढ़ाना चाहता है। उन्होंने कहा कि भारत रणनीतिक संचार को बढ़ाने और विकासात्मक चुनौतियों के समाधान के लिए चीन के साथ मिलकर काम करने के लिए प्रतिबद्ध है।
विशेषज्ञों की राय
- प्रो. रमेश चंद्र (विदेश नीति विश्लेषक) का कहना है – “मोदी का यह बयान दर्शाता है कि भारत फिलहाल ‘टकराव’ से ज्यादा ‘सहयोग’ के रास्ते पर जोर दे रहा है। हिंद-प्रशांत की बदलती सुरक्षा व्यवस्था में चीन को नज़रअंदाज़ करना भारत के लिए संभव नहीं है।”
- वहीं डॉ. मनीषा गुप्ता (अंतरराष्ट्रीय संबंध विशेषज्ञ) के मुताबिक – “ट्रंप की टैरिफ़ नीति के बाद भारत का चीन के करीब आना स्वाभाविक है। आने वाले समय में यह संबंध आर्थिक और रणनीतिक दोनों स्तरों पर गहराई हासिल कर सकते हैं।”







