देहरादून। आज से नवरात्र की शुरुआत हो गई है। मंदिरों और घरों में माता रानी का दरबार सजाया गया। उत्तराखंड के कुछ खास देवी मंदिरों में सुबह से भक्तों की तांता लगा है। शुभ मुहूर्त में घरों और मंदिरों में कलश स्थापना की गई। चार घंटे का मुहूर्त है। भक्तों ने मंदिरों के साथ घरों में विशेष तैयारी कर मां के दरबार को भव्य रूप से सजाया है। पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा हुई। इस बार मां घोड़े पर सवार होकर आ रही है।
नवरात्र के पहले दिन हरिद्वार में मां मनसा देवी मंदिर में पूजा अर्चना करने के लिए श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी। मंदिरों में तड़के से ही लोगों की भीड़ जुटी। चमोली में इंद्रामति देवी मंदिर, गोपेश्वर चंडिका मंदिर, अनसूया माता मंदिर, जोशीमठ मां नंदा मंदिर और सिद्धपीठ कुरुड़ मंदिर में लोगों ने मां भगवती की पूजा अर्चना की।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी हिन्दू नववर्ष एवं चैत्र नवरात्र के पावन अवसर पर अपने आवास पर मां आदिशक्ति भगवती की विधि-विधान से पूजा-अर्चना कर शक्तिस्वरूपा जगतजननी देवी मां से समस्त प्रदेशवासियों के सुख-समृद्धि एवं राज्य की उन्नति के लिए प्रार्थना की।
ज्योतिषाचार्य के मुताबिक, चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि की शुरुआत 8 अप्रैल को रात 11:50 बजे शुरू हो गई है। मंगलवार को पहला नवरात्र है। सुबह 6:12 बजे से 10:23 बजे तक कलश स्थापना का मुहूर्त था। नवरात्र में नौ दिन आदिशक्ति मां दुर्गा के अलग-अलग स्वरूपों की उपासना की जाएगी।
वहीं नवरात्र के लिए राजधानी देहरादून के मंदिरों में भव्य सजावट की गई है। शहर के मां डाट काली मंदिर, मां कालिका मंदिर सहित दून के मंदिरों में भक्त पहुंचे। नवरात्र को लेकर सोमवार को राजधानी के बाजार गुलजार रहे। सुबह से रात तक खूब खरीदारी की गई। लोगों ने मां की चुनरी, नारियल से लेकर पूजा की सामग्री की खूब खरीदारी की।
नवरात्र में इस बार मां दुर्गा घोड़े पर सवार होकर आई है। मान्यता है कि नवरात्र जिस दिन से शुरू होते है उसके आधार पर ही माता की सवारी तय होती है। यदि रविवार और सोमवार को नवरात्र की शुरुआत हो तो मां दुर्गा हाथी पर सवार होकर आती है। मंगलवार और शनिवार को मां घोड़े पर सवार होकर आती है। बृहस्पतिवार और शुक्रवार को मां डोली पर सवार होकर आती है। बुधवार को मां नाव पर सवार होकर आती है।
नवरात्र में आदिशक्ति मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की विधि और भोग अलग-अलग प्रकार के होते है। मां के स्वरूपों के अनुरूप ही माता को भोग लगाया जाता है। पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। माता शैलपुत्री को सफेद रंग काफी प्रिय है। इसलिए उन्हें गाय की घी से तैयार भोग लगाना शुभ माना जाता है। मां शैलपुत्री की पूजा के बाद भोग में गाय के घी से बना हलवा, रबड़ी या मावा के लड्डू का भोग लगा सकते है।
- 10 अप्रैल- मां ब्रह्मचारिणी की पूजा
- 11 अप्रैल- मां चंद्रघंटा की पूजा
- 12 अप्रैल- मां कुष्मांडा की पूजा
- 13 अप्रैल- मां स्कंदमाता की पूजा
- 14 अप्रैल- मां कात्यायनी की पूजा
- 15 अप्रैल- मां कालरात्रि की पूजा
- 16 अप्रैल- मां महागौरी की पूजा
- 17 अप्रैल- मां सिद्धिदात्री की पूजा